Friday, 7 April 2017

शराब ठेकों के खिलाफ फूटा जन-आक्रोश; दमन पर उतरीं सरकारें

- वर्कर्स सोशलिस्ट पार्टी

देश भर में बुर्जुआ सरकारों की शराब नीति जनता की ओर से सीधी चुनौती के घेरे में आ गई है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखण्ड, हरियाणा के विभिन्न शहरों में शराब की दुकानों के खिलाफ आन्दोलन हिंसक हो गए हैं. महिलाओं की अगुवाई वाले ये आन्दोलन शराब की दुकानों को ध्वस्त करने पर फोकस हैं. शराब की दुकानों के खिलाफ जहां-तहां ऐसे आन्दोलन होते रहे हैं मगर बुर्जुआ सरकारें इनकी अनदेखी करके अपनी शराब नीति को लागू करती रही हैं.

ज्यादा से ज्यादा ठेके खोलते जाने की सरकारी शराब नीति के अत्यंत घातक परिणाम सामने आए हैं. परिवारों, विशेष रूप से गरीब, मेहनतकश परिवारों में पुरुषों में शराब की लत ने परिवार की महिलाओं और बच्चों को अत्यंत सीमित आर्थिक साधनों से भी वंचित कर दिया है. ज्यादा, घटिया, जहरीली शराब पीकर मरने वालों के अलावा शराब पीकर सड़कों पर गाड़ी चलाने और दुर्घटना करने वाले, और दूसरे विभिन्न अपराध करने वालों के कारण, मौतों और शिकारों की संख्या तेज़ी से बढती चली जा रही है.

शराब ठेकों के खिलाफ महिलाओं का यह आन्दोलन पूरी तरह स्वयंस्फूर्त है. यह पूंजीवादी सरकारों की लुटेरी, मुनाफाखोर नीतियों के विरुद्ध मेहनतकश जनता के सबसे गरीब हिस्सों का विद्रोह है.

बुर्जुआ सरकारों ने, शराब के उत्पादन और वितरण पर एकाधिकार स्थापित कर, शराब के गोरखधंधे को आम आदमी की लूट का स्थायी औज़ार बना लिया है. मेहनतकश जनता के स्वास्थ्य और समूचे परिवारों को तबाह कर ये सरकारें मेहनतकश जनता के खून-पसीने की कमाई को निचोड़कर अपने खजाने भर रही हैं. सबसे भारी एक्साइज ड्यूटी शराब पर ही वसूली जा रही है.

शराब बेचने परोसने में सरकारों की रूचि इस कदर है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रीय और राज्य मार्गों पर शराब ठेकों को बंद कर दिए जाने के आदेश के बाद उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड और कई दूसरी राज्य सरकारों ने इन ठेकों को बचाने के लिए, सुप्रीम कोर्ट के आदेश को धता बताते, राज्य-मार्गों को ही अनुसूची से हटाकर, नगर-मार्गों में बदल दिया है, ताकि ठेके कायम रह सकें.

इन सभी प्रदेशों में भाजपा नीत दक्षिणपंथी सरकारें हैं जिनकी थोथी नैतिकता और वास्तविक प्राथमिकताओं की पोल शराब विरोधी आन्दोलन ने खोलकर रख दी है.

शराब के ये ठेके, अधिकतर शासन-प्रशासन में मौजूद प्रभावशाली नेताओं, अफसरों के ही बेनामी प्रतिष्ठान हैं. सत्ता और शराब ठेकेदारों के बीच इस सीधे गठजोड़ के चलते देश भर में बाकायदा एक माफिया संगठित हो चुका है, जिसका सत्ता के गलियारों में भीतर तक प्रभावी दखल है. १९७९ में जनता पार्टी की सरकार को गिराने में मोहन मीकिन्स की भूमिका से लेकर यूनाइटेड स्पिरिट के मालिक विजय माल्या की राज्यसभा सदस्यता को कई बुर्जुआ पार्टियों के समर्थन और उसे भारत से भागने में भाजपा नेताओं द्वारा सीधी मदद इसके स्पष्ट प्रमाण हैं.

जैसे-जैसे शराब के खिलाफ आन्दोलन तीखा हुआ है सरकारें नंगी होकर दमन पर उतर रही हैं. इस बार आन्दोलन एक साथ कई राज्यों में सक्रिय हुआ है और शुरुआत से ही इसने सीधी कार्रवाई का रास्ता पकड़ा है. धरने-प्रदर्शनों की जगह सीधे शराब के ठेकों पर हमला.

शराब ठेकों पर महिलाओं के शुरुआती हमलों ने सरकारों को औचक स्थिति में पाया. मगर इसके बाद सरकारें पीठ सीधी कर दमन की तरफ बढ़ी हैं.

कल ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आन्दोलनकारियों को कानून हाथ में न लेने की चेतावनी दी है. इसके साथ ही मुक़दमे दर्ज करने और गिरफ्तारियों का सिलसिला शुरू हो गया है. पिछले २४ घंटों में, अकेले उत्तर प्रदेश में ही, सैंकड़ों लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है और दर्जनों मुक़दमे दर्ज किए गए हैं. कई गिरफ्तारियां उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में की गई हैं. बुजुर्ग स्वतंत्रता सेनानी चिमन लाल को आगरा में शराब ठेकों के खिलाफ आत्मदाह की धमकी के बाद गिरफ्तार कर लिया गया है. पूरे राज्य में पुलिस ने अलर्ट घोषित किया है. प्रदर्शनों की वीडियोग्राफी के आदेश दिए गए हैं ताकि प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा सके.

इस सबको अनदेखा करते, आन्दोलनकारी महिलाएं, जो सरकार की कुत्सित शराब नीति की सर्वाधिक शिकार हैं, शराब ठेकों के खिलाफ अपनी मुहिम जारी रखे हुए हैं. योगी आदित्यनाथ की चेतावनी के तुरंत बाद बदायूं जिले के परसिया गांव में महिलाओं ने शराब ठेकेदार और उसके कारिंदों को खदेड़ते हुए ठेके को तोड़ डाला. उत्तर प्रदेश में बरेली, लखनऊ, आगरा, वाराणसी और मुरादाबाद जिले आन्दोलन से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. अकेले बरेली में २२ ठेके तोड़ दिए गए हैं. लखनऊ और आगरा में १७, वाराणसी में १५, मेरठ में १३, कानपुर में ९ और गोरखपुर में २ ठेके तोड़े गए हैं.

आन्दोलन का सबसे ज्यादा असर मध्यप्रदेश में है जहां सैंकड़ों की तादाद में जमा होकर औरतें और बच्चे शराब ठेकों को ध्वस्त कर रहे हैं.  हरियाणा और पंजाब में भी आन्दोलन फ़ैल रहा है.

एक जिले से दूसरे जिले और एक राज्य से दूसरे राज्य होता हुआ आन्दोलन तेज़ी से फ़ैल रहा है. ऐसे ही आन्दोलन के चलते बिहार सरकार को आनन-फानन में इस वर्ष फरवरी में प्रदेश भर में शराब पर पाबन्दी लगानी पड़ी थी. डगमगाते, पहले २ फरवरी को देसी शराब पर पाबन्दी लगाईं गई मगर आन्दोलन नहीं रुका तो तमाम शराब पर पाबन्दी लगानी पड़ी.

झूठी और मलिन नैतिकता झाड़ने वाले वाले भगवा गोरक्षकों की सरकारें शराब के इस व्यवसाय को संरक्षण देने और विकसित करने में सबसे आगे हैं.

शराब के इस शैतान व्यवसाय को चलाकर पूंजीवादी सरकारें मेहनतकश जनता को जमकर लूटती हैं और अपनी जेब भरती हैं. पूंजीवाद जिन अगण्य सामाजिक, पारिवारिक कुंठाओं को जन्म देता है और जिस किस्म का सामाजिक अलगाव पैदा करता है उस सबके बीच हताशा, घुटन और अवसाद से घिरी आबादी की बड़ी संख्या, इससे फौरी निजात पाने के लिए, नशे का सहारा लेती है. पूंजीवादी समाजों में धर्म और शराब एक ही भूमिका अदा करते हैं.  

शराब के व्यापर में भी बुर्जुआ राज्य, करों का जबरदस्त बोझ लादकर, बढ़िया शराब को तो मेहनतकश जनता की पकड़ से बाहर रखता ही है, सबसे घटिया शराब के लिए भी उसे निचोड़ लेता है और इस लूट से अपने खजाने भरता है. यह कुत्सित व्यवसाय, सर्वत्र पूंजीवादी सरकारों की आय का प्रमुख स्रोत है.

पूंजीवादी सरकारें, जनता के लिए पीने के पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं तक का प्रबंध सुचारू नहीं कर पातीं किन्तु हर गली-नुक्कड़ पर, अगम्य जगहों में भी शराब की दुकानें खोली गई हैं. जनता के आंदोलनों के दबाव में दुकानें सिर्फ अस्थायी रूप से ही हटाई जाती हैं किन्तु वे फिर खुल जाती हैं. शराब ठेकों के इस जाल का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि अकेले कानपुर में ही ७२० दुकानें हैं. ये सभी दुकान अब आन्दोलन के चलते बंद हैं.

भारत जैसे देशों में जहां जनता की विशाल बहुसंख्या दलित-दमित है और उसके पास संस्कृति का वह न्यूनतम स्तर भी मौजूद नहीं है जिसे विकसित देशों ने दो सदी पहले ही हासिल कर लिया था, शराब का खुला वितरण घातक परिणाम सामने लाया है, जिसके विरुद्ध पीड़ित मेहनतकश जनता, विशेषतः महिलाओं का आक्रोश पूरी तरह जायज है. विषैली शराब नीति के साथ-साथ इस पिछड़े सांस्कृतिक स्तर के लिए भी भारत के बुर्जुआ शासक और उनके नियंत्रण में विशिष्ट, कुंठित पूंजीवादी विकास ही जिम्मेदार है.

अलबत्ता शराब के खिलाफ यह आन्दोलन, मेहनतकश जनता को उन दुष्परिणामों से निजात नहीं दिला सकता जिन्हें पूंजीवाद की समूची व्यवस्था अपनी समग्रता में मेहनतकश जनता के ऊपर जबरन लादती है. वे कुंठाएं और अवसादपूर्ण जीवन स्थितियां सिर्फ शराब के ठेके तोड़ देने से गायब नहीं हो जायेंगी बल्कि और स्पष्ट और विकट रूप में सामने आएंगी जिनकी सृष्टि पूंजीवाद की बाज़ारू, अमानवीय, शोषक और असंवेदनशील व्यवस्था निरंतर करती रहती है. इनके चलते, शराब के ठेके न होने की स्थिति में लोग नशे के दूसरे स्रोतों की ओर मुड़ेंगे.

मेहनतकश जनता को, इन पाशविक, बर्बर और घृणित जीवन स्थितियों के विरुद्ध संघर्ष के लिए, उन्हें बदल डालने के लिए, कमर कसनी होगी. जिस जोश और उत्साह के साथ वे ठेकों को ध्वस्त करने के लिए सामने आ रहे हैं उसी के साथ उन्हें पूंजीवाद की व्यवस्था को भी ध्वस्त करने के लिए क्रान्तिकारी संघर्ष को तीखा करना होगा.

जब तक सत्ता पूंजीपतियों के हाथ है मेहनतकश जनता की लूट और उत्पीड़न जारी रहेगा और दुनिया उसके लिए नर्क ही बनी रहेगी. इस नर्क से न तो शराब और न शराबबंदी ही बाहर निकाल सकती है. इस नर्क को उलटना होगा. क्रांति की ओर, क्रान्तिकारी संघर्ष की ओर बढ़ना होगा, उससे जुड़ना होगा.

सर्वहारा और मेहनतकश जनता के बीच सक्रिय और चेतन तत्वों से हम अपील करते हैं कि वे वर्कर्स सोशलिस्ट पार्टी के गिर्द जमा हों और क्रान्ति के लिए संघर्ष में हिस्सेदार बनें.

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