Saturday, 31 January 2015

निकिता ख्रुश्चेव और वाम-विपक्ष के विरुद्ध उसकी मुहिम

-राजेश त्यागी/ 31.1.2015

स्तालिनवादियों ने ख्रुश्चेव को बारम्बार स्टालिन-विरोधी साबित करने और झूठमूठ ही त्रात्सकी से जोड़ने की हास्यास्पद कोशिश की है. ऐतिहासिक तथ्य, हमें बिलकुल दूसरे निष्कर्षों पर ले जाते हैं. 

स्टालिन के सबसे विश्वस्त नेताओं में एक था ख्रुश्चेव. ख्रुश्चेव, स्टालिन का न सिर्फ अनन्य प्रशंसक था, बल्कि उसके कार्यक्रम से जीवन-पर्यंत बंधा रहा.

इसे इतिहास की विडम्बना नहीं तो और क्या कहेंगे कि स्टालिन के इस भक्त, ख्रुश्चेव का व्यक्तिगत चरित्र, जैसे खुद स्टालिन के अपने चरित्र की कार्बन कॉपी था.

स्टालिन की ही तरह, ख्रुश्चेव भी अत्यंत निर्धन ग्रामीण परिवार में पैदा हुआ था और पढ़-लिख नहीं सका था. वह स्टालिन की ही तरह औसत दर्जे का व्यक्ति था. युजोव्का के तकनीकी स्कूल में उसके अध्यापक का कहना था कि वह मंदबुद्धि छात्र था. स्टालिन की ही तरह, ख्रुश्चेव की भी मार्क्सवाद के सिद्धांतों में न कोई रूचि थी, न योगदान. स्टालिन की ही तरह वह भी प्राधिकार के प्रति निष्ठा और भक्ति रखता था, विवादों से दूर रहता था, किनारे बैठकर तमाशा देखता था और अंत में विजेता के साथ हो लेता था. उच्चस्थ पदाधिकारियों के आदेशों की पालना ही उसके लिए ‘राजनीति’ थी और वह कभी भी बहसों में हिस्सा नहीं लेता था.

१९५३ में स्टालिन की मृत्यु के बाद, १९५६ में संपन्न सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी की बीसवीं कांग्रेस ने, ख्रुश्चेव के नेतृत्व में, सर्वसम्मति से स्टालिन की जो आलोचना की, वह बिलकुल सतही थी, जो स्टालिनवाद की किसी भी क्रांति-विरोधी प्रस्थापना को उलटती नहीं थी बल्कि उसके अंतर्य को सुरक्षित करते हुए स्टालिन पर व्यक्तिगत आक्षेपों तक ही सीमित थी. यह आलोचना, स्टालिनवाद के समूचे प्रतिक्रांतिकारी अंतर्य को सुरक्षित रखते हुए, ख्रुश्चेव, बेरिया, कगानोविच, मालेनकोव, वोरोशिलोव, बुल्गानिन और मोलोतोव जैसे उन दर्जनों क्रांति-विरोधियों को जमानत देती थी, जो स्टालिन के तहत पार्टी और सत्ता के नाभिक का हिस्सा थे, जिन्होंने लाखों बोल्शेविक क्रांतिकारियों के कत्लेआम और क्रांति का गला घोंटने में बराबर भागीदारी की थी और जो सोवियत और विश्व सर्वहारा के अपराधी थे.

बीसवीं कांग्रेस की इस आलोचना पर चर्चा से पहले आइये ख्रुश्चेव की पूरी भूमिका और स्टालिन के साथ उसके संबंधों की जांच करें.

ख्रुश्चेव का राजनीतिक जीवन १९१८ में, मेंशेविकों की ओर झुकाव के साथ शुरू होता है. अगस्त १९२२ में वह युज़ोव्का में तकनीकी स्कूल में ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए भर्ती हुआ और स्कूल में पार्टी समिति का सचिव नियुक्त हुआ तथा युजोव्का शहर की पार्टी समिति का सदस्य भी बना. चूंकि पार्टी में त्रात्सकी और वाम-विपक्ष का वर्चस्व था, इसलिए वह उनसे जुड़ा. मगर शक्ति संतुलन वाम-विपक्ष के विरुद्ध होता देख, ख्रुश्चेव जल्द ही स्तालिनवादियों के साथ हो लिया.

नया शक्ति संतुलन, पश्चिम में सर्वहारा क्रांतियों की पराजय के चलते, रूस के भीतर और बाहर, सर्वहारा और पार्टी कार्यकर्ताओं की पिछड़ी पंक्तियों के बीच फैली हताशा का परिणाम था, जिसकी चरम परिणति हुई लेनिन की मृत्यु के साथ. सर्वहारा की पराजय के साथ ही, उसके प्रतिनिधियों की पराजय और प्रतिक्रांति का उभार निश्चित था. स्तालिनवादी इसी प्रतिक्रांति के प्रतिनिधि थे. सोवियत सत्ता, मजदूरों-किसानों के दोहरे वर्गीय आलम्ब पर टिकी थी. जैसे-जैसे क्रान्तिकारी सर्वहारा, पश्चिम में- हंगरी, चेकोस्लोवाकिया, जर्मनी में- पराजित होता गया, विश्व-समाजवादी क्रांति का उपक्रम दूर होता नज़र आने लगा. किसानों के समर्थन पर निर्भरता कम होने के बजाय बढ़ने लगी और उन्हें रियायतें देनी पड़ीं. नई आर्थिक नीति इसी का परिणाम थी. यह नीति अल्पकाल के लिए लागू की गई थी, मगर इसने देहाती कुलकों (धनी किसानों) के एक पूरे वर्ग को जन्म दे दिया था. १९२३-२५ में सोवियत समाज के हर हिस्से पर इन कुलकों का वर्चस्व दिखाई दे रहा था. पार्टी और सत्ता के भीतर यह वर्चस्व, ब्यूरोक्रेसी और दक्षिणपंथी उभार के रूप में सामने आया, जिसके नेता बुखारिन और स्टालिन थे. इस धड़े ने विश्व-सर्वहारा क्रांति के उपक्रम से फोकस हटाने के नाम पर उसे तिलांजलि देते हुए, ‘एक देश में समाजवाद’ का नारा दिया. इसका सीधा अर्थ था- एक देश में समाजवाद और शेष में पूंजीवाद- की स्थिति को आधिकारिक मान्यता, यानि विश्व-बूर्ज्वाजी के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की वकालत. 

उधर त्रात्सकी के नेतृत्व वाले वाम-विपक्ष ने इस प्रतिक्रांतिकारी नीति का खुला विरोध करते हुए, कुलकों की ओर से उत्पन्न खतरे से आगाह किया और ‘नई आर्थिक नीति’ का अंत करने और कुलक वर्ग को द्रवित करने की मांग की. अक्टूबर १९२३ में, ४६ शीर्ष बोल्शेविक नेताओं ने इस घोषणा का अनुमोदन करते हुए हस्ताक्षर किए. वाम-विपक्ष के विरुद्ध, स्टालिन, ज़िनोविएव, और कामेनेव ने बाकायदा एक त्रिकोण कायम कर लिया जिसे बुखारिन और रीकोव का समर्थन हासिल था. इस त्रिकोण ने ‘कुलकों’ की मौजूदगी से इनकार करते हुए, उसे वाम-विपक्ष की परिकल्पना कहकर ख़ारिज किया. १९२४ में लेनिन की मृत्यु ने प्रतिक्रिया को और दृढ़ता प्रदान की. लेनिन लेवी के नाम पर, स्टालिन द्वारा पार्टी में भर्ती किये गए ढाई लाख नए सदस्यों, जिनमें से अधिकतर ने क्रांति में हिस्सा नहीं लिया था, और पश्चिमी सर्वहारा की पराजयों के चलते, यह क्रांति-विरोधी त्रिकोण सुदृढ़ होता चला गया. इस नेतृत्व की बोगस नीतियों के चलते, १९२६ में ब्रिटिश खदान मजदूरों की हड़ताल में पराजय और अगले ही वर्ष चीनी क्रांति में सर्वहारा की विध्वंसकारी पराजय ने, इसे और भी सुदृढ़ कर दिया. इसके चलते, जून १९२४ में पार्टी की तेरहवीं कांग्रेस में वाम-विपक्ष की हार और प्रतिक्रांतिकारी त्रिकोण की विजय हुई और जनवरी १९२५ में वाम-विपक्ष के नेता, त्रात्सकी को मंत्रिपद से हटा दिया गया. 

१९२५ में कुलकों का वर्चस्व और ब्यूरोक्रेसी का शिकंजा स्पष्ट होने लगा तो ज़िनोविएव और कामेनेव जैसे नेताओं ने स्टालिन-बुखारिन-रीकोव का साथ छोड़ते हुए उनका विरोध शुरू किया, मगर दिसंबर १९२५ में पार्टी की चौदहवीं कांग्रेस में पराजित हुए. इस पराजय के बाद ज़िनोविएव और कामेनेव, ट्रोट्स्की के वाम-विपक्ष में शामिल हुए, मगर तब तक पार्टी पर दक्षिणपंथियों का शिकंजा और भी मज़बूत हो चुका था और जुलाई-अक्टूबर १९२६ के बीच वाम-विपक्ष को पार्टी के भीतर पराजय मिली और इसके नेताओं को पोलित-ब्यूरो से निकाल दिया गया. अक्टूबर १९२७ में वाम-विपक्ष के शेष सदस्यों को पार्टी की केन्द्रीय-समिति से भी निकाल दिया गया. अगले महीने, नवम्बर १९२७ में,  त्रात्सकी और ज़िनोविएव को पार्टी से ही निकाल दिया गया. दिसंबर १९२७ में पार्टी की पंद्रहवीं कांग्रेस ने त्रात्सकी और वाम-विपक्ष को पार्टी विरोधी घोषित किया और इसके तमाम नेताओं और समर्थकों को पार्टी से निकाल दिया. वाम-विपक्ष के मुख्य नेताओं के यहूदी होने का भी स्टालिन ने, दुनिया में यहूदी-विरोधी वातावरण के बीच, जमकर इस्तेमाल किया.

१९२८ में कामेनेव और ज़िनोविएव ने स्टालिन के समक्ष समर्पण कर दिया, जबकि त्रात्सकी ने विरोध को जारी रखा. १९२८ के शुरू में त्रात्सकी को रूस के भीतर ही निर्वासन दिया गया और १९२९ के शुरू में उसे रूस से ही निष्कासित कर दिया गया.

इस बीच ‘नई आर्थिक नीति’ के चलते, कुलकों का वर्चस्व बहुत मज़बूत हो गया था, जिससे सोवियत सत्ता सीधे खतरे में थी. त्रात्सकी और वाम-विपक्ष का सफाया करने के बाद अब स्टालिन ने बुखारिन-रीकोव से खुद को अलग करते हुए, उन्हें इस कुलक वर्चस्व का समर्थक और दक्षिणपंथी कहते हुए, निशाना बनाया और कुलकों के विरोध के नाम पर ‘बलात सामूहिकीकरण’ की नीति अपनाई. इस नई नीति ने रूस में खेती को पूरी तरह विनाश के कगार पर ला खड़ा किया. यह नीति ‘वाम-विपक्ष’ द्वारा प्रस्तावित नीति के निकट दीखती हुई भी उससे कोसों दूर थी.

स्तालिनवादी प्रतिक्रियावाद के विरुद्ध अभियान को आगे बढाते, त्रात्सकी ने १९३० में ‘अंतर्राष्ट्रीय वाम विपक्ष’ की स्थापना की, जबकि १९२९-३४ के बीच बहुत से अवसरवादियों ने वापस स्टालिन की पूंछ पकड़ी. १९३४-३७ के बीच जारी स्टालिन के “शुद्धिकरण अभियान” में, “वाम विपक्ष” के हजारों कार्यकर्ताओं के अलावा, ये सभी शीर्ष बोल्शेविक नेता भी, झूठे मास्को मुकदमों में फंसाकर, स्टालिन द्वारा ख़त्म कर दिए गए.

इस वक़्त तक पार्टी पर स्तालिनवादियों का पूर्ण नियंत्रण कायम हो चुका था. सत्ता और दबदबे से प्रभावित, अपने हजारों समवय-समकालीनों की ही तरह, ख्रुश्चेव ने भी कभी उन मुद्दों को समझने का प्रयास नहीं किया, जिन पर वाम-विपक्ष द्वारा स्तालिनवाद की आलोचना आधारित थी. ख्रुश्चेव और उस जैसे उन हजारों लोगों की, जिन्हें लेनिन-लेवी के नाम पर पार्टी में भर्ती ही इसलिए किया गया था कि जिससे तपे-मंजे बोल्शेविक नेताओं को अल्पमत में डालकर किनारे लगाया जा सके, यही भूमिका थी कि वे सत्ता के साथ चलें और उसका अंध-समर्थन करें.

ख्रुश्चेव की राजनीतिक उपलब्धियों में, स्टालिन के वफादार लाज़ार कगानोविच और स्टालिन की दूसरी पत्नी और अपनी सहपाठी, नादेज्दा ऐलिलुएवा, से नजदीकी शामिल थी. १९२५ में कगानोविच, यूक्रेन पार्टी समिति का सचिव बना. १९२५ में ही ख्रुश्चेव, यूक्रेन में पार्टी की नौवीं कांग्रेस में, कगानोविच से मिला, जो उस कांग्रेस का अध्यक्ष था. इसके बाद, कगानोविच के संरक्षण और फिर सीधे स्टालिन की मदद से, ख्रुश्चेव, पार्टी के भीतर ऊंचे से ऊंचे उठता गया. 


ख्रुश्चेव, मास्को में, १९२७ में संपन्न, पार्टी की उस पंद्रहवीं कांग्रेस में मौजूद था, जिसमें वाम-विपक्ष की पराजय हुई थी. इस कांग्रेस में ख्रुश्चेव, पहली बार स्टालिन से मिला था और उसने कगानोविच के आदेश पर, वाम-विपक्ष के खिलाफ स्टालिन के पक्ष में वोट दिया था. वह स्टालिन के प्राधिकार से अत्यंत प्रभावित हुआ था. मई १९३० में स्टालिन को लिखे एक पत्र में कगानोविच ने गर्व के साथ उसे अपना चेला बताया था. नादेज्दा, जिसने जल्द ही स्टालिन से दुखी और निराश होकर आत्महत्या कर ली थी और स्टालिन पर गंभीर आरोप लगाते हुए चिट्ठी छोड़ी थी, सहपाठी ख्रुश्चेव पर भरोसा करती थी. मगर ख्रुश्चेव, स्टालिन के आदेश पर,  नादेज्दा पर जासूसी करता था. कगानोविच और नादेज्दा से अपनी निकटता के चलते, ख्रुश्चेव, स्टालिन के काफी करीब आ गया और आजीवन उसके आदेशों का भक्ति-प्रवणता के साथ पालन करता रहा.

जून १९३० में सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी की सोलहवीं कांग्रेस में हिस्सा लेने के बाद, ख्रुश्चेव ने मास्को औद्योगिक संस्थान में स्टालिन का भाषण सुना और स्टालिन की प्रशंसा करते हुए टिप्पणी की कि, “यह है वह व्यक्ति जो जानता है कि हमारे मस्तिष्कों और ऊर्जा को सही उद्देश्य के लिए कैसे इस्तेमाल किया जाय”. इस प्रभाव और प्रशंसा से प्रसन्न स्टालिन ने ख्रुश्चेव को मास्को औद्योगिक संस्थान का पार्टी सचिव नियुक्त कर दिया. प्राधिकार के समक्ष सर झुकाने की, ख्रुश्चेव की यह चारित्रिक विशिष्टता, जीवन भर कायम रही.

१९३१ में, मास्को के बौमन जिले के पार्टी सचिव ए.पी. शिरीन की गिरफ़्तारी और फांसी के साथ, ख्रुश्चेव को पहले उसकी जगह और फिर क्रास्नाया प्रेस्निया जिले के पार्टी सचिव रयुटिन को, हटाकर ख्रुश्चेव को उसकी जगह नियुक्त कर दिया गया. रयुटिन, स्टालिन का पक्का समर्थक था जिसने छह वर्ष वाम-विपक्ष के विरुद्ध स्टालिन को समर्थन और सहयोग दिया था. अप्रैल १९२९ में कम्युनिस्ट पार्टी की सोलहवीं कांफ्रेंस में रयुटिन केन्द्रीय समिति के उम्मीदवार सदस्य के रूप में निर्वाचित हुआ था. मगर तभी रयुटिन के हाथ स्टालिन की वह फाइल आई जिसमें स्टालिन के, क्रांतिपूर्व रूस में, बोल्शेविक पार्टी के भीतर, जारशाही ख़ुफ़िया पुलिस का एजेंट होने के सारे सबूत मौजूद थे. रयुटिन, स्टालिन के विरुद्ध हो गया और जून १९३० में पार्टी की सोलहवीं कांग्रेस में रयुटिन ने दो पम्फलेट जारी करके स्टालिन का विरोध करते, उसे ख़ुफ़िया पुलिस का एजेंट और क्रांति का जल्लाद कहा.

इससे पहले बोल्शेविक केन्द्रीय समिति के भीतर छिपे ओखराना एजेंट, रोमन मेलिनोव्सकी, का मेन्शेविक नेता मर्तोव ने पर्दाफाश किया था, जिससे लेनिन और दूसरे नेता हतप्रभ रह गए थे.

स्टालिन ने रयुटिन को तुरंत गिरफ्तार करने और गोली मारने की मांग की मगर उसका मामला पार्टी के केन्द्रीय नियंत्रण कमीशन को सौंपा गया, जिसमें रयुटिन १७ जनवरी १९३१ को बरी हुआ और पार्टी और सरकार में उसके पद वापस मिल गए.

इसके बाद रयुटिन ने दो पम्फलेट, “स्टालिन और सर्वहारा अधिनायकत्व का संकट” तथा “सभी पार्टी सदस्यों से अपील”, जारी करके स्टालिन पर ओखराना पुलिस का ‘डबल एजेंट’ होने और क्रांति का गला घोंटने के सीधे आरोप लगाए. २१ अगस्त १९३२ को ज़िनोविएव और कामेनेव सहित २० शीर्ष बोल्शेविक नेता, रयुटिन के इन पम्फलेटों पर विचार के लिए पीटर पेत्रोव्सकी के फ्लैट पर जमा हुए, मगर इसकी सूचना स्टालिन को मिल गई. फ्लैट की तलाशी हुई और पीटर पेत्रोव्सकी सहित सभी लोग गिरफ्तार हुए. स्टालिन ने ‘सोवियत सत्ता के विरुद्ध साज़िश’ का आरोप लगाते हुए, सभी को गोली मार देने की मांग की. मगर पहले जी.पी.यू. अध्यक्ष मेंझिन्सकी की ओर से और फिर पोलिट ब्यूरो में भारी विरोध के चलते, यह तुरंत नहीं हो सका. फिर भी सभी को लम्बी सजाएँ हुईं. पेत्रोव्सकी को दस वर्ष की सजा काटने के बाद गोली मार दी गई. रयुटिन, को पहले दस और फिर पंद्रह वर्ष की सजा हुई और फिर उसे, उसकी पत्नी और बच्चों को गोली मार दी गई. ए.पी. शीरीन और बाद में मेंझिन्सकी पर भी स्टालिन को यही संदेह था कि वे उसकी ओखराना फाइल के बारे में जानते हैं. इससे पहले भी ब्लम्किन जैसे नेता इस संदेह के चलते मौत के घाट उतारे गए थे और यह हत्यारी मुहिम तुखाचेव्सकी जैसे कितने ही शीर्ष बोल्शेविक नेताओं और कमांडरों को अपना ग्रास बनाती रही.

इस दमनचक्र के ही दौरान, स्टालिन की पत्नी नादेज्दा ने, स्टालिन के दुर्व्यवहार से तंग आकर, आत्महत्या कर ली और स्टालिन पर गंभीर आरोप लगाते चिट्ठी छोड़ी. स्टालिन की बेटी स्वेतलाना ने लिखा है कि यह चिट्ठी व्यक्तिगत ही नहीं, राजनीतिक भी थी और स्टालिन इस चिट्ठी को पढ़कर बहुत क्रोध में आ गया था. स्टालिन, नादेज्दा की शवयात्रा तक में शामिल नहीं हुआ. इससे पहले भी नादेज्दा ने एक पार्टी में झगडे के दौरान, स्टालिन के ओखराना इतिहास को इंगित करते कहा था कि उसे पता है कि स्टालिन कैसा क्रान्तिकारी है.

स्टालिन जबरदस्त पियक्कड़ था और पूरी रात, वोडका पीते, बेहूदा पश्चिमी फिल्में देखते, जिनकी भाषा भी वह नहीं समझता था, व्यतीत करना, उसका शौक था. उसका अंत भी वोडका के नशे में धुत्त, बिस्तर से नीचे ज़मीन पर गिरकर हुआ. इन पार्टियों में, अपनी पत्नी से दुर्व्यवहार और अपमान उसका नित्यक्रम था.

इस सबके बावजूद, जो लोग एक अंध-भक्त के रूप में स्टालिन के साथ चिपके थे, ख्रुश्चेव उनमें प्रमुख था. इस भक्ति के सहारे ही ख्रुश्चेव पार्टी और सरकार के भीतर, स्टालिन के आशीर्वाद से, ऊपर ही ऊपर चढ़ता गया.  

१९३४ में स्टालिन ने ख्रुश्चेव को मास्को पार्टी समिति का सचिव नियुक्त कर दिया. हालांकि मास्को मेट्रो के निर्माण का काम वक़्त से पूरा कर पाने में ख्रुश्चेव असमर्थ रहा, मगर स्टालिन ने तब भी उसे रूस का सर्वोच्च पुरस्कार ‘ऑर्डर ऑफ़ लेनिन’ देकर सम्मानित किया. उसी वर्ष, स्टालिन ने ख्रुश्चेव को, एक करोड़ से अधिक आबादी वाले क्षेत्र में मास्को क्षेत्रीय समिति का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया. स्टालिन के दफ्तर के रिकॉर्ड बताते हैं कि १९३२ से ही ख्रुश्चेव उसके दफ्तर में होने वाली मीटिंगों में मौजूद रहा करता था. स्टालिन प्रायः उसे अपने ‘डाचा’ में भी रात्रि-भोजों में बुलाया करता था.

१९३४ में ही स्टालिन ने वाम-विपक्ष के नेताओं को झूठे मामलों में फंसाकर, कुख्यात ‘मास्को मुकदमों’ की शुरुआत की. पार्टी और लाल सेना के शीर्ष बोल्शेविक नेताओं के विरुद्ध, स्टालिन द्वारा निदेशित इस खुली साजिश का समर्थन करते हुए, ख्रुश्चेव ने कहा: “प्रत्येक व्यक्ति जो महान स्टालिन के नेतृत्व में हमारी पार्टी द्वारा हासिल की गई सफलताओं से खुश है, वह त्रात्सकी-ज़िनोविएव गैंग के भाड़े के फासिस्ट कुत्तों के लिए सिर्फ एक ही उपयुक्त शब्द ढूंढ सकता है- कि उन्हें गोली मार दी जाय”.

मास्को में ३८ पार्टी नेताओं में से ३५ को गोली मार दी गई. १४६ पार्टी सचिवों में से सिर्फ १० को छोड़ा गया. स्टालिन को खुश करने के लिए, ख्रुश्चेव ने अपने ही साथियों को मौत के घाट उतारा. इलाकों के हिसाब से कार्यकर्ताओं और नेताओं को गिरफ्तार करने के लिए, कोटे बांटे गए. ख्रुश्चेव ने स्टालिन को लिखा कि ४१,३०५ विरोधी गिरफ्तार किये गए हैं जिनमें से ८५०० को मौत दी जानी चाहिए.

१९३७ में स्टालिन ने ख्रुश्चेव को यूक्रेन में वाम-विपक्ष के विरुद्ध हत्यारी मुहिम को तेज़ करने का आदेश देकर किएव भेजा, जो वहां पहले ही से जारी थी. एक को छोड़कर, यूक्रेन पोलित-ब्यूरो और सचिवालय के सभी सदस्य और लाल सेना के कमांडर गिरफ्तार हुए और सभी को गोली मार दी गईं.

स्टालिन और ख्रुश्चेव जैसे अपराधियों द्वारा निदेशित इन हत्या अभियानों की यह व्यापकता दिखाती है कि वाम-विपक्ष के लिए समर्थन और स्टालिन का विरोध कितना व्यापक था और किस तरह इस विरोध को चरम हिंसा के बूते पर दबाया गया.

इस अंध सेवा के बदले, जनवरी १९३८ में ख्रुश्चेव को पोलित ब्यूरो का उम्मीदवार सदस्य बना दिया गया और मार्च १९३९ में पूर्ण सदस्य.

अगस्त १९३९ में हिटलर के साथ स्टालिन ने युद्ध संधि की तो इसका व्यापक विरोध हुआ, मगर ख्रुश्चेव, स्टालिन का समर्थन करता रहा और हिटलर की सहायता के लिए १७ सितम्बर को जब सोवियत फौजें पूर्वी पोलैंड में घुसीं तो स्टालिन के निर्देश पर, ख्रुश्चेव भी साथ गया.

जर्मनी द्वारा रूस पर हमला करने के बाद मई १२, १९४२ को स्टालिन और ख्रुश्चेव की सांझी रणनीति के तहत खार्कोव पर हमले की योजना बनाई गई जो बुरी तरह असफल हुई. इसमें लगभग दो लाख सडसठ हज़ार सैनिक खेत रहे और दो लाख से ज्यादा पकडे गए. स्टालिन ने इस पराजय का दोष ख्रुश्चेव के सर मढ़कर उसे गोली मारने की योजना तो बनाई पर फिर उसे रोक दिया. कुछ ही वक़्त बाद ख्रुश्चेव का बेटा, जो पायलट था, विमान सहित गायब हो गया. बाद में उसकी पत्नी को जासूसी के आरोप में गिरफ्तार करके श्रम कैंप भेज दिया गया और बच्चों को अनाथालय. इस पर भी जबान सिले रखकर, ख्रुश्चेव ने स्टालिन के लिए भक्ति का प्रमाण दिया और खुद को बचा ले गया.

द्वितीय विश्व-युद्ध की समाप्ति पर भी ख्रुश्चेव कई वर्ष यूक्रेन में ही रहा. स्टालिन के जीवन के अंतिम वर्षों में ही जाकर, स्टालिन ने ख्रुश्चेव को फिर से मास्को बुला लिया. इन दिनों स्टालिन बहुत डरा हुआ और बदहवास था. उसे पार्टी और सत्ता पर से अपनी पकड़ छूटती दिखाई दे रही थी. अपने सबसे विश्वासपात्र लोगों को अपनी सुरक्षा के लिए वह मास्को में जमा कर रहा था. १ मार्च १९५३ को वोडका में धुत्त स्टालिन बिस्तर से नीचे लुढ़का मिला और पांच मार्च को उसकी मृत्यु हो गई.

स्टालिन की मृत्यु के साथ ही, स्टालिन के उत्तराधिकारियों, मुख्यतः मालेनकोव, मोलोतोव, बेरिया और ख्रुश्चेव के बीच सत्ता के लिए जंग शुरू हुई. हालांकि, मालेनकोव और बेरिया सत्ता के ज्यादा मज़बूत दावेदार थे, मगर ख्रुश्चेव ने मालेनकोव से मिलकर बेरिया और उसके पांच साथियों को गिरफ्तार करके सभी को गुप्त मुकदमे चलाकर, गोली मार दी और बाद में मालेनकोव को भी किनारे करके, पार्टी और सरकार के भीतर सत्ता हथिया ली. बेरिया, अपने आपराधिक कारनामों को स्टालिन के माथे मढ़कर बच निकलने की योजना बना रहा था, जिसके हिस्से के तौर पर दस लाख राजनीतिक बंदियों की रिहाई प्रस्तावित थी. 

ख्रुश्चेव ने मालेनकोव पर आरोप लगाया कि स्टालिन के अंतिम वर्षों में वह दमनचक्र का मुख्य हिस्सा था और लेनिनग्राद के झूठे मुकदमों में उसकी भूमिका थी और मालेनकोव की जगह बुल्गानिन को दे दी. इस समूचे अभियान में मार्शल झूकोव ने ख्रुश्चेव की पूरी मदद की. १९५८ में सत्ता पर पूर्ण नियंत्रण हासिल करते ही ख्रुश्चेव ने मार्शल झूकोव की छुट्टी कर दी.

वे सारे नेता जो कल तक स्टालिन के तमाम जनविरोधी अपराधों में शामिल थे, अब अपनी खाल बचाने के लिए, नए सत्ता संघर्ष में, जनवाद के पैरोकार बन रहे थे और नित नए जनवादी प्रस्ताव लाने में एक दूसरे से होड़ लगा रहे थे. १९५५ के अंत तक दसियों लाख राजनीतिक बंदी रिहा कर दिए गए.

२५ फरवरी १९५६ को ख्रुश्चेव ने, मोलोतोव और मालेनकोव की सहमति से, कम्युनिस्ट पार्टी की बीसवीं कांग्रेस में  प्रतिनिधि सम्मलेन को गुप्त रिपोर्ट जारी की जिसमें स्टालिन की आलोचना की गई. 

दुनिया भर में, स्तालिनवादी नेताओं और पार्टियों को इस सारहीन आलोचना का स्वागत करते देर नहीं लगी. यह सतही आलोचना, न सिर्फ स्टालिन की खुली और गहन आलोचना से, ख्रुश्चेव और दूसरे उत्तराधिकारियों का स्पष्ट इनकार था, बल्कि किसी भी तरह यह स्टालिनवाद की राजनीतिक-सैद्धांतिक आलोचना नहीं थी. यह तीन दशकों से जारी, स्तालिनवादियों के सामूहिक अपराधकर्मों के लिए स्टालिन को दोष देकर, सबको बरी कर देती थी, और स्टालिनवाद की राजनीतिक सैद्धांतिक आधारशिला को नंगा करने से इनकार करती थी.

स्टालिन की आलोचना बहुत सतही मामला था. वास्तव में, पूरे मामले की बुनियाद में स्टालिनवाद के वे क्रांति-विरोधी सिद्धांत थे जिनके चलते सोवियत सत्ता अपने ही खोल के भीतर गलती-सड़ती रही, जिसने अपनी सबसे सुन्दर शक्तियों को नष्ट कर दिया और प्रतिक्रांति को विजयी हो जाने दिया. इन सिद्धांतों में मुख्य था सर्वहारा अंतर्राष्ट्रीयता को तिलांजलि देते हुए ‘एक देश में समाजवाद’ की ओर रुख, यानि पूंजीवादी देशों के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व.

ख्रुश्चेव की यह रिपोर्ट स्टालिनवाद की ऐसी किसी भी प्रस्थापना पर हमला करना तो दूर, उसका जिक्र तक नहीं करती. यह आलोचना, त्रात्सकी द्वारा स्टालिनवाद की उस आलोचना से कोसों दूर है, जिसमें स्पष्ट रूप से स्टालिनवाद को सोवियत ब्यूरोक्रेसी के क्रांति-विरोधी अभियान के रूप में नंगा किया गया है. ख्रुश्चेव की यह रिपोर्ट त्रात्सकी के इस संघर्ष के विषय में कुछ नहीं कहती, एक शब्द भी नहीं.

ख्रुश्चेव सहित स्टालिन के तमाम उत्तराधिकारियों ने स्टालिन की यह सतही आलोचना सिर्फ इसलिए की कि वे अपने अपराधों को भी स्टालिन के सर मढ़कर बरी हो सकें. जबकि ये सभी नेता, क्रांति के विरुद्ध इन अपराधों में बराबर के भागीदार रहे.

स्टालिन के चेले, ख्रुश्चेव को स्टालिन-विरोधी कहते हुए, तीन दशक के इस इतिहास को छिपाने-दबाने की कोशिश करते हैं और इस तथ्य पर पर्दा डालते हैं कि ख्रुश्चेव तो स्टालिन का औजार भर था. ख्रुश्चेव को ‘संशोधनवादी’ कहते हुए वे यह भूल जाते हैं कि ख्रुश्चेव ने मार्क्सवाद में किसी संशोधन की मांग नहीं की. उसने तो महज़ स्टालिन द्वारा किये गए संशोधनों को अपनाया और लागू किया. इसी तरह ख्रुश्चेव और त्रात्सकी को झूठ-मूठ ही एक दूसरे के साथ जोड़ते हुए, स्तालिनवादी नेता, युवा कार्यकर्ताओं को धोखा देते हैं. जल्लाद ख्रुश्चेव ने, स्टालिन के निर्देश पर, त्रात्सकी और उसके वाम-विपक्ष के नेताओं और कार्यकर्ताओं को चुन-चुनकर ख़त्म किया. 

स्टालिन और ख्रुश्चेव के बीच गहन एकात्मता, उनकी राजनीतिक एकजुटता, और ट्रोट्स्की से उनकी सांझी शत्रुता का इससे स्पष्ट प्रमाण और क्या हो सकता है कि जिस स्पेनिश स्तालिनवादी, रेमन मर्केडर ने स्टालिन के निर्देश पर १९४० में मेक्सिको में ट्रोट्स्की की हिम कुदाल से हत्या की, और जिसे इस अपराध के लिए मेक्सिको की जेल में रहते, उसकी अनुपस्थिति में, स्टालिन ने १९४० में ही 'ऑर्डर ऑफ़ लेनिन' पुरस्कार से नवाजा, उसे २० वर्ष की कैद से छूटने के बाद, और स्टालिन की मृत्यु हो जाने के बावजूद, ख्रुश्चेव ने १९६१ में इस कृत्य के लिए 'हीरो ऑफ़ द सोवियत यूनियन' के सर्वोच्च सोवियत पुरस्कार से फिर सम्मानित किया.

ख्रुश्चेव स्टालिन के जीवन-पर्यंत तो उसके प्रति समर्पित रहा ही, उसकी मृत्यु के बाद भी स्टालिनवाद की बुनियादी प्रस्थापनाओं का अनुसरण करते हुए पूंजीवादी दुनिया के साथ ‘शांतिपूर्ण सह अस्तित्व’ की वकालत करता रहा. स्टालिन की ही तरह, क्रेमलिन के राष्ट्रीय हितों का अनुसरण करते, ख्रुश्चेव, १९६४ में अपनी पदच्युति तक, संयुक्त राष्ट्र का हिस्सा बना रहा, आइजनहावर, कैनेडी, मिकोयन, माओ, फिदेल सबके साथ रिश्ते कायम किये रहा और दुनिया भर में सर्वहारा की स्वतंत्र पहलकदमी को कुचलने के लिए भरसक प्रयत्न करता रहा.

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