Thursday, 15 January 2015

मार्क्सवाद-लेनिनवाद के संशोधन का सबसे विकृत रूप है- स्टालिनवाद!


स्टालिनवाद हमारे वक़्त में संशोधनवाद का सबसे विकृत रूप है. इस गंभीर विषय को पाठकों के लिए सुग्राह्य बनाने के लिए हम प्रश्नोत्तरी में विषय का स्पष्टीकरण कर रहे हैं.


प्रश्न: संशोधनवाद से आपका क्या अभिप्राय है?

वर्कर सोशलिस्ट: संशोधनवाद से हमारा अभिप्राय है- मार्क्सवाद-लेनिनवाद की बुनियादी, रणनीतिक प्रस्थापनाओं को संशोधित करने की मांग. ऐसी मांग जो क्रान्तिकारी मार्क्सवाद के मूल अंतर्य पर, उसकी सैद्धांतिक आत्मा पर हमला करती है और उस नींव को ही ढहा देती है, जिस पर क्रान्तिकारी मार्क्सवाद आधारित है. संशोधनवादी, क्रान्तिकारी मार्क्सवाद के शिविर में बूर्ज्वाजी की एजेंसी हैं, जिसका काम है मार्क्सवाद पर छद्म और परोक्ष आक्रमण करते हुए, उसकी क्रान्तिकारी धार को कुंद करना.

प्रश्न: संशोधनवाद को विगत सदी में आप मार्क्सवाद के विरुद्ध ऐसे किन आक्रमणों के साथ जोड़ते हैं?

वर्कर सोशलिस्ट: संशोधनवाद बहुत से रूपों में सामने आया है. मगर पिछली शताब्दी में इसे हम मुख्य रूप से पहले काउत्स्कीवाद और फिर स्टालिनवाद के साथ जोड़ते हैं. संशोधनवाद के इन दोनों ही भिन्न-रूपों ने मार्क्सवाद की मूल प्रस्थापनाओं को अपने हमले का निशाना बनाया है. जहाँ काउत्स्की ने ‘अति-साम्राज्यवाद’ की बात करते सर्वहारा क्रांतियों की सम्भावना को नकार दिया, वहीँ स्टालिन ने ‘एक देश में समाजवाद’ के बोगस प्रोजेक्ट को विश्व सर्वहारा क्रांति के विरुद्ध हथियार बना लिया.

प्रश्न: क्या आप ख्रुश्चेव को संशोधनवादी नहीं मानते?

उत्तर: ख्रुश्चेव निश्चित रूप से संशोधनवाद का पैरोकार है. मगर कौन से संशोधनवाद का? स्पष्ट रूप से स्तालिनवादी संशोधनवाद का! ख्रुश्चेव ने स्टालिन से स्वतंत्र किसी संशोधन की मांग नहीं की, उसने सिर्फ स्तालिनवादी संशोधनवाद की राह का चुनाव् किया और क्रान्तिकारी मार्क्सवाद का विरोध. ख्रुश्चेव, संशोधनवाद की जिस राह का यात्री है, उसका प्रणेता, स्टालिन है.

प्रश्न: मगर ख्रुश्चेव ने तो सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी की बीसवीं कांग्रेस में स्टालिन की आलोचना की थी और स्तालिनवादी ख्रुश्चेव को स्टालिन का विरोधी मानते हैं!

वर्कर सोशलिस्ट: स्तालिनवादी प्रोपेगेंडा के शिकार न बनें, खुश्चेव के राजनीतिक जीवन और कैरियर का अध्ययन करें. ख्रुश्चेव, स्टालिन का विरोधी नहीं, बल्कि उसके अति विश्वासपात्र नेताओं में से एक था जिसे खुद स्टालिन ने पार्टी में भरती किया था. ख्रुश्चेव, ट्रोट्स्की के नेतृत्व वाले वाम-विपक्ष और शीर्ष बोल्शेविक नेताओं के सफाए की मुहिम में स्टालिन का दायां हाथ था, जिसने हजारों बोल्शेविक क्रांतिकारियों को स्टालिन के निर्देशों पर मौत के घाट उतारा था. स्टालिन के सबसे विश्वस्त कारिंदों में से एक, ख्रुश्चेव, स्टालिन के तमाम क्रांति-विरोधी अपराधों में शामिल रहा. स्टालिन की मृत्यु के बाद, पार्टी और सोवियत जनता में अपनी खाल बचाने के उद्देश्य से उसने स्टालिन की सतही आलोचना की जो स्टालिन को तानाशाह, क्रूर, व्यक्तिवादी और सनकी बताने से आगे नहीं गई. यह आलोचना व्यर्थ थी और स्टालिनवादी संशोधनवाद को छूती तक नहीं थी.

प्रश्न: तो क्या आप ख्रुश्चेव द्वारा स्टालिन की आलोचना से सहमत नहीं हैं?

वर्कर सोशलिस्ट: हमारा विरोध स्टालिन से नहीं, बल्कि स्टालिनवाद से है, जो मार्क्सवाद का विरोधी है और संशोधनवाद के सिवा कुछ नहीं है. ख्रुश्चेव द्वारा स्टालिन की आलोचना का चरित्र व्यक्तिगत और बोगस है. वह स्तालिनवादी संशोधनवाद पर हमला नहीं करती, बल्कि व्यक्तिगत हमले की आड़ में उसे सुरक्षित करती है. हम तानाशाही के विरोधी नहीं हैं. हमारा स्टालिन से विरोध इस बात को लेकर है कि उसने इस तानाशाही का प्रयोग एक तरफ तमाम बोल्शेविक नेताओं के सफाए और दूसरी ओर च्यांग-काई-शेक, हिटलर, चर्चिल, आइजनहावर जैसे क्रांति-विरोधियों के साथ मित्रता के लिए किया.

प्रश्न: आप स्टालिनवाद को संशोधनवाद कह रहे हैं, मगर स्तालिनवादी तो खुद संशोधनवाद का विरोध करते हैं.

वर्कर सोशलिस्ट: स्तालिनवादी, संशोधनवाद का विरोध नहीं करते, बल्कि इसका प्रयोग बिलकुल अवैज्ञानिक और अतार्किक रूप से एक दूसरे के विरुद्ध महज़ एक अपशब्द के तौर पर करते हैं, जो न तो कुछ भी इंगित करता है, न उसका कोई राजनीतिक अर्थ या अंतर्य होता है. देश-दुनिया में एक भी ऐसी स्तालिनवादी पार्टी या नेता नहीं है, जिसने दूसरों को संशोधनवादी कहकर न कोसा हो. किन्तु वे इस निराकार लांछन को कभी कोई नाम या आयाम नहीं देते. वे या उनके शिष्य नहीं बता सकते कि वे इस आरोप के साथ किन संशोधनों को नत्थी कर रहे हैं.

प्रश्न: आपके इस दावे का कि स्टालिनवाद, मार्क्सवाद-लेनिनवाद का नहीं, बल्कि संशोधनवाद का एक रूपांतर है, राजनीतिक आधार क्या है?   

वर्कर सोशलिस्ट: हमारे इस दावे का आधार, खुद स्टालिनवाद का कार्यक्रम है, जो मार्क्सवाद-लेनिनवाद की बुनियादी प्रस्थापनाओं को उलटता है और उनमें फर्जी आधारों पर संशोधन की मांग करता है. स्टालिनवाद का जन्म और विकास, पिछली सदी के दूसरे दशक के उत्तरार्ध से ही दुनिया भर में क्रान्तिकारी सर्वहारा की पराजयों और पूंजीवाद के संतुलन के साथ सीधे जुड़ा है. स्टालिनवाद, विश्व साम्राज्यवाद के प्रभुत्व के आगे अलग-थलग पड़ गए सोवियत संघ में मज़बूत होते कुलकों और उनकी प्रतिनिधि सोवियत ब्यूरोक्रेसी का बैनर है. स्तालिनवादियों ने, ‘एक देश में समाजवाद’ के नारे के साथ ही विश्व सर्वहारा क्रांति के प्रोजेक्ट को तिलांजलि दी और साम्राज्यवादी शक्तियों के साथ ‘शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व’ की ओर दिशा ली.  

प्रश्न: मगर ‘शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व’ का सिद्धांत तो ख्रुश्चेव के साथ जुड़ा है, इसका स्टालिन से क्या सम्बन्ध है?

वर्कर सोशलिस्ट: स्टालिनवादी संशोधनवाद की मुख्य बुनियाद है- ‘एक देश में समाजवाद’. एक देश में समाजवाद का अर्थ ही है- शेष देशों में पूँजीवाद को मान्यता, उनके साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व. इसलिए अनेक स्तालिनवादी झूठों में यह भी एक झूठ है कि पूंजीवादी देशों के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का संशोधनवादी कार्यक्रम ख्रुश्चेव की देन था. वास्तव में, विश्व-पूंजीवाद के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, स्टालिनवाद के मूल संशोधनवादी कार्यक्रम ‘एक देश में समाजवाद’ का ही दूसरा पहलू था. स्टालिन और ख्रुश्चेव सहित उसके तमाम उत्तराधिकारी इस संशोधनवादी कार्यक्रम से सहमत रहे. स्तालिनवादियों का यह पूरा कार्यक्रम क्रांति-विरोधी और मार्क्सवाद विरोधी था, चूंकि मार्क्सवाद विजयी सर्वहारा से विश्व-पूंजीवाद के साथ शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की नहीं, बल्कि उसके विरुद्ध क्रान्तिकारी संघर्ष और उसके विनाश की मांग करता है.

प्रश्न: मगर लेनिन तो खुद प्रथम विश्व-युद्ध से अलग हो जाने और शांति के पक्ष में थे?

वर्कर सोशलिस्ट: लेनिन, साम्राज्यवादी युद्ध से बाहर निकलने और किसी साम्राज्यवादी शक्ति के साथ न खड़े होने के पक्ष में थे. क्रान्तिकारी युद्ध में विजयी सर्वहारा राज्य के हस्तक्षेप के लेनिन सर्वथा पक्ष में थे. पश्चिम यूरोप में क्रांतिकारी विद्रोहों के समय लेनिन और ट्रोट्स्की के नेतृत्व में सोवियत सत्ता ने क्रांति के पक्ष में सीधे हस्तक्षेप करते, सैनिक सामग्री, सैनिक विशेषज्ञ और आर्थिक सहायता तक उपलब्ध करायी थी. इसके विपरीत, स्टालिन ने विश्व-सर्वहारा क्रांति के इस लक्ष्य को धता बताते, उलटे दूसरे विश्व-युद्ध में, साम्राज्यवादी शक्तियों -पहले हिटलर और फिर फ्रांस-ब्रिटेन- के साथ खुली साझेदारी की.

प्रश्न: क्या इसके अलावा मार्क्सवाद-लेनिनवाद में और भी किन्ही संशोधनों की मांग स्टालिनवाद ने की?

वर्कर सोशलिस्ट: स्टालिनवाद ने मार्क्सवाद की लगभग तमाम मूल प्रस्थापनाओं में संशोधन की मांग की. ‘एक देश में समाजवाद’ और पूंजीवाद के साथ ‘शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व’ के अतिरिक्त उसने पिछड़े देशों में बूर्ज्वाजी को क्रान्तिकारी बताया, उसने इन देशों में सर्वहारा क्रांतियों और सर्वहारा अधिनायाकत्व की सम्भावना से इनकार करते हुए, बूर्ज्वाजी और सर्वहारा के बीच सांझे मोर्चों की वकालत की, उसने क्रांतियों को कृत्रिम रूप से दो चरणों में बांटते हुए, सर्वहारा सत्ता को सुदूर भविष्य के लिए स्थगित कर दिया, उसने ब्रिटेन में संसद के जरिये शांतिपूर्ण रास्ते से समाजवाद की स्थापना की वकालत की, आदि आदि. ये सभी संशोधन, अक्टूबर क्रांति के उन निष्कर्षों के ठीक उलट थे, जिन पर लेनिनवाद, यानि बीसवीं सदी का क्रान्तिकारी मार्क्सवाद, आधारित था और विकसित हुआ था.  

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