साथियो,
२०१२ में
मारुति-सुजुकी की मानेसर स्थित फैक्ट्री में प्रबंधन द्वारा मजदूर यूनियन को तोड़ने
के मकसद से उकसाए गए एक विवाद में पांच साल बाद ३१ मजदूरों को सज़ा दी गई है. यह
विवाद, एक मजदूर जियालाल को सुपरवाइजर द्वारा गाली-गलौच से शुरू हुआ था, जिसका
विरोध करने पर प्रबंधन ने भाड़े के बाउंसर बुलाकर मजदूरों पर हमला कराया था.
हत्या, आगज़नी, दंगा-फसाद जैसे फर्जी आरोपों में १३ को आजीवन
और १८ को ३ से ५ वर्ष सश्रम कारावास दिया गया है. १३ में, १२ मजदूर यूनियन के
पदाधिकारी हैं जो २०११ से प्रबंधन के विरुद्ध मजदूर संघर्ष का नेतृत्व कर रहे थे. यह
मजदूर संघर्ष को कुचलने के लिए बदले की कार्रवाई है!
अदालत ने खुद
यह माना कि फैक्ट्री में आग कैसे लगी इसका कोई प्रमाण नहीं है. अदालत ने यह भी
माना कि पुलिस ने फैक्ट्री प्रबंधन से मिलकर मजदूरों को फंसाने के लिए झूठे
साक्ष्य तैयार कर अदालत में प्रस्तुत किए. मगर प्रबंधन और पुलिस के खिलाफ कार्रवाई
के बजाय, आरोपी मजदूरों को ही, मनमानी करते, अपने ही कानून की धज्जी उड़ाते, कड़ी
सजा दे दीं. जिन ११७ मजदूरों को अदालत ने निर्दोष करार दिया वे भी कई साल जेल में
काट चुके थे. साक्ष्य के अभाव में इन्हें बरी तो करना पड़ा मगर इसकी भरपाई शेष
मज़दूरों को निर्मम सजाएं देकर की गई.
किसी भी
साक्ष्य के अभाव के बावजूद, मजदूरों पर लाद दी गईं ये सख्त सजाएं, बुर्जुआ राज्य
द्वारा मजदूरों के प्रति अन्याय, पक्षपात और मनमानी का जीवंत प्रमाण हैं जो
संभ्रांत शासकों की नीयत और कॉर्पोरेट के साथ उनकी मिलीभगत का खुलासा करती हैं.
स्पष्ट है कि
भारत को अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों का स्वर्ग बनाने को आतुर पूंजीवादी शासक, एक तरफ
तो मजदूरों के बीच आतंक कायम करना चाहते हैं और दूसरी तरफ दुनिया भर में
पूंजी-निवेशकों को यह सन्देश देना चाहते हैं कि मजदूरों का दमन करने में वे किसी
भी हद तक जाने को तैयार हैं.
मजदूरों के
विरुद्ध, प्रबंधन, पुलिस, प्रशासन, सरकार, पार्टियां, कानून, अदालत सब एकजुट हैं.
सब मिलकर मेहनतकश मजदूरों के शोषण, उत्पीड़न और दमन पर आमादा हैं. क्रूर दमन का यह
सिलसिला, हरियाणा में सत्तासीन कांग्रेस पार्टी की तत्कालीन हुड्डा सरकार ने शुरू
किया था और भाजपा की वर्तमान खट्टर सरकार ने इसे अंजाम तक पहुंचाया है.
साथियों! यह
वर्गयुद्ध है! इस युद्ध में अपनी अन्तर्राष्ट्रीय वर्ग-शक्तियों को एकजुट करके ही मजदूर-वर्ग
विजय हासिल कर सकता है.
लम्बे समय से
झूठे ट्रेड-यूनियन नेताओं और रंग-बिरंगी पार्टियों ने हमें यह वर्ग-एकता हासिल
करने और इसके आधार पर स्वतंत्र वर्ग-संघर्ष को आगे बढाने से रोके रखा है. ये फर्जी
नेता और पार्टियां हमें अमीरों, संभ्रांतो की पक्षधर सरकारों से विनती करने, उनके
अफसरों, नेताओं के आगे मिमियाने का झूठा रास्ता दिखाती रही हैं, जिससे कुछ हासिल
नहीं है. हमें इस रास्ते को पूरी तरह ख़ारिज करते हुए इन फर्जी नेताओं, पार्टियों
से सम्बन्ध तोड़ना होगा और वर्ग-संघर्ष का रास्ता पकड़ना होगा. रंग-बिरंगे झंडे-बैनर
उठाए ये पार्टियां और नेता दरअसल पूंजीवादी
व्यवस्था से मजबूती से बंधे हैं और मजदूरों, मेहनतकशों को भी क्रान्तिकारी संघर्ष
से विरत कर व्यवस्था के पीछे बांधे रखना चाहते हैं. मजदूरों, मेहनतकशों का हित, पूंजीवाद
की इस व्यवस्था से बंधे रहने में नहीं बल्कि इसे ख़ारिज कर समाजवादी क्रांति की ओर आगे
बढ़ने में निहित है.
पूंजीवादी
लोकतंत्र, बड़े-पूंजीपतियों, कॉर्पोरेटों की
तानाशाही के अलावा और कुछ नहीं है. जब तक राजनीतिक सत्ता इन पूंजीपतियों,
कॉर्पोरेटों के हाथ है, मज़दूर-मेहनतकश इसी तरह शोषण, दमन की अंधी चक्की में पिसते
रहेंगे. इसलिए मजदूर-वर्ग के संघर्ष का पहला ध्येय है- राजनीतिक सत्ता को पूंजीपति
वर्ग के हाथ से छीनना. पूंजीवादी सरकारों को उलटकर, मजदूर-किसान सरकारों की
स्थापना.
मारुति
मजदूरों का मौजूदा संघर्ष, अंतर्रराष्ट्रीय मजदूर-वर्ग द्वारा विश्व-पूंजीवाद को
ध्वस्त कर समाजवाद की स्थापना के लिए चलाए जा रहे इस व्यापक, क्रान्तिकारी संघर्ष का ही
हिस्सा है!
साथियों! हम
पर थोपे गए अन्याय के विरुद्ध, प्रतिकार का एकमात्र रास्ता यह है कि हम अपने वर्ग,
मजदूर-वर्ग, की अन्तर्राष्ट्रीय कतारों को आवाज़ दें, उनसे मदद की अपील करें. उनसे
कहें कि जब तक मारुति मजदूरों पर थोपा गया यह क्रूर फैसला ख़ारिज नहीं होता दुनिया
की किसी भी बंदरगाह, तट या हवाई अड्डे पर, भारत को आने-जाने वाले माल को उतारा-चढ़ाया
न जाए. इसके साथ ही तुरंत मानेसर से धारूहेड़ा और नीमराणा तक समूचे औद्योगिक
क्षेत्र से एक ‘मजदूर परिषद्’ बुलाई जाय जिसमें हर फैक्ट्री से दो चुने हुए
प्रतिनिधि हिस्सा लें. यह परिषद्, इस क्रूर और पक्षपातपूर्ण फैसले को रद्द करने की
घोषणा करे और इसे लागू करने के लिए आम हड़ताल की तैयारी शुरू करे.
- वर्कर्स
सोशलिस्ट पार्टी
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