Tuesday, 17 February 2015

‘क्रोनी कैपिटलिज्म’ और आम आदमी पार्टी द्वारा उसका विरोध

-राजेश त्यागी/ १८.२.२०१५

आम आदमी पार्टी (AAP) ने बार-बार कहा है कि वह कैपिटलिज्म (पूंजीवाद) की विरोधी नहीं है, बल्कि क्रोनी कैपिटलिज्म की विरोधी है. वास्तव में क्रोनी कैपिटलिज्म का यह विरोध AAP के पूरे रणनीतिक कार्यक्रम की धुरी है. AAP की ‘भ्रष्टाचार विरोधी’ मुहिम के पीछे भी क्रोनी कैपिटलिज्म का यही विरोध मुखर है.

AAP के इस विरोध और उसके रणनीतिक कार्यक्रम को समझने के लिए जरूरी है कि पहले हम ‘क्रोनी कैपिटलिज्म’ की प्रकृति और भूमिका को संक्षेप में समझ लें.

वास्तव में क्रोनी कैपिटलिज्म, साम्राज्यवाद के युग का पूंजीवाद ही है. इस युग में पूंजीपतियों के बीच खुली और संगत प्रतियोगिता की जगह अब कार्पोरेशनों के बीच उठा-पटक, खरीद-फरोख्त, हिंसा, खींचतान और खूनखराबा ले लेता है. ये कारपोरेशन अर्थव्यवस्था के केंद्र में आ जाते हैं और उस पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लेते हैं. इस दौर में पूंजी की अर्थ-सत्ता और राज्य-सत्ता एक दूसरे से पूरी तरह आलिंगनबद्ध हो जाती हैं.

विकसित पूंजीवादी देशों में, जहां पूंजीवाद का इतिहास जनवादी परम्पराओं का हमराही रहा है, वहां यह प्रक्रिया अधिक सुसंगत तरीके से पहले ही संपन्न हो चुकी है और पूंजीवादी कार्पोरेशनों, पार्टियों तथा सरकारों के बीच सीधे गठजोड़ में परिलक्षित होती हैं.

मगर भारत जैसे पिछड़े पूंजीवादी देशों में जहां न तो पूंजीवाद के पास जनवादी इतिहास है और न स्वतंत्र विकास की ज़मीन, और जो दुनिया के, विशेषतः अग्रणी पूंजीवादी देशों के, साम्राज्यवाद की अत्यंत उच्च अवस्था में पहुंच जाने के बाद, इस प्रक्रिया से गुज़र रहे हैं, अर्थसत्ता पर नियंत्रण के लिए पूंजीपतियों और कार्पोरेशनों के बीच गलाकाट संघर्ष, और भी अधिक निर्मम, बेशर्म, अन्यायपूर्ण और प्रकट होता है.

‘क्रोनी कैपिटलिज्म’ मुख्यतः ऐतिहासिक रूप से इन पिछड़े देशों की लाक्षणिक विशेषता बन गया है. विश्व-पूंजीवाद के इस पूर्ण पतन के दौर में, पिछड़े देशों में पूँजीवाद जो तकनीक और पूंजी दोनों के मामले में अग्रणी देशों का मोहताज़ रहता है, पूंजीवाद के सबसे वीभत्स रूप को सामने लाता है. इन देशों में राष्ट्रीय सरकारें, अंतर्राष्ट्रीय पूंजी के हाथों सस्ते मानव-श्रम और प्राकृतिक संसाधनों की लूट और राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग की हिस्सेदारी के लिए सौदेबाज़ी का औज़ार भर बन जाती हैं. यहां भी प्रतियोगिता गायब हो जाती है, राजसत्ता और अर्थसत्ता गड्ड-मड्ड हो जाती हैं और मुट्ठी भर एकाधिकारी कार्पोरेशनों/ ट्रस्टों की बांदी बन जाती हैं. पूंजी-बाज़ार में खुली प्रतियोगिता की जगह राजसत्ता पर कब्ज़े के लिए जोड़-तोड़ ले लेती है. बाज़ार और सत्ता के बीच की सीमा-रेखा गायब हो जाती है. एकाधिकारी गुटों में संगठित हो पूंजीवादी निगम, एक-दूसरे को पछाड़ने के लिए, राजसत्ता पर कब्ज़े के लिए होड़ लगाते हैं. सत्ता कभी एक तो कभी दूसरे गुट के हाथ रहती है. पूंजीपतियों के गुटों के साथ राजसत्ता के इस विलयन को क्रोनी-कैपिटलिज्म कहा जाता है.

पूंजीपति, विशेष रूप से जो गुट सत्ता से दूर होते हैं, ‘क्रोनी-कैपिटलिज्म’ को कोसते ‘स्वस्थ-प्रतियोगिता’ की मांग करते हैं, भ्रष्टाचार और सरकारी अनाचार के खिलाफ शोर मचाते हैं. ऐसा करने के लिए वे नेताओं और पार्टियों का सहारा लेते हैं, मगर साथ ही खुद सत्ता पर प्रभाव हासिल करने के लिए चूहा-दौड़ में भी हिस्सा लेते हैं. मगर पूंजीवाद की यह गति, अलग-अलग पूंजीपतियों और कार्पोरेशनों की भी आत्मगत इच्छाओं से स्वतंत्र रहती है और साम्राज्यवाद के विकास के साथ अकाट्य सम्बन्ध में बंधी विकसित होती है.

राजसत्ता पर विरोधी गुटों के नियंत्रण को मंसूख करने और उसे अपने नियंत्रण में लेने के लिए, पूंजीवादी विरोध-पक्ष की पार्टियां ‘क्रोनी-कैपिटलिज्म’ ‘भ्रष्टाचार’ ‘सामाजिक-अन्याय’ जैसे शगूफे छोडती हैं, जिनका वास्तविक दायरा, पूंजीपतियों के बीच सत्ता-संघर्ष के परे कतई नहीं जाता.

मगर संकीर्ण, तुच्छ और पूंजीपतियों के निहित स्वार्थों पर आधारित इस विरोध को, साम्राज्यवाद की आम अवस्थाओं के चलते बदहाल हो रही मेहनतकश जनता को, इन अवस्थाओं से मुक्ति और बदलाव के रास्ते के तौर पर परोसा जाता है. इस छद्म-छल से एक ओर तो मेहनतकश जनता को उसकी बदतर होती जा रही जीवन-स्थितियों के वास्तविक कारण –पूंजीवाद- को देखने समझने से और उसके खिलाफ विकल्प तलाशने और लड़ने से रोक दिया जाता है और दूसरी ओर क्रोनी-कैपिटलिज्म, भ्रष्टाचार, अन्याय के  ‘विरोध’ के नाम पर उसे वापस पूंजीवाद के उसी पुराने खूंटे से बाँध दिया जाता है.

आम आदमी पार्टी के नेता जब बार-बार यह दावा करते हैं कि उनका विरोध पूंजीवाद से नहीं, बल्कि क्रोनी-पूंजीवाद से है, तो वे पूंजीपतियों के इसी विरोध-पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं और साथ ही दसियों लाख मेहनतकश जनता से खुली ठगी कर रहे होते हैं.

इसे और भी स्पष्ट करते, AAP नेताओं का कहना है कि रूस, चीन में समाजवाद असफल हो गया है और पूंजीवाद ही एकमात्र विकल्प शेष है. क्रोनी-पूंजीवाद का इनका विरोध दूसरे सिरे पर पूंजीवाद की इस पैरोकारी और समाजवाद के खुले विरोध से अभिन्न रूप से जुड़ा है और उसका अकाट्य हिस्सा है. क्रोनी-पूंजीवाद के इनके विरोध का अर्थ, वास्तव में पूंजीवाद का समर्थन और साथ ही समाजवाद का खुला विरोध है.

एक राजनीतिक कार्यक्रम के रूप में, क्रोनी-पूंजीवाद को लेकर AAP का यह विरोध कितना भी लोकरंजक क्यों न हो मगर यह प्रतिक्रियावादी है, चूंकि क्रांति के जरिये, पूंजीवाद के ध्वंस का विरोध करते हुए, यह इतिहास के चक्र को उल्टा घुमाकर पूंजीवाद को ‘स्वस्थ प्रतियोगिता’ के दशकों पुराने दौर में वापस घसीट ले जाने की झूठी मरीचिका पर टिका है. AAP का यह कार्यक्रम, अपने अंतर्य में बुर्जुआ-सुधारवाद का कार्यक्रम है, जो खून और हिंसा से लथपथ, सर से पैर तक भ्रष्ट, सडांध मारते पूंजीवाद को सुधारने का, झूठा दावा पेश करता है.

मजदूर वर्ग और तमाम मेहनतकश जनता का हित इस गल-सड़ चुके क्रोनी पूंजीवाद को वापस ‘संत-पूंजीवाद’ की झूठी मरीचिका की ओर लौटा ले जाने में नहीं, बल्कि पूँजीवाद के विनाश और समाजवाद की स्थापना में है, जिसका रास्ता सुधार नहीं, क्रांति है.

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