Tuesday, 20 August 2013

रिपोर्ट: वर्कर्स सोशलिस्ट पार्टी का अम्बाला सम्मेलन

- अम्बाला / १५ अगस्त २०१३
१५ अगस्त २०१३ को अम्बाला में आयोजित वर्कर्स सोशलिस्ट पार्टी की कांफ्रेंस में मजदूरों और पार्टी कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया. दो दिन से लगातार हो रही बारिश के चलते भी जिस उत्साह के साथ मजदूरों और कार्यकर्ताओं ने कांफ्रेंस में शिरकत की, वह इस बात का स्पष्ट प्रमाण थी कि, अर्थवादियों और स्तालिनवादियों के लाख दुष्प्रचार के बावजूद, अपनी पार्टी के नेतृत्व में राजनीतिक संघर्ष के जरिये पूँजी के शासन का अंत करने की, मजदूर वर्ग की इच्छा, न सिर्फ मौजूद है बल्कि अत्यंत शक्तिशाली है.


अम्बाला के मजदूरों की तरफ से बोलते हुए, कामरेड नदीम ने कहा कि पिछले दिनों फैक्ट्री मालिकों के विरुद्ध चलाये गए संघर्ष के दौरान मजदूरों ने महत्वपूर्ण राजनीतिक सबक लिए हैं, जिनमें सबसे प्रमुख यह है कि सरकार और प्रशासन का पूरा अमला मजदूरों के मामूली से मामूली संघर्षो के भी खिलाफ पूंजीपति मालिकों की हिमायत में आ जुटता है और पुलिस-प्रशासन मिलकर मालिकों के हक में मजदूरों का दमन करते हैं. मजदूरों के बीच संघर्ष और संगठन की आवश्यकता को इंगित करते हुए साथी नदीम ने कहा कि मजदूर केवल अपने वर्ग संगठन पर ही भरोसा कर सकते हैं.
पार्टी की ओर से बोलते हुए, कार्यक्रम के संयोजक, साथी बलबीर सैनी ने कहा कि औद्योगिक नगर अम्बाला में मजदूर संघर्षों का लम्बा इतिहास है और तीन राज्यों- हरियाणा, पंजाब तथा हिमाचल की सीमा पर स्थित होने के कारण अम्बाला शहर में सर्वहारा के संघर्ष का बड़ा महत्त्व है. उन्होंने कहा कि अम्बाला में वर्कर्स सोशलिस्ट पार्टी के अभियान की शुरुआत इन तीन राज्यों में पार्टी के राजनीतिक संघर्ष की अगुवाई करेगी. साथी सैनी ने बताया कि पिछले तमाम संघर्षों में मजदूरों के लिए यह महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकला है कि पूँजी की हिमायती पार्टियाँ, हमेशा मजदूरों के खिलाफ मालिकों के साथ खड़ी रही हैं. साथी सैनी ने कहा कि कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा, हजकां, लोकदल, अकाली दल जैसी पार्टियाँ, जिनके नेता संभ्रांत वर्गों से आते हैं, हजारों रास्तों से पूँजीपति मालिकों से जुडी हैं और उन्ही के चंदे से चलती हैं. पूंजीपति वर्ग, उसकी पार्टियों, नेताओं और उसकी सरकारों, पुलिस प्रशासन के खिलाफ सर्वहारा के अनम्य राजनीतिक संघर्ष की जरूरत पर बल देते हुए साथी सैनी ने मजदूरों का आह्वान किया कि वे वर्कर्स सोशलिस्ट पार्टी को समर्थन दें.
१५ अगस्त को भारत के इतिहास में काला दिवस बताते हुए साथी सुजय ने कहा कि १९४७ में इस दिन ब्रिटिश और भारतीय पूंजीपतियों के बीच समझौते के जरिये सत्ता का हस्तांतरण हुआ था. मेहनतकश जनता के लिए इससे कुछ भी नहीं बदला. साथी सुजय ने कहा कि भगत सिंह ने इसका सटीक अनुमान लगाते हुए पहले ही सर्वहारा को यह चेतावनी दी थी कि बुर्जुआ पार्टी कांग्रेस और गाँधी के आन्दोलन का अंत देर-सवेर किसी न किसी तरह के समझौते में होगा. भगत सिंह की वह भविष्यवाणी कुछ ही वर्षों बाद अक्षरशः सही साबित हुई. साथी सुजय ने कहा कि पूंजीपतियों ने मेहनतकश जनता को बंटवारे के नाम पर सांप्रदायिक दंगों की आग में झोंककर सत्ता ली है और उसे सांप्रदायिक उन्माद और राष्ट्रवाद के फर्जीवाड़े के जरिये कायम रखा है. सर्वहारा का राजनीतिक दायित्व है कि वह क्रान्ति क जरिये पूँजी की सत्ता को उलटे और सर्वहारा की तानाशाही कायम करे.
मेरठ से आये, साथी आर.डी. ने बात रखते हुए सर्वहारा के राजनीतिक संघर्ष की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि विगत के संघर्षों से राजनीतिक निष्कर्ष निकाले जाने चाहियें और संघर्ष को उनकी रौशनी में आगे बढाया जाना चाहिए. इन निष्कर्षों को भूलकर, उनको अनदेखा करके हम गलतियों को दोहराने का रास्ता साफ़ करेंगे. साथी आर.डी. ने सर्वहारा क्रांति को मानव जाति की मुक्ति का एकमात्र रास्ता बताते हुए कहा कि दक्षिण एशिया के पूंजीवादी राष्ट्रों में मेहनतकश जनता अथाह गरीबी, भुखमरी, बेरोज़गारी, अनपढ़ता और बीमारी से जूझ रही है, और पूंजीवादी शासक मौज कर रहे हैं.  
नरवाना से आये साथी राजीव सान्याल ने क्रान्तिकारी गीत प्रस्तुत किया और अपने विचार भी अलग से रखे. माओवादी आन्दोलन में अपने अनुभवों का खुलासा करते हुए साथी राजीव सान्याल ने माओवाद के राजनीतिक दिवालियेपन को रेखांकित करते हुए कहा कि माओवाद औद्योगिक सर्वहारा और उसकी ऐतिहासिक क्रान्तिकारी भूमिका को अनदेखा करता है. साथी राजीव ने कहा कि वर्कर्स सोशलिस्ट पार्टी का अम्बाला में सम्मलेन एक ऐतिहासिक कदम है, जो सर्वहारा क्रांति के इतिहास में दर्ज हो गया है. वर्कर्स सोशलिस्ट पार्टी के कार्यक्रम के साथ अपनी सहमति व्यक्त करते हुए साथी राजीव ने कहा कि यह क्रान्तिकारी मार्क्सवाद का सच्चा कार्यक्रम है.
अपनी बात रखते हुए, साथी राजेश त्यागी ने कहा कि क्रान्तिकारी सर्वहारा पार्टी का सबसे पहला काम है मजदूर आन्दोलन के भीतर क्रान्तिकारी कार्यक्रम के लिए संघर्ष. साथी राजेश का कहना था कि बुर्जुआ राष्ट्रवाद की मजदूर आन्दोलन के भीतर घुसपैठ बड़ा खतरा है. निम्न बुर्जुआ क्रान्तिवाद की दर्जनों किस्मों में से एक -स्तालिनवाद और माओवाद- इस समय क्रान्तिकारी सर्वहारा आन्दोलन की राह में बड़ी बाधा हैं. विगत से उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि स्तालिनवादी वाम मोर्चे ने यदि २००४ में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यू.पी.ए. को समर्थन दिया तो माओवादी पार्टी ने पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को सत्ता में आने में आने में खुलकर सहयोग दिया. स्तालिनवादी माओवादी पार्टियाँ, इस या उस पूंजीवादी पार्टी ओर नेताओं के साथ चिपकी रही हैं. उन्होंने यह भी कहा कि स्तालिनवादी सीपीआई का काला इतिहास है, जिसके चलते उन्होंने न सिर्फ १९४२ में ब्रिटिश सरकार का साथ दिया और उपनिवेशवाद विरोधी संघर्ष से गद्दारी की, बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप के सांप्रदायिक विभाजन पर मोहर लगायी. उसके बाद से स्तालिनवादी, बुर्जुआजी के एक या दूसरे हिस्से के साथ जुड़े रहे हैं और सर्वहारा को स्वतंत्र पहलकदमी से रोकते रहे हैं. स्तालिनवादी पार्टियों ने जुझारू मार्क्सवाद के लाल झंडे को कलंकित किया है और मजदूरों को पूंजीपतियों की पार्टियों और उनकी सत्ता के साथ बांधे रखा है. वर्कर्स सोशलिस्ट पार्टी के राजनीतिक कार्यक्रम को स्पष्ट करते हुए, उन्होंने कहा कि पार्टी १९४७ के सांप्रदायिक विभाजन को उलटकर भारत-पाक-बांग्लादेश सहित दक्षिण एशियाई राष्ट्रों को एक ही समाजवादी संघ में संगठित किये जाने के पक्ष में हैं. साथी राजेश ने कहा कि वर्कर्स सोशलिस्ट पार्टी, क्रान्तिकारी मार्क्सवाद की पार्टी है और लियोन ट्रोट्स्की के नेतृत्व में संगठित चौथे इंटरनेशनल के आन्दोलन का हिस्सा है.

कांग्रेस के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार की कड़ी आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि इस सरकार ने अपनी पूर्ववर्ती सरकारों की ही तरह कार्पोरेट और पूंजीपतियों की दलाली की है और मजदूरों मेहनतकशों का दमन किया है. हौंडा, रीको, और फिर मारुति के मानेसर कारखाने में मजदूरों पर किया गया अमानवीय दमन इसका प्रमाण है. उन्होंने, मजदूर विरोधी और कार्पोरेट की दलाल सरकार को जन आन्दोलन के जरिये सत्ता से निकाल बाहर करने और मजदूर किसानो की सरकार बनाने के लिए मजदूरों का आह्वान किया.

इस अवसर पर, अम्बाला की अलग अलग फैक्ट्रियों से आये मजदूर साथियों ने विगत संघर्षों के अपने अपने अनुभव और सुझाव रखे. कार्यक्रम का समापन “सर्वहारा क्रांति जिंदाबाद” और “पूंजीवाद मुर्दाबाद” के नारों के साथ हुआ.

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