नागरिकता कानूनों और राष्ट्रीय सीमाओं का अंत हो!
दुनिया को समाजवादी संघ में संगठित करने के लिए संघर्ष तेज़ करो!
1947 के सांप्रदायिक विभाजन को उलटकर, भारतीय उपमहाद्वीप को पुनः एकीकृत करते हुए, दक्षिण एशिया में संयुक्त समाजवादी संघ के लिए संघर्ष को आगे बढ़ाओ!
भारत के बड़े पूंजीपतियों की दलाल, मोदी सरकार, आर्थिक-राजनीतिक संकट में घिरी पूंजी की दरकती सत्ता को, मेहनतकश जनता के आक्रोश से बचाने में जुटी है. इसके लिए वह अंध-राष्ट्रवाद और हिन्दू-आधिपत्यवाद के ज़हरीले नश्तरों से, मेहनतकश जनता की एकता को छिन्न-भिन्न कर, धनकुबेरों के भ्रष्ट और लुटेरे कुराज को कायम रखने का हर संभव प्रयास कर रही है. हिन्दू बहुसंख्यकों के राजनीतिक रूप से पिछड़े हिस्सों को, पूंजीपतियों की सत्ता के पीछे बांधे रखने के लिए, मोदी सरकार, मुस्लिम उत्पीड़न को औज़ार बना रही है. नागरिकता कानून में संशोधन और एन.आर.सी इसी श्रृंखला की कड़ी हैं जिनके तहत नाज़ी जर्मनी की तर्ज़ पर, डिटेंशन कैम्पों का पूरा जाल फैलाया जा रहा है.
इस कुत्सित प्रयास में मोदी सरकार अकेली नहीं है. 2008 से विश्व पूंजीवाद के आर्थिक संकट में धंसते जाने के साथ-साथ, पूंजीवादी देशों में आपाधापी मच गई है. कल तक पूंजीवादी आधार पर वैश्वीकरण की डींग हांकते, इन देशों के इलीट शासक, अपनी सीमाओं को आप्रवास के लिए बंद करने और मेहनतकश जनता के हिस्सों को बाहर खदेड़ने में जुट गए हैं. राष्ट्र-राज्यों के संकीर्ण पिंजरों में कैद, पूंजी की ढहती-गिरती व्यवस्था, निरंतर फैलते संकट के इस दौर में, जनता के लिए रोटी और रोज़गार का प्रबंध करने में अक्षम होती जा रही है. बुर्जुआ सरकारों के सामने एकमात्र रास्ता है- अपनी सीमाओं को बंद करना और आबादी के बड़े हिस्सों को बाहर धकेलना.
पूंजीवाद के आम संकट के साथ ही युद्ध और दमन फ़ैल रहा है जिसके चलते बेरोज़गारी के साथ-साथ विस्थापन का संकट भी गहराता जा रहा है. संकट के इस भंवर में फंसे पूंजीवादी शासक अपने-अपने देशों की सीमाओं को बंद कर रहे हैं और आबादी के बड़े हिस्सों को बाहर खदेड़ देने पर आमादा हैं. अमेरिका, मेक्सिको के साथ लगती अपनी सीमाएं सील कर रहा है तो ब्रिटेन भारत पर आप्रवासी भारतीयों को वापस लेने के लिए दबाव बना रहा है. विस्थापन, पूंजीवाद के संकट को हल करने की जगह, उसे और गहरा बना रहा है. संकट से पैदा हुए और निरंतर फैलते जन-आक्रोश को, संकट के शिकार- विस्थापितों, शरणार्थियों- के सिर मढ़ते हुए, पूंजीवादी शासक, इसे मेहनतकश जनता के बीच नस्लीय, क्षेत्रीय और सांप्रदायिक आधार पर फूट डालने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं और जनता को भ्रमित करते, अपनी सत्ता को इस आक्रोश का निशाना बनने से बचाने में सफल हो रहे हैं.
मुस्लिम बहुल राज्यों में हिन्दू विस्थापितों को बसाकर और शेष राज्यों में मुस्लिम आप्रवास को कठोरता से नियंत्रित कर, मोदी सरकार, सत्ता पर अपनी पकड़ कायम रखना चाहती है. विपक्षी पार्टियां, मोदी की इस ज़हरीली सांप्रदायिक मुहिम का सीमित विरोध ही कर रही हैं. विपक्ष में दाएं-बाएं की ये सभी पार्टियां, भारत को सिर्फ ‘भारतीयों’ के लिए सुरक्षित रखने और ‘विदेशियों’ के लिए बंद करने पर, मोदी सरकार के साथ सहमत हैं. लेफ्ट पार्टियों सहित, विपक्ष की कोई भी पार्टी रोहिंग्या और बंगलादेशी आप्रवासियों के पक्ष में खड़ी नहीं हुई. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ‘विदेशी घुसपैठियों’ को रोकने के नाम पर एन.आर.सी. सबसे पहले नेहरु के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने ही लागू किया था और मोदी से पहले मनमोहन सरकार ने इसका नया मसौदा तैयार किया था.
इस अंधराष्ट्रवादी मुहिम का, जिसे मोदी सरकार ने गहरा और स्पष्ट सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की है, हम कड़ा विरोध करते हैं और सर्वहारा को इस षड्यंत्र के प्रति सचेत करते हैं. 1947 के दुर्भाग्यपूर्ण सांप्रदायिक विभाजन में धंसे, धार्मिक-क्षेत्रीय वैमनस्य को सुलगाते हुए, भारत के जनविरोधी शासक, अपनी सत्ता को अक्षुण्ण बनाए रखना चाहते हैं. 47’ के सांप्रदायिक विभाजन की भयावह त्रासदी, जिसमें 20 लाख से अधिक हताहत हुए थे, लूट और बलात्कारों के शिकार हुए थे, और दो करोड़ से भी अधिक विस्थापित हुए थे, दुनिया के इतिहास की सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी थी जिसने भारतीय उपमहाद्वीप की मेहनतकश जनता को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित कर, उसे पूंजीपति वर्ग के शासन के जुए तले रख दिया और साम्राज्यवाद विरोधी क्रांति को नष्ट कर दिया. 1947 से ही, निरंतर, अंधराष्ट्रवादी और सांप्रदायिक विषबेल को सींचते, भारत-पाकिस्तान और हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर मेहनतकश जनता को बांटते, लड़ाते पूंजीवादी शासक, समूचे दक्षिण एशिया में अपना शासन कायम रखे हुए हैं. मेहनतकश जनता को, भेड़ों की तरह, अपने नियंत्रण वाले राष्ट्रीय बाड़ों में घेरे हुए, पूंजीपतियों के राष्ट्रीय गिरोहों ने, उन्हें नारकीय जीवन स्थितियों में झोंक रखा है.
आज दुनिया के तमाम पूंजीवादी देश, एक दूसरे के खिलाफ गलाकाट प्रतियोगिता में जुटे हैं जो निरंतर हिंसक होती जा रही है और असीमित युद्धों, आतंकवाद और खूनखराबे से होती हुई दुनिया को तीसरे विश्वयुद्ध और नाभिकीय सर्वनाश की और खींच रही है. पूंजीवाद, दुनिया का एकीकरण नहीं कर सकता, यह सिर्फ उसे बांट सकता है. सिर्फ और सिर्फ विश्व समाजवादी क्रांति ही, पूंजीवाद द्वारा सृजित इन नारकीय स्थितियों से बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता है.
हम, राष्ट्रीय, नस्लीय या सांप्रदायिक आधार पर दुनिया के तमाम विभाजनों को ख़ारिज करते हैं. अन्तर्राष्ट्रीय सर्वहारा की ओर से हम उन तमाम बैरिकेडों को ध्वस्त करने का आह्वान करते हैं जो दुनिया को विभाजित करती हैं, सीमाएं खींचती हैं, आने-जाने, घूमने-फिरने, बसने या रोजगार की आज़ादी पर बंदिश लगाती हैं. हम पासपोर्ट-वीज़ा राज को ख़त्म करने के लिए और राष्ट्रीय सीमाओं को मेट देने के लिए, विश्व समाजवादी संघ के निर्माण के लिए, संघर्ष कर रहे हैं. इस क्रम में, हमारा फौरी लक्ष्य है: 1947 के सांप्रदायिक विभाजन को उलटकर, भारतीय उपमहाद्वीप को फिर से एकजुट करते हुए, ‘दक्षिण एशियाई समाजवादी संयुक्त राज्य’ की स्थापना.
दक्षिण एशिया में मौजूद बुर्जुआ सत्ताएं, जिनमें भारत की दक्षिणपंथी और हिन्दू प्रभुत्ववादी मोदी सरकार प्रमुख है, इस लक्ष्य को हासिल करने के रास्ते में, बड़ी बाधा हैं. इन्हें क्रांति के जरिए उलटते हुए, मजदूरों-मेहनतकशों की सरकारें कायम करके ही दक्षिण एशिया को एक समाजवादी संघ में एकजुट किया जा सकता है और संकीर्ण राष्ट्रीय सीमाओं और राष्ट्र-राज्यों का अंत किया जा सकता है.
नागरिकता कानून में, धार्मिक, सांप्रदायिक, नस्लीय या जातीय आधार पर छेड़छाड़ का विरोध करने के साथ ही, हम तमाम नागरिकता कानूनों और राष्ट्रीय सीमाओं का भी विरोध करते हैं.
हम युवाओं, सर्वहारा से अपील करते हैं कि सभी शहरों, कैम्पसों, फैक्ट्रियों में ‘एक्शन कमेटियों’ का गठन कर, इस विरोध को और मुखर करते हुए, क्रान्तिकारी संघर्ष को आगे बढाएं!
· तमाम नागरिकता कानूनों का विरोध करो!
· धार्मिक, नस्लीय, जातीय और राष्ट्रीय उत्पीड़न का विरोध करो!
· दक्षिणपंथी मोदी सरकार को, जन-आन्दोलन के जरिए खदेड़ बाहर कर, मजदूरों-मेहनतकशों की सरकार की स्थापना करो!
· राष्ट्रीय सीमाओं को ध्वस्त कर दुनिया को समाजवादी संघ में एकजुट करो!
1947 के सांप्रदायिक विभाजन को उलटकर, भारतीय उपमहाद्वीप को एकजुट करते हुए, ‘दक्षिण एशियाई समाजवादी संघ’ के लिए संघर्ष तेज़ करो!
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वर्कर्स सोशलिस्ट पार्टी द्वारा जारी संपर्क: 9810081383
दुनिया को समाजवादी संघ में संगठित करने के लिए संघर्ष तेज़ करो!
1947 के सांप्रदायिक विभाजन को उलटकर, भारतीय उपमहाद्वीप को पुनः एकीकृत करते हुए, दक्षिण एशिया में संयुक्त समाजवादी संघ के लिए संघर्ष को आगे बढ़ाओ!
भारत के बड़े पूंजीपतियों की दलाल, मोदी सरकार, आर्थिक-राजनीतिक संकट में घिरी पूंजी की दरकती सत्ता को, मेहनतकश जनता के आक्रोश से बचाने में जुटी है. इसके लिए वह अंध-राष्ट्रवाद और हिन्दू-आधिपत्यवाद के ज़हरीले नश्तरों से, मेहनतकश जनता की एकता को छिन्न-भिन्न कर, धनकुबेरों के भ्रष्ट और लुटेरे कुराज को कायम रखने का हर संभव प्रयास कर रही है. हिन्दू बहुसंख्यकों के राजनीतिक रूप से पिछड़े हिस्सों को, पूंजीपतियों की सत्ता के पीछे बांधे रखने के लिए, मोदी सरकार, मुस्लिम उत्पीड़न को औज़ार बना रही है. नागरिकता कानून में संशोधन और एन.आर.सी इसी श्रृंखला की कड़ी हैं जिनके तहत नाज़ी जर्मनी की तर्ज़ पर, डिटेंशन कैम्पों का पूरा जाल फैलाया जा रहा है.
इस कुत्सित प्रयास में मोदी सरकार अकेली नहीं है. 2008 से विश्व पूंजीवाद के आर्थिक संकट में धंसते जाने के साथ-साथ, पूंजीवादी देशों में आपाधापी मच गई है. कल तक पूंजीवादी आधार पर वैश्वीकरण की डींग हांकते, इन देशों के इलीट शासक, अपनी सीमाओं को आप्रवास के लिए बंद करने और मेहनतकश जनता के हिस्सों को बाहर खदेड़ने में जुट गए हैं. राष्ट्र-राज्यों के संकीर्ण पिंजरों में कैद, पूंजी की ढहती-गिरती व्यवस्था, निरंतर फैलते संकट के इस दौर में, जनता के लिए रोटी और रोज़गार का प्रबंध करने में अक्षम होती जा रही है. बुर्जुआ सरकारों के सामने एकमात्र रास्ता है- अपनी सीमाओं को बंद करना और आबादी के बड़े हिस्सों को बाहर धकेलना.
पूंजीवाद के आम संकट के साथ ही युद्ध और दमन फ़ैल रहा है जिसके चलते बेरोज़गारी के साथ-साथ विस्थापन का संकट भी गहराता जा रहा है. संकट के इस भंवर में फंसे पूंजीवादी शासक अपने-अपने देशों की सीमाओं को बंद कर रहे हैं और आबादी के बड़े हिस्सों को बाहर खदेड़ देने पर आमादा हैं. अमेरिका, मेक्सिको के साथ लगती अपनी सीमाएं सील कर रहा है तो ब्रिटेन भारत पर आप्रवासी भारतीयों को वापस लेने के लिए दबाव बना रहा है. विस्थापन, पूंजीवाद के संकट को हल करने की जगह, उसे और गहरा बना रहा है. संकट से पैदा हुए और निरंतर फैलते जन-आक्रोश को, संकट के शिकार- विस्थापितों, शरणार्थियों- के सिर मढ़ते हुए, पूंजीवादी शासक, इसे मेहनतकश जनता के बीच नस्लीय, क्षेत्रीय और सांप्रदायिक आधार पर फूट डालने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं और जनता को भ्रमित करते, अपनी सत्ता को इस आक्रोश का निशाना बनने से बचाने में सफल हो रहे हैं.
मुस्लिम बहुल राज्यों में हिन्दू विस्थापितों को बसाकर और शेष राज्यों में मुस्लिम आप्रवास को कठोरता से नियंत्रित कर, मोदी सरकार, सत्ता पर अपनी पकड़ कायम रखना चाहती है. विपक्षी पार्टियां, मोदी की इस ज़हरीली सांप्रदायिक मुहिम का सीमित विरोध ही कर रही हैं. विपक्ष में दाएं-बाएं की ये सभी पार्टियां, भारत को सिर्फ ‘भारतीयों’ के लिए सुरक्षित रखने और ‘विदेशियों’ के लिए बंद करने पर, मोदी सरकार के साथ सहमत हैं. लेफ्ट पार्टियों सहित, विपक्ष की कोई भी पार्टी रोहिंग्या और बंगलादेशी आप्रवासियों के पक्ष में खड़ी नहीं हुई. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ‘विदेशी घुसपैठियों’ को रोकने के नाम पर एन.आर.सी. सबसे पहले नेहरु के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने ही लागू किया था और मोदी से पहले मनमोहन सरकार ने इसका नया मसौदा तैयार किया था.
इस अंधराष्ट्रवादी मुहिम का, जिसे मोदी सरकार ने गहरा और स्पष्ट सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की है, हम कड़ा विरोध करते हैं और सर्वहारा को इस षड्यंत्र के प्रति सचेत करते हैं. 1947 के दुर्भाग्यपूर्ण सांप्रदायिक विभाजन में धंसे, धार्मिक-क्षेत्रीय वैमनस्य को सुलगाते हुए, भारत के जनविरोधी शासक, अपनी सत्ता को अक्षुण्ण बनाए रखना चाहते हैं. 47’ के सांप्रदायिक विभाजन की भयावह त्रासदी, जिसमें 20 लाख से अधिक हताहत हुए थे, लूट और बलात्कारों के शिकार हुए थे, और दो करोड़ से भी अधिक विस्थापित हुए थे, दुनिया के इतिहास की सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी थी जिसने भारतीय उपमहाद्वीप की मेहनतकश जनता को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित कर, उसे पूंजीपति वर्ग के शासन के जुए तले रख दिया और साम्राज्यवाद विरोधी क्रांति को नष्ट कर दिया. 1947 से ही, निरंतर, अंधराष्ट्रवादी और सांप्रदायिक विषबेल को सींचते, भारत-पाकिस्तान और हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर मेहनतकश जनता को बांटते, लड़ाते पूंजीवादी शासक, समूचे दक्षिण एशिया में अपना शासन कायम रखे हुए हैं. मेहनतकश जनता को, भेड़ों की तरह, अपने नियंत्रण वाले राष्ट्रीय बाड़ों में घेरे हुए, पूंजीपतियों के राष्ट्रीय गिरोहों ने, उन्हें नारकीय जीवन स्थितियों में झोंक रखा है.
आज दुनिया के तमाम पूंजीवादी देश, एक दूसरे के खिलाफ गलाकाट प्रतियोगिता में जुटे हैं जो निरंतर हिंसक होती जा रही है और असीमित युद्धों, आतंकवाद और खूनखराबे से होती हुई दुनिया को तीसरे विश्वयुद्ध और नाभिकीय सर्वनाश की और खींच रही है. पूंजीवाद, दुनिया का एकीकरण नहीं कर सकता, यह सिर्फ उसे बांट सकता है. सिर्फ और सिर्फ विश्व समाजवादी क्रांति ही, पूंजीवाद द्वारा सृजित इन नारकीय स्थितियों से बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता है.
हम, राष्ट्रीय, नस्लीय या सांप्रदायिक आधार पर दुनिया के तमाम विभाजनों को ख़ारिज करते हैं. अन्तर्राष्ट्रीय सर्वहारा की ओर से हम उन तमाम बैरिकेडों को ध्वस्त करने का आह्वान करते हैं जो दुनिया को विभाजित करती हैं, सीमाएं खींचती हैं, आने-जाने, घूमने-फिरने, बसने या रोजगार की आज़ादी पर बंदिश लगाती हैं. हम पासपोर्ट-वीज़ा राज को ख़त्म करने के लिए और राष्ट्रीय सीमाओं को मेट देने के लिए, विश्व समाजवादी संघ के निर्माण के लिए, संघर्ष कर रहे हैं. इस क्रम में, हमारा फौरी लक्ष्य है: 1947 के सांप्रदायिक विभाजन को उलटकर, भारतीय उपमहाद्वीप को फिर से एकजुट करते हुए, ‘दक्षिण एशियाई समाजवादी संयुक्त राज्य’ की स्थापना.
दक्षिण एशिया में मौजूद बुर्जुआ सत्ताएं, जिनमें भारत की दक्षिणपंथी और हिन्दू प्रभुत्ववादी मोदी सरकार प्रमुख है, इस लक्ष्य को हासिल करने के रास्ते में, बड़ी बाधा हैं. इन्हें क्रांति के जरिए उलटते हुए, मजदूरों-मेहनतकशों की सरकारें कायम करके ही दक्षिण एशिया को एक समाजवादी संघ में एकजुट किया जा सकता है और संकीर्ण राष्ट्रीय सीमाओं और राष्ट्र-राज्यों का अंत किया जा सकता है.
नागरिकता कानून में, धार्मिक, सांप्रदायिक, नस्लीय या जातीय आधार पर छेड़छाड़ का विरोध करने के साथ ही, हम तमाम नागरिकता कानूनों और राष्ट्रीय सीमाओं का भी विरोध करते हैं.
हम युवाओं, सर्वहारा से अपील करते हैं कि सभी शहरों, कैम्पसों, फैक्ट्रियों में ‘एक्शन कमेटियों’ का गठन कर, इस विरोध को और मुखर करते हुए, क्रान्तिकारी संघर्ष को आगे बढाएं!
· तमाम नागरिकता कानूनों का विरोध करो!
· धार्मिक, नस्लीय, जातीय और राष्ट्रीय उत्पीड़न का विरोध करो!
· दक्षिणपंथी मोदी सरकार को, जन-आन्दोलन के जरिए खदेड़ बाहर कर, मजदूरों-मेहनतकशों की सरकार की स्थापना करो!
· राष्ट्रीय सीमाओं को ध्वस्त कर दुनिया को समाजवादी संघ में एकजुट करो!
1947 के सांप्रदायिक विभाजन को उलटकर, भारतीय उपमहाद्वीप को एकजुट करते हुए, ‘दक्षिण एशियाई समाजवादी संघ’ के लिए संघर्ष तेज़ करो!
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