- राम कुमार सविता, रामेश्वर दत्त/ ३०.९.२०१८
२८ सितम्बर की रात लगभग डेढ़ बजे, लखनऊ पुलिस ने एप्पल कंपनी के एक एग्जीक्यूटिव, विवेक तिवारी को, बीच सड़क पर गोली मार दी.
विवेक तिवारी, कंपनी की एक कर्मचारी, साना को, अपनी कार से, उसके घर छोड़ने जा रहा था. गोली मारने के लगभग एक घंटे बाद, विवेक की पत्नी को पुलिस ने जानबूझकर गलत सूचना दी कि विवेक का एक्सीडेंट हो गया है. हस्पताल पहुंची पत्नी को डोक्टरों ने भी मृत्यु का कारण नहीं बताया. जब पत्नी ने मृतक की कार की टूटी हुई विंडशील्ड देखी तो मामला समझ में आया.
आम तौर से पुलिस कांस्टेबलों को पिस्टल नहीं दी जातीं. मगर २०१३ से लखनऊ में कांस्टेबलों को पिस्टल दी गई हैं, चूंकि उत्तर प्रदेश की राजधानी होने के नाते, लखनऊ, शासक इलीट के लिए महत्वपूर्ण है.
उत्तर प्रदेश में झूठी मुठभेड़ें, आम परिघटना हैं. किसी से सुपारी लेकर, हफ्ता देने से इनकार करने पर, बिना पुलिस की अनुमति के अपराध करने पर, फर्जी एनकाउंटर होते रहते हैं. कुछ मामले तूल पकड़ लेते हैं तो मुकदमे कायम हो जाते हैं, कुछ में सजा भी होती हैं, मगर खेल चलता रहता है. कथित ईमानदार अफसर भी कानूनी प्रक्रिया की नपुंसकता को देखते हुए, शातिर अपराधियों को इन मुठभेड़ों में निपटाते रहे हैं. बढ़ते अपराधों और उनकी नृशंसता के चलते, इस मुठभेड़ों को सभ्य समाज में सहमति हासिल है.
इन गैर-कानूनी हत्याओं और पुलिस ज्यादतियों के शिकार आम तौर से गरीब और साधनहीन लोग बनते हैं, मध्यवर्ग इनसे अछूता रहता है.
विवेक का मामला इससे अलग था. वह एप्पल कंपनी का एग्जीक्यूटिव था और इसलिए उसकी हत्या ने तुरंत ही मध्यवर्ग के बीच और फलतः कॉर्पोरेट मीडिया और हलकों में सनसनी और बैचैनी पैदा कर दी. पुलिस की निरंकुशता, रातों-रात व्यापक आलोचना का मुद्दा बन गई. आरोपी कांस्टेबलों को गिरफ्तार कर मुकदमा कायम कर दिया गया और पुलिस चीफ ने माफ़ी मांगते हुए, प्रेस रिलीज़ जारी की.
विपक्षी पार्टियों ने उत्तर प्रदेश में हिन्दू-अंधराष्ट्रवाद की पैरोकार, धुर दक्षिणपंथी, भाजपा की योगी सरकार को निशाना बनाया. केंद्र में मोदी और उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के सत्ता में आने के साथ पुलिस आतंक में जबरदस्त वृद्धि हुई है, इसमें कोई दो राय नहीं हो सकतीं. लेकिन झूठी मुठभेड़ें, इससे पहले भी, उत्तर प्रदेश में अनवरत सिलसिला बनी रही हैं. इन मुठभेड़ों के आतंक को इस्तेमाल करके ही पुलिस भारी उगाही करती रही है.
पुलिस द्वारा की जाने वाली ये हत्याएं, पूरे भारत में और विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में, पुलिस अफसरों के लिए एक बहुत बड़ा उद्योग हैं. किसी की भी हत्या कर देना और फिर उस हत्या को एक फर्जी मुठभेड़ बना देना, पुलिस के लिए रोज़मर्रा का काम है.
मध्यवर्ग इन हत्याओं से खुद को अलग करके देखता रहा है, इसलिए कॉर्पोरेट एग्जीक्यूटिव की हत्या ने, मध्यवर्ग के बीच रोष पैदा किया है. पुलिस की ज्यादतियों पर शोर हुआ है.
अम्बेडकरी नेताओं ने, इस घटना के शिकार, विवेक तिवारी की ‘जाति’ पर फोकस करते हुए, अपने अनुयायियों के बीच, जाति आधारित घृणा प्रचार का सहारा लिया है. प्रकारांतर से, इस घटना के शिकार को सवर्ण बताते हुए, उन्होंने उसका मज़ाक उड़ाया है और पूरी जाति को घृणा प्रचार का निशाना बनाया है. यह करते हुए उन्होंने योगी सरकार को बड़ी जमानत दी है. अम्बेडकरी, पूंजीवाद के, पूंजी की सत्ता के बड़े पैरोकार हैं और जाति को आधार बनाकर वे सत्ता के खिलाफ रोष और प्रतिरोध को विभाजित करते हैं, उस पर पानी डालते हैं.
मीडिया को दिए विडियो बयान में, मृतक विवेक तिवारी की पत्नी ने कहा है कि, “हमने योगी जी को वोट दिया था और जब उनकी सरकार बनी तो हम बहुत खुश हुए थे. लेकिन उनकी पुलिस ने मेरे पति को मारकर मुझे विधवा कर दिया, मेरे बच्चों को अनाथ कर दिया”. यह बयान, उन सभी के लिए आंखें खोलने वाला है जो बुर्जुआ पार्टियों और नेताओं का, उनकी जनविरोधी सत्ता और सरकारों का समर्थन करते हैं, जो इतिहास से सबक नहीं लेना चाहते. उन्हें सिखाने के, इतिहास के अपने तरीके हैं, जो बहुत निर्मम हैं. फैलते अपराधों, दमन और उत्पीड़न के प्रति जो असंवेदनशील हैं, जो खुद को इनसे अलग रखकर देखते हैं, वे भ्रम में जी रहे हैं.
इस घटना का वृहत्तर पहलू है पूंजीवाद की व्यवस्था की चौतरफा नाकामी जिसके चलते एक तरफ तो अपराध पसरता जा रहा है, अधिक से अधिक नृशंस हो रहा है और दूसरी तरफ अपराध पर अंकुश लगाने के नाम पर पुलिस अपना आतंकी राज कायम कर रही है. आम जनता इस दोहरे जुए के नीचे पिस रही है. मध्यवर्ग के लोग कभी-कभी इस चलती चक्की के दो पाटों के बीच घुन की तरह पिस जाते हैं मगर गरीबों, मजलूमों के लिए तो यह रोज़ की कहानी है.
पूंजी का शासन, असुरक्षा, अपराध और आतंक का ही शासन हो सकता है! सड़ते पूंजीवाद का यह जनविरोधी शासन, जनता को और कुछ नहीं दे सकता!
विवेक तिवारी, कंपनी की एक कर्मचारी, साना को, अपनी कार से, उसके घर छोड़ने जा रहा था. गोली मारने के लगभग एक घंटे बाद, विवेक की पत्नी को पुलिस ने जानबूझकर गलत सूचना दी कि विवेक का एक्सीडेंट हो गया है. हस्पताल पहुंची पत्नी को डोक्टरों ने भी मृत्यु का कारण नहीं बताया. जब पत्नी ने मृतक की कार की टूटी हुई विंडशील्ड देखी तो मामला समझ में आया.
आम तौर से पुलिस कांस्टेबलों को पिस्टल नहीं दी जातीं. मगर २०१३ से लखनऊ में कांस्टेबलों को पिस्टल दी गई हैं, चूंकि उत्तर प्रदेश की राजधानी होने के नाते, लखनऊ, शासक इलीट के लिए महत्वपूर्ण है.
उत्तर प्रदेश में झूठी मुठभेड़ें, आम परिघटना हैं. किसी से सुपारी लेकर, हफ्ता देने से इनकार करने पर, बिना पुलिस की अनुमति के अपराध करने पर, फर्जी एनकाउंटर होते रहते हैं. कुछ मामले तूल पकड़ लेते हैं तो मुकदमे कायम हो जाते हैं, कुछ में सजा भी होती हैं, मगर खेल चलता रहता है. कथित ईमानदार अफसर भी कानूनी प्रक्रिया की नपुंसकता को देखते हुए, शातिर अपराधियों को इन मुठभेड़ों में निपटाते रहे हैं. बढ़ते अपराधों और उनकी नृशंसता के चलते, इस मुठभेड़ों को सभ्य समाज में सहमति हासिल है.
इन गैर-कानूनी हत्याओं और पुलिस ज्यादतियों के शिकार आम तौर से गरीब और साधनहीन लोग बनते हैं, मध्यवर्ग इनसे अछूता रहता है.
विवेक का मामला इससे अलग था. वह एप्पल कंपनी का एग्जीक्यूटिव था और इसलिए उसकी हत्या ने तुरंत ही मध्यवर्ग के बीच और फलतः कॉर्पोरेट मीडिया और हलकों में सनसनी और बैचैनी पैदा कर दी. पुलिस की निरंकुशता, रातों-रात व्यापक आलोचना का मुद्दा बन गई. आरोपी कांस्टेबलों को गिरफ्तार कर मुकदमा कायम कर दिया गया और पुलिस चीफ ने माफ़ी मांगते हुए, प्रेस रिलीज़ जारी की.
विपक्षी पार्टियों ने उत्तर प्रदेश में हिन्दू-अंधराष्ट्रवाद की पैरोकार, धुर दक्षिणपंथी, भाजपा की योगी सरकार को निशाना बनाया. केंद्र में मोदी और उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के सत्ता में आने के साथ पुलिस आतंक में जबरदस्त वृद्धि हुई है, इसमें कोई दो राय नहीं हो सकतीं. लेकिन झूठी मुठभेड़ें, इससे पहले भी, उत्तर प्रदेश में अनवरत सिलसिला बनी रही हैं. इन मुठभेड़ों के आतंक को इस्तेमाल करके ही पुलिस भारी उगाही करती रही है.
पुलिस द्वारा की जाने वाली ये हत्याएं, पूरे भारत में और विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में, पुलिस अफसरों के लिए एक बहुत बड़ा उद्योग हैं. किसी की भी हत्या कर देना और फिर उस हत्या को एक फर्जी मुठभेड़ बना देना, पुलिस के लिए रोज़मर्रा का काम है.
मध्यवर्ग इन हत्याओं से खुद को अलग करके देखता रहा है, इसलिए कॉर्पोरेट एग्जीक्यूटिव की हत्या ने, मध्यवर्ग के बीच रोष पैदा किया है. पुलिस की ज्यादतियों पर शोर हुआ है.
अम्बेडकरी नेताओं ने, इस घटना के शिकार, विवेक तिवारी की ‘जाति’ पर फोकस करते हुए, अपने अनुयायियों के बीच, जाति आधारित घृणा प्रचार का सहारा लिया है. प्रकारांतर से, इस घटना के शिकार को सवर्ण बताते हुए, उन्होंने उसका मज़ाक उड़ाया है और पूरी जाति को घृणा प्रचार का निशाना बनाया है. यह करते हुए उन्होंने योगी सरकार को बड़ी जमानत दी है. अम्बेडकरी, पूंजीवाद के, पूंजी की सत्ता के बड़े पैरोकार हैं और जाति को आधार बनाकर वे सत्ता के खिलाफ रोष और प्रतिरोध को विभाजित करते हैं, उस पर पानी डालते हैं.
मीडिया को दिए विडियो बयान में, मृतक विवेक तिवारी की पत्नी ने कहा है कि, “हमने योगी जी को वोट दिया था और जब उनकी सरकार बनी तो हम बहुत खुश हुए थे. लेकिन उनकी पुलिस ने मेरे पति को मारकर मुझे विधवा कर दिया, मेरे बच्चों को अनाथ कर दिया”. यह बयान, उन सभी के लिए आंखें खोलने वाला है जो बुर्जुआ पार्टियों और नेताओं का, उनकी जनविरोधी सत्ता और सरकारों का समर्थन करते हैं, जो इतिहास से सबक नहीं लेना चाहते. उन्हें सिखाने के, इतिहास के अपने तरीके हैं, जो बहुत निर्मम हैं. फैलते अपराधों, दमन और उत्पीड़न के प्रति जो असंवेदनशील हैं, जो खुद को इनसे अलग रखकर देखते हैं, वे भ्रम में जी रहे हैं.
इस घटना का वृहत्तर पहलू है पूंजीवाद की व्यवस्था की चौतरफा नाकामी जिसके चलते एक तरफ तो अपराध पसरता जा रहा है, अधिक से अधिक नृशंस हो रहा है और दूसरी तरफ अपराध पर अंकुश लगाने के नाम पर पुलिस अपना आतंकी राज कायम कर रही है. आम जनता इस दोहरे जुए के नीचे पिस रही है. मध्यवर्ग के लोग कभी-कभी इस चलती चक्की के दो पाटों के बीच घुन की तरह पिस जाते हैं मगर गरीबों, मजलूमों के लिए तो यह रोज़ की कहानी है.
पूंजी का शासन, असुरक्षा, अपराध और आतंक का ही शासन हो सकता है! सड़ते पूंजीवाद का यह जनविरोधी शासन, जनता को और कुछ नहीं दे सकता!
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