५ दिसंबर की आम हड़ताल के समर्थन में, वर्कर्स सोशलिस्ट पार्टी द्वारा जारी पर्चा
दुनिया के बाज़ार में कच्चे
तेल और धातुओं की कीमतों में आई भारी गिरावट, इस तथ्य का स्पष्ट संकेत है कि २००८
में शुरू हुआ, विश्व-पूंजीवाद का आर्थिक संकट, ख़त्म होने के बजाय और गहरा हो रहा
है. इस संकट के चलते, बड़े-छोटे पूंजीवादी राष्ट्र अपनी किलेबंदी कर रहे हैं, और
अकूत मुनाफों को हथियाने के लिए एक-दूसरे के खिलाफ गलाकाट संघर्ष में जुट गए हैं.
नाभिकीय शस्त्रास्त्रों से लैस, पूंजीवादी राष्ट्रों के बीच, इस टकराव के चलते, दुनिया
पर तीसरे विश्वयुद्ध और भयंकर विनाश का खतरा मंडरा रहा है.
इसी क्रम में, चीन और दूसरे
एशियाई राष्ट्रों के साथ, निवेश और मुनाफों के लिए होड़ लगाते, भारत के पूंजीवादी
शासकों का नया नारा है- ‘मेक इन इंडिया’. इस नारे का अर्थ है ‘आओ कारखाने लगाओ,
लूटो, खाओ, खिलाओ. प्रतिरोध का दमन हम करेंगे’. इस दमन को अंजाम देने के
लिए, इन पूंजीपतियों ने पहले ही भगवा फासिस्ट सरकारों को केंद्र और राज्यों में
तैनात कर दिया है.
श्रम कानूनों में ‘सुधार’
के नाम पर, उनमें सघन फेरबदल करके, उन्हें पूरी तरह पूंजीपति वर्ग के पक्ष में
ढालकर, विगत के श्रमिक संघर्षों की तमाम उपलब्धियों पर पानी फेरने में जुटी, पूंजी
की ये गुलाम सरकारें, श्रम की लूट को और गहन करने और मुनाफों के विस्तार के लिए,
कुछ भी करने को तैयार हैं. ५ दिसंबर की देशव्यापी हड़ताल, पूंजीवादी शासकों की इन्ही
नीतियों के विरुद्ध सर्वहारा का सांझा प्रतिकार है.
ये श्रम-विरोधी नीतियां,
दशकों से जारी हैं और विगत शताब्दी में ९० के दशक के प्रारंभ में उदारीकरण की
शुरुआत के बाद से निरंतर आक्रामक रूप में सामने आ रही हैं. लम्बे समय, जब केंद्र
और अधिकतर राज्यों में सत्ता, कांग्रेस या उसके नेतृत्व वाले संयुक्त मोर्चे-
यू.पी.ए. के हाथ में थी, तब भी ठीक यही पूंजी-परस्त नीतियां लागू की जा रही थीं.
कांग्रेस के साथ चिपका, स्तालिनवादी वाम-मोर्चा और इसकी घटक कम्युनिस्ट पार्टियां
न सिर्फ इन श्रम-विरोधी नीतियों का सक्रिय समर्थन करती रहीं, बल्कि अपने नेतृत्व
वाले राज्यों- पश्चिम बंगाल, केरल, त्रिपुरा- में उन्होंने ठीक इन्हीं नीतियों को
लागू किया. लाल झंडे की आड़ में छिपे इन अवसरवादियों ने अपने शासन वाले राज्यों में
तो श्रमिक आंदोलनों का निर्मम दमन किया ही, सिंगूर और नंदीग्राम इसका उदाहरण हैं,
साथ ही दमन और शोषण में दूसरी सरकारों को भी भरपूर सहयोग दिया. हीरो होंडा, रीको,
और फॉक्सकॉन से लेकर मारुति तक, सर्वहारा संघर्षों को असफल बनाने में इन रंगे
सियारों की भूमिका अहम् रही है.
शासक पूंजीपतियों की
श्रम-विरोधी नीतियों के विरुद्ध, मेहनतकश जनता के बीच फैलते रोष ने, दोगली
राजनीतिक पार्टियों और ट्रेड-यूनियनों तक को, जो हाथ पर हाथ धरे पूंजीवादी लूट,
शोषण और दमन का तमाशा देखती रही हैं, बाध्य किया है कि वे ‘विरोध’ के समर्थन का
नाटक करें. इन अवसरवादी नेताओं, पार्टियों और यूनियनों की कोशिश है कि सर्वहारा के
इस विरोध को, इस हड़ताल को, जनता के गुस्से को द्रवित करने के लिए ‘नियंत्रित
सुरक्षा वाल्व’ के तौर पर प्रयोग करते हुए, सांकेतिक रस्म-अदायगी तक सीमित रखा जाय
और उसे वास्तविक और निर्णायक विरोध तक उठने से रोका जाय. यानि कि ‘आओ, गुस्सा
निकालो, और घर वापस जाओ’. इस सम्भावना से आश्वस्त और निश्चिन्त, स्तालिनवादी वाम
मोर्चे के ही नहीं, बल्कि भाजपा और कांग्रेस तक के श्रमिक संगठन, इस हड़ताल में
हिस्सा ले रहे हैं.
पूंजीपति वर्ग और उसके शासन
के साथ दायें और बाएं से चिपकी ये पार्टियां, ट्रेड-यूनियनें और इनके नेता कभी भी
क्रान्ति की ओर, न तो रुख करेंगे, न करने देंगे. सर्वहारा को इन भीतरघातियों, गद्दारों
से पीछा छुड़ाना होगा और पूंजीपति वर्ग और उसकी सत्ता के विरुद्ध स्वतंत्र, राजनीतिक
संघर्ष के लिए मेहनतकश जनता के तमाम हिस्सों को एकजुट करना होगा.
यह हड़ताल, श्रमिक वर्ग के
रोष का सीमित प्रदर्शन तो अवश्य होगी, मगर इन सांकेतिक विरोधों से सर्वहारा के
ऐतिहासिक मिशन- पूंजीवाद के विनाश और समाजवाद की स्थापना- की पूर्ति नहीं हो सकती.
सांकेतिक विरोध इसके लिए नाकाफ़ी हैं, उनसे आगे बढ़ना होगा. सांकेतिक हड़ताल को
अनिश्चितकालीन हड़ताल और ऐसे प्रतिरोध में बदलना होगा जिसमें समूचा सर्वहारा और
उसके पीछे मेहनतकश जनता के दूसरे हिस्से उठ खड़े हों और सत्ता-दखल के उद्देश्य से
पूंजीपति वर्ग के विरुद्ध सक्रिय संघर्ष छेड़ दें.
५ दिसंबर की हड़ताल को पूरा
समर्थन देते हुए, हम सर्वहारा और युवाओं से अपील करते हैं कि वे पूंजीपति वर्ग और
उसकी सत्ता के विरुद्ध राजनीतिक संघर्ष को आगे ले जाने के लिए, इस संघर्ष की सच्ची
और एकमात्र प्रतिनिधि पार्टी- वर्कर्स सोशलिस्ट पार्टी- से जुड़ें.
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वेबसाइट: workersocialist.blogspot.com; ई मेल: workers.socialist.party@gmail.com;
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