Tuesday 5 June 2018

२०१९ के आम चुनाव में बुर्जुआ दक्षिणपंथ की सभी पार्टियों को किनारे लगाने के लिए, स्वतंत्र लेफ्ट ब्लॉक् का संगठन करो!

तमाम बुर्जुआ दक्षिणपंथी पार्टियों, नेताओं, मोर्चों के ख़िलाफ़

मज़दूर, मेहनतकश और क्रान्तिकारी युवा, लेफ्ट ब्लॉक् में संगठित हों!


WSP ने जिस 'लेफ्ट ब्लॉक्' का प्रस्ताव रखा है:
http://workersocialist.blogspot.com/2018/06/2019.html
यह प्रस्ताव क्या है, उसके राजनीतिक निहितार्थ क्या हैं, उसकी भूमिका क्या होगी और कैसे वह पहले से मौजूद वाम मोर्चे से भिन्न है आदि बहुत से प्रश्न युवा कम्युनिस्ट साथियों द्वारा पूछे जा रहे हैं. इन प्रश्नों को स्पष्ट करते हुए हम यह प्रश्नोत्तरी प्रकाशित कर रहे हैं!
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प्रश्न- जिस लेफ्ट ब्लॉक् की आप बात कर रहे हैं, उसका कांसेप्ट क्या है?
उत्तर- पूंजीवाद की ढहती-गिरती राजनीतिक व्यवस्था को, फासिस्टों ने चार साल किसी तरह सहारा दिए रखा। अब वे चुक गए हैं। उपचुनावों के नतीजे बता रहे हैं कि संकट अब तेज़ी से बढ़ेगा।
इस वक़्त सबसे बड़ी जरूरत है कि मज़दूरो, मेहनतकशों, युवाओं को, बूर्जुआ दक्षिणपंथ के विरुद्ध, एक स्वतंत्र लेफ्ट ब्लॉक में संगठित किया जाय।
लेफ्ट ब्लॉक् का कांसेप्ट, सबसे ऊपर, वाम एकता के लिए, भारत के करोड़ों-करोड़ मज़दूरों, मेहनतकशों, और कम्युनिस्ट युवाओं की दशकों से मौजूद, गहनतम आकांक्षाओं को मूर्तरूप देता है। यह उन सभी तत्वों का सांझा मोर्चा है जो समाजवाद और क्रान्ति के आकांक्षी हैं मगर अभी दर्जनों पार्टियों और सैंकड़ों संगठनों में बंटे हैं और इसलिए पूंजीवाद-फासीवाद के विरुद्ध कोई प्रभावी कार्रवाई करने में असमर्थ हैं। यह वाम ट्रेड-यूनियनों, छात्र और युवा संगठनों, महिला संगठनों और दसियों करोड़ असंगठित मेहनतकशों का मोर्चा है, जो बड़े शहरों से लेकर गांव-देहात तक बिखरे हुए हैं।

प्रश्न- लेफ्ट ब्लॉक् का राजनीतिक आधार क्या होगा?
उत्तर- यह होगा: पूंजीवाद-फासीवाद के खिलाफ सांझा संघर्ष। इस संघर्ष का विस्तार, सड़क से संसद तक होगा। संसद के भीतर संघर्ष, सडक पर संघर्ष की अनुगूंज ही हो सकता है। इसका तात्कालिक ध्येय, २०१९ के आम चुनाव में दक्षिणपंथी पार्टियों, मोर्चों को किनारे लगाना और लेफ्ट को राजनीति की मुख्यधारा बनाना है।
मेंशेविक-स्तालिनवादी नेताओं ने कांग्रेस और दूसरी दक्षिणपंथी बूर्जुआ पार्टियों की पूंछ पकड़ने की जो नीति सात दशकों से लागू की है, उसका परिणाम, वाम शक्तियों के हाशिए पर सिमटने और फासीवादियों के सत्तारोहण के रूप में सामने आया है।
इस घृणित नीति को तुरंत उलटना होगा और सर्वहारा की राजनीतिक स्वतंत्रता को आधार बनाते हुए, लेफ्ट ब्लॉक का स्वतंत्र संगठन करना होगा। यदि हम अब भी बूर्जुआ पार्टियों, नेताओं की गुलामी करने वाली बोगस मेंशेविक नीति से पीछा छुड़ाकर, स्वतंत्र लेफ्ट ब्लॉक के निर्माण की ओर नहीं मुड़ते, तो इतिहास हमें कभी माफ़ नहीं करेगा।

प्रश्न- इस 'लेफ्ट ब्लॉक्' का उद्देश्य क्या है?
उत्तर- लेफ्ट ब्लॉक् का उद्देश्य विभिन्न पार्टियों, संगठनों, क्षेत्रों, विचारधाराओं में बिखरे सर्वहारा को एक ऐसे फौलादी सहबंध में संगठित करना है, जहां सभी अपनी विचारधारा, अपनी पार्टी, अपने संगठनों के साथ चलते हुए, अपने सांझे शत्रु के विरुद्ध एकजुट कार्रवाई में हिस्सा ले सकें। यह ब्लॉक्, 'अपनी राह चलो, हमले के लिए एक हो' की नीति पर आधारित है, जिसका उद्देश्य सर्वहारा, समाजवाद और क्रान्ति के, सांझे शत्रुओं को ध्वस्त करना है।

प्रश्न- चुनाव में लेफ्ट ब्लॉक् के उम्मीदवार कौन रहेंगे?
उत्तर- वे तमाम जुझारू और ईमानदार साथी जो दक्षिणपंथी पार्टियों, मोर्चों की पूंछ पकड़ने की स्तालिनवादियों की नीति के विरुद्ध हैं, WSP के, लेफ्ट ब्लॉक् के, उम्मीदवार हो सकते हैं। वे साथी जो स्तालिनवादियों की दक्षिणपंथी पार्टियों, नेताओं से चिपकने की घृणित नीति के विरुद्ध सबसे पहले विद्रोह का झंडा ऊंचा करेंगे, WSP समर्थित उम्मीदवार हो सकते हैं।

प्रश्न- लेफ्ट ब्लॉक् का चुनाव कार्यक्रम क्या है?
उत्तर- ड्राफ्ट कार्यक्रम के बिंदु हमने तैयार किए हैं और उन्हें सार्वजनिक चर्चा के लिए प्रकाशित किया है-
http://workersocialist.blogspot.com/2018/06/socialist-program-for-2019-general.html
इस कार्यक्रम पर ही हम यह चुनाव लड़ेंगे और चुनाव के बाद भी इसे केंद्र बनाकर संघर्ष जारी रखेंगे। यह कार्यक्रम एक ऐसी सर्वहारा सरकार की स्थापना के लिए संघर्ष का कार्यक्रम है जो सीधे मजदूर वर्ग की शक्ति पर टिकी होगी और पूंजीवाद के ध्वंस का औज़ार होगी।

प्रश्न- यह शत्रु कौन हैं और राजनीतिक परिदृश्य पर उनका प्रतिनिधित्व कौन करता है?
उत्तर- यह शत्रु, सर्वहारा के वर्ग शत्रु- देश और दुनिया के, बड़े पूंजीपति हैं. भाजपा से कांग्रेस तक, बुर्जुआ दक्षिणपंथ की सभी पार्टियां, भारत के राजनीतिक पटल पर इनकी प्रतिनिधि पार्टियां हैं।

प्रश्न- मगर लेफ्ट ब्लॉक् इन सभी पार्टियों के खिलाफ कैसे लड़ और जीत सकता है?
उत्तर- बुर्जुआ दक्षिणपंथ की सभी पार्टियों का सामाजिक आधार एक ही है- बड़ा बुर्जुआ और मध्यवर्ग के कुछ ऊपरी हिस्से। यह आधार, संख्या की दृष्टि से नगण्य ही है। व्यापक मेहनतकश जनता, लेफ्ट ब्लॉक् का सामाजिक आधार है। चूंकि झूठे लेफ्ट नेताओं ने, इस आधार को, बुर्जुआ दक्षिणपंथ के पीछे बांधे रखा है, इसलिए लेफ्ट की शक्तियां बिखरी हुई, विसंगठित और दिशाहीन हैं। हमारे सामने चुनौती उन्हें वर्ग धुरी पर संगठित करने भर की है। यदि संगठित लेफ्ट लाल झंडा ऊंचा करता है तो यह तमाम पार्टियों, संगठनों में मौजूद मेहनतकश जनता की वर्ग-चेतना को सीधे अपील करेगा और वह बहुत तेज़ी से इसकी ओर आकर्षित होगी। हमारा उद्देश्य, वाम और दक्षिण के बीच इसी स्पष्ट राजनीतिक ध्रुवीकरण को निष्पादित करना है जिससे दक्षिणपंथी ताकतों को पूरी तरह किनारे लगा दिया जाय और राजनीतिक रंगमंच पर वाम शक्तियां पहली बार केंद्र में आ जाएं।

प्रश्न- क्या आप बुर्जुआ संसदवाद की ओर लौट रहे हैं और संसद के रास्ते क्रान्ति चाहते हैं?
उत्तर- कतई नहीं! हम बुर्जुआ संसदवाद के कटु विरोधी हैं। शांतिपूर्ण संसदीय रास्ते से, क्रान्ति तो क्या, मामूली सुधार तक असंभव हैं। संसद के मंच का प्रयोग अब मज़दूरों, मेहनतकशों की जीवन-स्थितियों में किसी वास्तविक और दूरगामी सुधार तक के लिए नहीं हो सकता। सकारात्मक संसदवाद का, शांतिपूर्ण सामाजिक-जनवाद का दौर, डेढ़ सदी पीछे छूट चुका है। साम्राज्यवाद के युग में, बूर्जुआ संसद का उपयोग सिर्फ नकारात्मक उद्देश्यों के लिए ही किया जा सकता है। यह नकारात्मक उद्देश्य है- बूर्जुआ संसदवाद का क्रान्तिकारी विखंडन। उसका भंडाफोड़, उसका विनाश! सबसे प्रतिक्रियावादी ट्रेड-यूनियनों से लेकर बुर्जुआ संसद तक, वर्ग शत्रु के सभी दुर्ग, कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों को बेध डालने चाहिएं। यही लेनिन की नीति है, यही WSP का युद्धनाद!
स्तालिनवादियों ने ७० वर्ष बुर्जुआ संसदवाद की सेवा की है। उन्होंने बुर्जुआ संसद, बुर्जुआ लोकतंत्र और संविधान की उपासना और उसका अमूर्त आदर्शीकरण कर, उसमें अनंत भ्रमों की सृष्टि करते हुए, युवाओं, मज़दूरों को उस व्यवस्था से बांधे रखा है, जिसके विरुद्ध उन्हें विद्रोह करना चाहिए था।
पहले काउत्स्की और फिर स्तालिन ने यह दुराग्रह किया कि दुनिया में शक्ति संतुलन बदल जाने से क्रान्ति की यांत्रिकी भी बदल गई है और अब बूर्जुआ संसद के रास्ते समाजवाद में शांतिपूर्ण संक्रमण सम्भव है।
इस वाहियात नीति ने दूसरे और तीसरे कम्युनिस्ट अन्तर्राष्ट्रीयों का दम निकाल दिया।
चौथे अंतरराष्ट्रीय की स्थापना करते हुए, रूसी क्रान्ति के सह-नेता, लियोन ट्रॉट्स्की के नेतृत्व में संगठित, कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों ने यह दिखाया कि बूर्जुआ राज्य खुद हिंसक क्रान्तियों का परिणाम है और इसे शांतिपूर्ण साधनों से निरस्त नहीं किया जा सकता।
संसदीय कार्य को आम राजनीतिक संघर्ष के मातहत रखते हुए, जिसका उद्देश्य बूर्जुआ राष्ट्रीय-राज्यों का बलपूर्वक तख्ता उलट देना है, चौथे अंतरराष्ट्रीय ने उस घृणित संसदवाद को एक बार फिर चुनौती दी, जिसे दूसरे इंटरनेशनल के खिलाफ संघर्ष में निशाना बनाया गया था।

प्रश्न - स्तालिनवादी पार्टियां भी 'वाम लोकतान्त्रिक मोर्चे' का प्रस्ताव कर रही हैं. वर्कर्स सोशलिस्ट पार्टी द्वारा प्रस्तावित लेफ्ट ब्लॉक् उनके प्रस्ताव से कैसे अलग है?
उत्तर - वाम और लोकतांत्रिक मोर्चे का नारा, एक दक्षिणपंथी षड्यंत्र है! वाम मोर्चे का अर्थ ही है- मज़दूर वर्ग को धुरी बनाते हुए, करोड़ों-करोड़ मेहनतकशों की एकता। तो फिर अलग से यह 'लोकतांत्रिक शक्तियां' कौन सी हैं? वास्तव में, स्तालिनवादी, इसमें बूर्जुआ दक्षिणपंथ की शक्तियों को सुविधानुसार शामिल करते रहते हैं। कांग्रेस से टीडीपी तक बूर्जुआ दक्षिणपंथ की लगभग सभी पार्टियों को, स्टालिनवादियों ने 'लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष' शक्तियां बताकर, सांझे मोर्चे में शामिल किया है।
लेफ्ट ब्लॉक की राजनीतिक धार, बूर्जुआ दक्षिणपंथ से उसकी स्वतंत्रता और उसके प्रति अनम्य विरोध में निहित है। ज्यों ही बूर्जुआ दक्षिणपंथ की किसी भी पार्टी को लेफ्ट के साथ बांधा जाता है, लेफ्ट, राइट के जुए के नीचे आ जाता है और उसका गुलाम बन जाता है।
स्तालिनवादी नेता, लेफ्ट के साथ 'सेक्युलर' और 'डेमोक्रेटिक' परिशिष्ट जोड़कर, कांग्रेस, राजद, रालोद, सपा, बसपा जैसी अगणित छोटी-बड़ी बूर्जुआ दक्षिणपंथी और घोर क्रांतिविरोधी पार्टियों के साथ चुनावी गठजोड़ बनाने के लिए रास्ते खोलते हैं।
बूर्जुआ दक्षिणपंथ की इन पार्टियों में से किसी का भी, सेक्युलर-डेमोक्रेसी के साथ दूर का भी सम्बन्ध नहीं है। सिर्फ लेफ्ट ब्लॉक ही सेक्युलर-डेमोक्रेसी की एकमात्र शक्ति है। सिर्फ मज़दूर, मेहनतकश और कम्युनिस्ट युवा ही सेक्युलर-डेमोक्रेसी हैं। लेफ्ट से अलग कोई सेक्युलर-डेमोक्रेसी न है, न हो सकती है। लेफ्ट ब्लॉक का केंद्रीय उद्देश्य ही सेक्युलर-डेमोक्रेसी के लिए संघर्ष है।
इसलिए, मक्कार स्तालिनवादी नेताओं द्वारा प्रस्तावित उन सभी चुनावी गठजोड़ों को हम सिरे से नकारते हैं जो वाम के साथ कथित 'लोकतांत्रिक' और 'धर्मनिरपेक्ष' ताकतों को जोड़ने के नाम पर लेफ्ट को बूर्जुआ राइट के मातहत कर देना चाहते हैं। झूठे वाम नेताओं द्वारा प्रचारित, सेक्युलर-डेमोक्रेसी के फर्जीवाड़े को नंगा और नाकाम करना होगा।

प्रश्न-  संसद में आपकी हिस्सेदारी और उसके आयाम, स्तालिनवादियों के संसदवाद से  कैसे अलग होंगे?
उत्तर- 2004 में, 65 स्तालिनवादी सांसद, भारतीय संसद में पहुंचे। इसके बावजूद संसद खूब मज़े से चलती रही। इन सियारों ने पांच साल सिर्फ बूर्जुआ संसद की सेवा की, उसे शांतिपूर्वक चलने में मदद दी, उसका चरणामृत पिया और इन्द्रजीत गुप्त, सोमनाथ चटर्जी और सीताराम येचुरी जैसे इनके नेता, सत्ताधारियों से सर्वश्रेष्ठ सांसद के स्वर्णपत्र लेकर वापस लौट गए। इसके ठीक विपरीत, जारशाही ड्यूमा में सिर्फ 7 बोल्शेविक सांसदों ने जारशाही की चूल हिला दी थीं। उन्हें हर रोज़ ड्यूमा से घसीटकर निकाला जाता और अंततः साइबेरिया में लंबी सजाएं दी गईं।
स्टालिनवादियों के इस निकृष्ट संसदवाद को खुली चुनौती देते हुए, इन सियारों को किनारे लगा, संसद को क्रान्ति के मंच के रूप में प्रयोग करने के लिए, WSP दखल कर रही है।
हम वर्ग-संघर्ष के मोर्चे को संसद के भीतर तक ले जाएंगे। हम बूर्जुआ संसद और संसदवाद की ईंट से ईंट बजा देंगे। हम उस पंगु और घिनौने संसदवाद को चुनौती देंगे, जिसे स्तालिनवादी नेताओं ने दशकों घसीटा है और जिसके जरिए उन्होंने अपने लिए, सर्वश्रेष्ठ सांसद के पुरस्कार, बंगले, गाड़ी और संसद में सीटें हासिल की हैं। संसद के भीतर हमारा संघर्ष, उसे क्रान्ति की दहलीज़ तक घसीट ले जाएगा।
बुर्जुआ संसद में हमारा दखल, बुर्जुआ संसदवाद के पूर्ण विनाश की ओर निदेशित है। संसद के प्रति हमारा रुख लेनिन की इस प्रतिपत्ति से निदेशित है कि बुर्जुआ संसद सूअरबाड़ा है। हमारी सारी संसदीय गतिविधियां, इस सूअरबाड़े के भंडाफोड़ और इसके रेशमी परदे फाड़ डालने पर केन्द्रित हैं ताकि मेहनतकश जनता प्रत्यक्ष देख सके कि यह सूअरबाड़े के सिवा कुछ नहीं है।

प्रश्न- आपने कहा- 'संसद सूअरबाड़ा है'; फिर भी आप संसद में जाना चाहते हैं?
उत्तर- लेनिन ने ही संसद को सूअरबाड़ा कहा था। मगर लेनिन ही संसद के बहिष्कार का बड़ा विरोधी और उसमें हिस्सेदारी का सबसे बड़ा समर्थक था। लेनिन ने उन सभी की कड़ी आलोचना की जो अलग-अलग बहानों से, बुर्जुआ संसद के बहिष्कार का आह्वान कर रहे थे। क्या यह अंतर्विरोध था? नहीं!  लेनिन ने कहा कि संसद सूअरबाड़ा है मगर मेहनतकश जनता के पिछड़े व्यापक हिस्से उसे इस रूप में नहीं देखते। हमारा काम है संसद के अन्दर और बाहर से इस सूअरबाड़े का भंडाफोड़ ताकि जनता के व्यापक हिस्से इसे उसी नग्न रूप में देख सकें जिस रूप में यह हमें दिखाई देता है। बुर्जुआ संसद के बहिष्कार की नीति को सर्वहारा आन्दोलन की कमजोरी बताते हुए लेनिन ने इसे वामपंथी विचलन कहते हुए ख़ारिज किया।
हम संसद को क्रान्तिकारी राजनीतिक गतिविधियों के महत्वपूर्ण मगर गौण महत्व के राजनीतिक मंच के रूप में देखते हैं। महत्वपूर्ण इसलिए कि बुर्जुआ जनवाद के तिलिस्म को नंगा करने के लिए इस मंच का प्रयोग क्रान्तिकारी दृष्टि से महत्वपूर्ण है. गौण इसलिए कि संसद में प्रतिनिधित्व, सड़क पर क्रान्ति की संहति को कभी बिम्बित नहीं करता। इसलिए संसद में हमारा दखल, संसद के बाहर हमारी क्रान्तिकारी गतिविधियों का मात्र एक हिस्सा और उनके मातहत है।
हम एक तरफ तो उस घिनौने बुर्जुआ संसदवाद पर लानत भेजते हैं जिसे लागू करते स्तालिनवादियों ने बुर्जुआ संसद में प्रतिक्रांतिकारी भ्रम पैदा किए और बदले में सर्वश्रेष्ठ सांसद के तीन-तीन ख़िताब झटके और दूसरी तरफ संसद के बहिष्कार की उस मूर्खतापूर्ण नीति का भी विरोध करते हैं जिसे लागू करते माओवादियों ने इस महत्वपूर्ण मंच को पूंजीवाद के दलालों के लिए खाली छोड़ दिया। जारशाही दूमा में बोल्शेविकों द्वारा आयोजित क्रान्तिकारी कार्रवाईयां, जिनके चलते बोल्शेविक सांसदों को निर्वासन की लम्बी सजाएं हुईं, हमारे लिए प्रेरणा स्रोत हैं।

प्रश्न- चुनाव पूर्व की राजनीतिक स्थिति को आप कैसे देखते हैं और आगामी आम चुनावों में WSP की रणनीति क्या रहेगी?
उत्तर- भाजपा नीत शासन से जनता का मोहभंग हो रहा है। पिछले सात दशकों में, एक के बाद एक, सभी पूंजीवादी शासन, इसी तरह जनता का कोप-भाजन बनते रहे हैं। सरकारों में पार्टियों की अदला बदली होती रही है मगर १९८९ के बाद कोई भी बुर्जुआ पार्टी अकेले सरकार नहीं बना सकी।  मगर प्रश्न यह है कि इस पूरे दौर में झूठे वाम नेताओं - स्तालिन और माओ के चेलों- ने जनता को एक के बाद दूसरे बूर्जुआ दक्षिणपंथी मोर्चों के पीछे बांधकर, पूंजीवाद के खिलाफ विद्रोह से रोके रखा है। अब भी वे पूंजीवाद के घोर संकट के बीच, 2019 में मेहनतकश जनता को, एक बार फिर, कांग्रेस के नेतृत्व वाले बूर्जुआ दक्षिणपंथी मोर्चे के जुए तले रखने में जुट गए हैं।
आम चुनावों के लिए हमने तैयारी शुरू कर दी है. हमारा प्रस्ताव है, लेफ्ट ब्लॉक् बनाने का, वाम की सभी शक्तियों को एकजुट कर दक्षिणपंथ की सभी पार्टियों और मोर्चों को किनारे लगाने का। पूंजीवाद के घोर संकट के इस दौर में, समूचे दक्षिणपंथ को एक किनारे कर, संयुक्त लेफ्ट ब्लॉक का निर्माण कर पूंजीवाद की डोलती नाव को डुबो देना ही हमारी रणनीति होगी।
स्तालिनवादी नेता इसके लिए तैयार नहीं हैं बल्कि कांग्रेस, राजद, रालोद, सपा, बसपा जैसी पार्टियों के साथ दक्षिणपंथी मोर्चे बनाने के लिए उत्सुक हैं। इसलिए हम कम्युनिस्ट युवाओं और अग्रणी मज़दूरों से अपील करेंगे कि वे इस मोर्चे को नीचे से बनाएं। वे दक्षिणपंथी मोर्चों को ख़ारिज करते हुए, अपने नेताओं को अल्टीमेटम दें। यदि ये नेता इसे अनसुना करें और वर्ग शत्रुओं से साथ गठजोड़ बनाएं तो इन झूठे वाम नेताओं को खदेड़ बाहर करें और लेफ्ट ब्लॉक् को हर कीमत पर अंजाम दें।

प्रश्न- आपके इस प्रस्ताव के बरक्स दूसरी बड़ी वाम पार्टियां और उनके नेता कहां खड़े हैं और उनका मत क्या है?
उत्तर- भाकपा, माकपा और भाकपा माले के हालिया राष्ट्रीय अधिवेशनों ने बाकायदा प्रस्ताव पारित करके, बूर्जुआ दक्षिणपंथ की दर्जनों पार्टियों- कांग्रेस, राजद, रालोद, सपा, और बसपा-  के साथ चुनावी गठजोड़ के दरवाजे चौपट खोलते हुए, फिर से लेफ्ट यूनिटी को बुर्जुआजी के हाथों गिरवी रखने की तैयारी कर ली है।
कम्युनिस्ट काडरों से WSP ने अपील की है कि वे इन गद्दार नेताओं की तरफ पीठ करते हुए, इनके राष्ट्रीय अधिवेशनों के बोगस प्रस्तावों को खुलेआम आग लगा दें और बूर्जुआ दक्षिणपंथ के विरुद्ध, स्वतंत्र लेफ्ट ब्लॉक कायम करने के लिए एकजुट हों।

प्रश्न- वाम मोर्चे तो पहले भी मौजूद रहे हैं, फिर यह मोर्चा किस अर्थ में उनसे भिन्न होगा?
उत्तर- जो वाम मोर्चे अब तक गठित हुए हैं, वे स्तालिनवादी नेताओं के नेतृत्व में संगठित, स्तालिनवादी पार्टियों के मोर्चे थे जिनका उद्देश्य सर्वहारा की स्वतंत्र लामबंदी और सत्ता के लिए मजदूर वर्ग की ओर से कोई  दावा प्रस्तुत करना नहीं बल्कि बुर्जुआ दक्षिणपंथी मोर्चों के भीतर, स्तालिनवादी नेताओं के लिए संसद और विधानसभाओं में सीटें सुरक्षित करने के लिए सौदेबाज़ी की बेहतर शर्तें सुनिश्चित करना और बदले में मज़दूरों, मेहनतकशों, युवाओं को इन दक्षिणपंथी मोर्चों के पीछे बांधना था।
दक्षिणपंथी पार्टियों, मोर्चों की दुम पर बैठकर लेफ्ट ब्लॉक् नहीं बनाए जा सकते। यह अवसरवाद की पराकाष्ठा है। ये झूठे वाम नेता, वाम शिविर के भीतर, बूर्जुआ दक्षिणपंथ के मेंशेविक ट्रोज़न हॉर्स बनकर घुसे हुए हैं, जिनका काम, कम्युनिस्ट युवाओं और मज़दूरों को बूर्जुआ दक्षिणपंथ के पीछे बांधना, उसके मातहत करना है।
इसके ठीक विपरीत जिस लेफ्ट ब्लॉक् का प्रस्ताव हम कर रहे हैं, उसका उद्देश्य ही इन दक्षिणपंथी पार्टियों, नेताओं, मोर्चों से स्वतंत्र और उनके विरुद्ध, मज़दूरों, मेहनतकशों, युवाओं की व्यापक लामबंदी है।
WSP जिस लेफ्ट ब्लॉक के निर्माण का प्रस्ताव कर रही है, वह पूंजीवाद-फ़ासीवाद के विरुद्ध संघर्ष में, मज़दूर वर्ग की केन्द्रीयता और तमाम बूर्जुआ दक्षिणपंथी पार्टियों, मोर्चों, नेताओं से उसकी पूर्ण स्वतंत्रता पर आधारित है और इसका राजनीतिक ध्येय, पूंजीवाद का विनाश और सर्वहारा क्रान्ति है।
इसके विपरीत, विगत में स्टालिनवादियों के नेतृत्व में बने कथित वाम मोर्चे, मज़दूरों, मेहनतकशों, युवाओं को बूर्जुआ दक्षिणपंथी पार्टियों, नेताओं के पीछे बांधते हुए, उनके नेतृत्व वाले दक्षिणपंथी गठजोड़ों के मातहत करते रहे। ये वाम मोर्चे, पूंजीवाद की बी टीम बनकर, उसकी दलाली करते रहे। इन मोर्चों ने, मज़दूरों, युवाओं को स्थायी रूप से बुर्जुआ दक्षिणंथ की पार्टियों के पीछे बांध दिया। जब भाजपा सत्ता में नहीं थी तो उसे रोकने के बहाने और जब वह सत्ता में है तो उसे हटाने के बहाने, इन झूठे वाम नेताओं ने मज़दूरों, युवाओं को दक्षिणपंथ का गुलाम बनाए रखा। इस दोयम नीति का नतीजा हुआ फासीवाद का सत्तारोहण!
मज़दूर वर्ग की केन्द्रीयता और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष की जगह इन्होंने उसे नष्ट करने में बड़ी भूमिका अदा की।

प्रश्न- भाजपा के विरुद्ध, विपक्ष की एकजुटता के प्रस्ताव के बरक्स, आप अपने 'लेफ्ट ब्लॉक्' के प्रस्ताव को कैसे देखते हैं?
उत्तर-  फासीवादियों के कुकृत्यों से पूंजीवाद की नाव डोल रही है। संयुक्त विपक्ष का नारा, सर्वहारा को अपंग कर, इसे संतुलित करेगा। भाजपा से कांग्रेस तक सभी दक्षिणपंथी पार्टियां, वर्ग शत्रु, यानि बूर्जुआ की प्रतिनिधि हैं। उनमें एक की जगह दूसरी को सत्ता में लाने के लिए, हम कम्युनिस्ट कंधा नहीं दे सकते।
स्टालिनवादियों की इस गलीज मेनशेविक नीति ने 70 साल से सर्वहारा को कांग्रेस, राजद, सपा, बसपा, जैसी दर्जनों क्रांतिविरोधी, बूर्जुआ दक्षिणपंथी पार्टियों के पीछे बांधे रखा है और फ़ासीवाद के लिए विपक्ष का मैदान बिल्कुल खाली छोड़कर उसे सता में पहुंचने में मदद दी है।

प्रश्न- क्या स्वतंत्र लेफ्ट ब्लॉक् का विचार दक्षिणपंथ की सारी पार्टियों को दूसरे ध्रुव पर उसके विरुद्ध एकजुट नहीं करेगा?
उत्तर- बिलकुल करेगा! हम यही चाहते हैं कि दक्षिणपंथ की तमाम पार्टियां एक तरफ एकजुट हों, लेफ्ट ब्लॉक् के खिलाफ एकजुट हों, जिससे साधारण से साधारण मजदूर, मेहनतकश लोग उनका वर्ग चरित्र आसानी से पहचान सकें। यह ध्रुवीकरण ही सब कुछ है। यह क्रान्ति की राह है। पूंजीपति वर्ग इस ध्रुवीकरण से ही डरता है, वह झूठे वामियों की मदद से, इस ध्रुवीकरण को ही स्थगित करना चाहता है। यह ध्रुवीकरण उसके लिए राजनीतिक संकट है और सर्वहारा के लिए क्रान्ति की ओर खुलता हुआ रास्ता।

प्रश्न- सत्ताधारी भाजपा और फासीवाद को लेकर युवा और मजदूर आंदोलित हैं. उस पर आपकी नीति क्या है?
उत्तर- फ़ासिस्ट, पूंजीवाद के हिंसक सुरक्षा दस्ते हैं और इसलिए मज़दूर वर्ग और क्रान्ति के शत्रु नंबर एक हैं। फासीवाद के विरुद्ध युद्ध, हमारे एजेंडे पर सबसे ऊपर है। संघी फासिस्टों के प्रति, मज़दूर वर्ग की घृणा, बिलकुल जायज़ है और हमारे कार्यक्रम की प्रेरक शक्ति है।
मगर झूठे वाम नेता, इस घृणा को पूंजीवाद पर आक्रमण का शस्त्र बनाने के बजाय, अपने संकीर्ण, निहित उद्देश्यों के लिए भुनाते हुए, मज़दूरों, युवाओं को बूर्जुआ नेतृत्व वाले विपक्ष के पीछे बांधते हैं। स्तालिनवादियों का एकांगी और अपाहिज नारा- 'भाजपा हटाओ', अपने आप में राहुल-लालू लाओ का छद्म आह्वान है।
हम इस घृणित मेंशेविक नीति के विरोधी हैं। फासीवाद के प्रश्न पर हमारी नीति लेनिन-ट्रॉट्स्की के नेतृत्व वाले कोमिन्टर्न की नीति से निदेशित है, जिसके मुख्य बिंदु, ये हैं-
१. फ़ासीवाद, मज़दूर वर्ग का शत्रु नंबर एक है लेकिन वह एकमात्र शत्रु नहीं है।
२. फ़ासीवाद के विरुद्ध हमारा संघर्ष, पूंजीवाद के विरुद्ध हमारे कुल संघर्ष का मात्र एक हिस्सा है और उसके मातहत है।
३. फ़ासीवाद और उदारवाद, दक्षिणपंथी बुर्जुआजी के ही दो शिविर हैं और ये मज़दूर वर्ग की अपेक्षा, एक दूसरे के बहुत निकट हैं। यदि बूर्जुआ उदारवादियों, सुधारवादियों को सर्वहारा क्रान्ति और फ़ासीवादी प्रतिक्रांति में एक का चुनाव करना हो, तो वे आंख बंद करके, फ़ासीवादी प्रतिक्रांति का ही चुनाव करेंगे।
४. हमारे युग में, परिपक्व साम्राज्यवाद के युग में, बुर्जुआजी के ये दोनों शिविर, न सिर्फ एक दूसरे के बहुत करीब आ चुके हैं, बल्कि इनके रंग आपस में घुलमिल चुके हैं।
५. बूर्जुआ दक्षिणपंथी विपक्ष-उदारवादियों या सुधारवादियों- से मिलकर, फ़ासीवाद के विरुद्ध कोई संघर्ष सम्भव नहीं है।
६. फ़ासीवाद, पूंजीवाद का ही सशस्त्र सुरक्षा दस्ता है और उसका अस्तित्व पूंजीवाद की गर्भनाल से बंधा है। जब तक पूंजीवाद जीवित है, वह बारम्बार फ़ासीवाद को सामने लाता रहेगा और फ़ासीवाद विजयी रहेगा।
७. स्तालिनवादी, झूठे वाम नेता, मज़दूर वर्ग और युवाओं को, बूर्जुआ दक्षिणपंथी मोर्चों के पीछे बांधने की जुगत भिड़ाते हैं। यही उनकी कुल भूमिका है जिसके लिए शासक बूर्जुआ उनका आभारी है और उन्हें संसद में सीटें, बंगले, गाड़ियां और सत्ता में हिस्सेदारी देता है।
८. बूर्जुआ दक्षिणपंथ की पार्टियों में 'सेक्युलर डेमोक्रेसी' की तलाश, मज़दूर वर्ग और उसके ध्येय के साथ ऐतिहासिक घात है। यह मेंशेविक-स्तालिनवादी नीति है, जिसका मार्क्सवाद से पुराना विरोध है।
९. फ़ासीवाद के विरुद्ध संघर्ष को पूंजीवाद विरोधी संघर्ष से अलग नहीं किया जा सकता और इसलिए इस संघर्ष में मज़दूरों, मेहनतकशों की स्वतंत्र गोलबंदी पर आधारित, लेफ्ट ब्लॉक का संगठन ही एकमात्र रास्ता है, जिसका लक्ष्य समूची दक्षिणपंथी बुर्जुआजी को किनारे लगाना है।
१०. मज़दूर वर्ग का ध्येय, फ़ासीवादी और गैर-फ़ासीवादी बूर्जुआ दक्षिणपंथी पार्टियों के बीच सत्ता-अन्तरण में सहयोगी भूमिका निभाना और उस पर ताली पीटना नहीं है, बल्कि खुद सत्ता के लिए दावेदारी करना है।

प्रश्न- क्या स्वतंत्र लेफ्ट ब्लॉक् की नीति और विपक्ष के लेफ्ट-राइट में विभाजन से, सत्ताधारी भाजपा को फायदा नहीं होगा?
उत्तर- ऐसा वही कह सकता है जिसने इस प्रश्न पर गंभीरता से विचार नहीं किया है। लेफ्ट ब्लॉक् के स्वतंत्र संगठन का विचार, किसी भी अर्थ में भाजपा के विरुद्ध विपक्ष की एकता को खंडित नहीं करता बल्कि उल्टा उसे एक मज़बूत धुरी देता है। यदि कांग्रेस, राजद, सपा, बसपा के नेता भाजपा को सत्ताच्युत करने के लिए वाकई संजीदा और समर्पित हैं, तो उन्हें भाजपा के विरुद्ध लेफ्ट ब्लॉक् का समर्थन करना चाहिए और उसे सत्ता लेने में मदद करनी चाहिए। क्या वे ऐसा करेंगे? स्पष्ट है कि वे ऐसा नहीं करेंगे। वे किसी भी स्थिति में लेफ्ट ब्लॉक् का समर्थन नहीं करेंगे। वे खुद सत्ता हथियाने के लिए वाम शक्तियों का इस्तेमाल करना चाहते हैं। यदि इन नेताओं को सर्वहारा की तानाशाही और फासीवाद के बीच एक को चुनने का विकल्प मिले तो निश्चित रूप से वे आंख बंद करके, फासीवादी तानाशाही को गले लगाएंगे। क्या बुर्जुआ दक्षिणपंथ के ये नेता, फासीवाद के विरुद्ध सड़क पर संघर्ष में, हमारे साथ मिलकर सैनिक मोर्चा बनाएंगे? कभी नहीं बनाएंगे! फासीवादियों की तरह ही बुर्जुआ दक्षिणपंथ के ये विपक्षी नेता भी पूंजीपतियों की तानाशाही के समर्थक हैं, उसे जनवाद बताते हैं और उसे कायम रखना चाहते हैं। फासीवादियों से उनका मतभेद सिर्फ इस बात को लेकर है कि इस तानाशाही को खुले दमन की नीति के जरिए अंजाम न देकर, उसे डेमोक्रेसी के परदे के पीछे प्रच्छन्न रूप में जारी रखा जाय। उन्हें लेफ्ट ब्लॉक् नहीं चाहिए बल्कि अपने नेतृत्व वाले दक्षिणपंथी मोर्चों की पूंछ पर बैठे हुए झूठे और दलाल वाम नेता चाहिएं जो सर्वहारा और युवाओं को उनके नेतृत्व वाले चुनावी गठजोड़ों के पीछे बांधकर उन्हें सत्ता लेने में मदद करें। स्तालिनवादी वाम के नेता अब तक यही करते आए हैं।
स्तालिनवादियों की इस नीति का परिणाम क्या हुआ? क्या इससे भाजपा को सत्ता लेने से रोका जा सका? नहीं! इस नीति के चलते ही भाजपा भारी बहुमत से सत्ता में आ गई। इसलिए, भाजपा से लड़ने का मतलब, कांग्रेस, राजद, सपा, बसपा जैसी बूर्जुआ दक्षिणपंथी पार्टियों और उनके नेताओं की खड़ाऊं पोंछना नहीं हो सकता भाजपा से लड़ने का अर्थ है- फ़ासीवाद, पूंजीवाद के विरुद्ध, बूर्जुआ दक्षिणपंथ के विरुद्ध, स्वतंत्र लेफ्ट ब्लॉक का निर्माण! विपक्षी एकता का अर्थ है- फासीवाद-पूंजीवाद के विरुद्ध मज़दूरों, मेहनतकशों, युवाओं की एकता।
मगर बुर्जुआ उदारवाद के नेता ऐसी किसी विपक्षी एकता के विरुद्ध हैं जिसकी धुरी लेफ्ट यूनिटी हो।स्तालिनवादी नेता भी ऐसे स्वतंत्र लेफ्ट ब्लॉक के निर्माण के विरुद्ध हैं जो बूर्जुआ दक्षिणपंथ से स्वतंत्र हो और उसे चुनौती देता हो। ये झूठे वामी, कांग्रेस, राजद, सपा, बसपा जैसी बूर्जुआ दक्षिणपंथी पार्टियों को, सेक्युलर-डेमोक्रेसी की पार्टी बताते हुए उनके नेतृत्व वाले दक्षिणपंथी मोर्चों में शामिल होने और इन मोर्चों में अपने अनुयायियों को बूर्जुआ दक्षिणपंथी नेताओं, पार्टियों के मातहत करने की जुगत भिड़ा रहे हैं!
दोनों मिलकर मेहनतकश जनता को फासीवाद का हौवा दिखाकर डराते हुए, उसे दक्षिणपंथी मोर्चों के जुए के नीचे धकेल रहे हैं। बूर्जुआ उदारवादी कहता है- 'चुपचाप सत्ता मुझे दे दो, वरना फ़ासीवादी सत्ता ले लेंगे'।
स्तालिनवादी, उसकी हां में हां मिलाते हुए, मज़दूरों, युवाओं को भरमाता है- 'बूर्जुआ लिबरल, सेकुलर-डेमोक्रैट है, उसे सत्ता ले लेने दो, वरना भेड़िया आ जाएगा'।
हम मज़दूरों, युवाओं से कहते हैं- 'लेफ्ट ब्लॉक बनाओ, सत्ता पर अपना स्वतंत्र दावा ठोको और बूर्जुआ दक्षिणपंथ के इन तीनों हमराहियों- फासीवादियों, उदारवादियों और स्टालिनवादियों- को घसीटकर कूड़ेदान में फेंक दो'!
हमें कांग्रेस को सत्ता में वापस लाकर, पूंजीवाद का राजनीतिक संकट हल नहीं करना है बल्कि इस संकट की मझधार में पूंजीवाद की डोलती नाव को डुबोकर, समाजवादी क्रान्ति की ओर बढ़ना है!

प्रश्न- स्वतंत्र लेफ्ट ब्लॉक् की नीति को लागू करने पर, २०१९ के चुनाव में क्या संभावनाएं बन सकती हैं?
उत्तर- महती और बहुत व्यापक संभावनाएं हैं। आइए पहले देखें कि यदि स्वतंत्र लेफ्ट ब्लॉक् की यह नीति लागू नहीं की जाती तो क्या मंज़र बनेगा। इस स्थिति में, स्तालिनवादी पार्टियां, सर्वहारा और युवाओं को बुर्जुआ दक्षिणपंथ के कांग्रेस नीत मोर्चे के साथ बांधेंगी। इसका बड़ा लाभ सत्ताधारी भाजपा को होगा। कांग्रेस शासन के कुकर्मों को गिनाते हुए, वह खुद अपने कुकृत्यों को उनके बरक्स हल्का कर दिखाने में सफल होंगे और पूरा संघर्ष बुर्जुआ दक्षिणपंथ की इन पार्टियों की वाहियात बहस के बीच सिमट कर रह जाएगा, जिसमें लेफ्ट की भूमिका सिर्फ ताली पीटने वालों की होगी और सर्वहारा को, कम्युनिस्ट युवाओं को, अपने लिए कोई जगह दिखाई नहीं देगी। यदि मत विभाजन, बुर्जुआ दक्षिणपंथ की पार्टियों के बीच सिमट जाता है तो बुर्जुआ दक्षिणपंथ को, विशेष रूप से सत्ताधारी भाजपा को ही इसका सबसे बड़ा लाभ मिलेगा।
इसके विपरीत, यदि स्वतंत्र लेफ्ट ब्लॉक् की नीति लागू की जाती है तो मतों का ध्रुवीकरण लेफ्ट और राइट के बीच हो जायगा। इसके चलते एक तरफ तो लेफ्ट वोट संघनित हो जाएगा और दूसरी ओर राइट वोट दर्जनों बुर्जुआ दक्षिणपंथी पार्टियों के बीच बिखर जाएगा। इस ध्रुवीकरण से, न सिर्फ भाजपा के चीथड़े उड़ जाएंगे बल्कि इससे अलग खड़ी दक्षिणपंथ की दूसरी पार्टियों का भी पर्दाफाश हो जाएगा और वे हाशिए पर जा लगेंगी.

प्रश्न- क्या आपको लगता है कि स्तालिनवादी नेता इस लेफ्ट ब्लॉक् के लिए तैयार होंगे?
उत्तर- हम बिलकुल इस भ्रम में नहीं हैं कि ये नेता किसी भी कीमत पर एक स्वतंत्र लेफ्ट ब्लॉक् के लिए तैयार होंगे। इनकी कुल भूमिका ही दक्षिणपंथ की पार्टियों और मोर्चों के पीछे सर्वहारा और युवाओं को बांधने और उनके मातहत करने में निहित है। ये कभी भी स्वतंत्र लेफ्ट ब्लॉक् को संगठित नहीं होने देंगे बल्कि उसका खुला विरोध करेंगे।

प्रश्न- मान लें, यदि वे लेफ्ट ब्लॉक् बनाते हैं तो?
उत्तर- इसकी कोई सम्भावना न होते भी हम कहना चाहते हैं कि यदि स्तालिनवादी नेता, बूर्जुआ दक्षिणपंथ से नाता तोड़, स्वतंत्र लेफ्ट ब्लॉक बनाते हैं, तो हम उनके उम्मीदवारों को बिना शर्त समर्थन देंगे। मगर यदि वे ऐसा नहीं करते और दक्षिणपंथी मोर्चों से चिपके रहते हैं, तो हम उनके विरुद्ध प्रत्याशी उतारेंगे 2019 के आम चुनाव में।
हम स्तालिनवादी वाम पार्टियों से कहते हैं- "आप सत्ता के लिए संघर्ष कीजिए। हम आपके साथ हैं। मगर आप खुद सत्ता लें। राहुल-लालू की पालकी ढोना बन्द करें!" मेंशेविकों की ही तरह, स्तालिनवादी नेताओं के पास इसका कोई जवाब नहीं है। वे बगलें झांक रहे हैं। वे खुद को और अपने अनुयायियों को, बूर्जुआ पार्टियों के पास गिरवी रख चुके हैं और वे वापस नहीं लौट सकते।
मगर युवा कम्युनिस्ट साथी क्रान्ति की ओर अवश्य पलटेंगे। वे अवश्य ही इन दलाल नेताओं को खदेड़ेंगे। देर-सवेर वे क्रान्ति की राह चुनेंगे। चार कम्युनिस्ट अन्तर्राष्ट्रीयों के इतिहास और अनुभवों के रूप में, विश्व कम्युनिस्ट आंदोलन की चमकती विरासत उनके सामने है। उनके सामने है WSP और उसका कार्यक्रम जो इस अटूट विरासत की वारिस है!

प्रश्न- यदि स्तालिनवादी नेता दक्षिणपंथी मोर्चों के साथ ही बंधे रहते हैं तो आगामी आम चुनावों में आपकी रणनीति क्या होगी?
उत्तर- इस स्थिति में संसदीय क्षेत्र दो हिस्सों में बंट जाएंगे- एक वे जिनमें झूठे वाम नेता अपने काडरों को बुर्जुआ दक्षिणपंथ की पार्टियों के लिए प्रचार करने के लिए कहेंगे और दूसरे वे जिन्हें बुर्जुआ नेता इन वाम नेताओं के लिए छोड़ेंगे। हम इन दोनों क्षेत्रों में लड़ेंगे। पहले क्षेत्रों में हमारा नारा होगा- ‘बुर्जुआ दक्षिणपंथ को किनारे लगाओ, लेफ्ट ब्लॉक् को जिताओ!’ दूसरे क्षेत्रों में हमारा नारा होगा- ‘दक्षिणपंथ और उसके दलाल झूठे वाम को किनारे लगाओ, लेफ्ट ब्लॉक् को जिताओ’। हम कहेंगे कि झूठे स्तालिनवादी वाम को वोट या समर्थन, अंततः, कांग्रेस के नेतृत्व वाले, बूर्जुआ दक्षिणपंथी शिविर को ही समर्थन है। इन सभी क्षेत्रों में हम मतों का लेफ्ट-राइट के बीच ध्रुवीकरण करते हुए, सर्वहारा मतों को स्वतंत्र लेफ्ट ब्लॉक् के लिए संघनित करेंगे।

प्रश्न- तो क्या लेफ्ट ब्लॉक् के लिए अपील में आप स्तालिनवादी वाम नेताओं को संबोधित नहीं कर रहे?
उत्तर- हम इन नेताओं को संबोधित कर रहे हैं, सभी को कर रहे हैं. मगर हम किसी भ्रम में नहीं हैं। हम जानते हैं कि ये ऐसा कभी नहीं करेंगे। इन झूठे वाम नेताओं को हमारे संबोधन का उद्देश्य इन नेताओं की कलई खोलना है, इनका नकाब नोच डालना है, ताकि दसियों लाख युवा कम्युनिस्ट कार्यकर्त्ता, सिर्फ सिद्धांत में ही नहीं, बल्कि व्यवहार में अपनी आंखों से देख सकें कि ये फ़र्ज़ी वाम नेता किस कदर स्वतंत्र लेफ्ट ब्लॉक् के प्रस्ताव के विरोधी हैं और किस तरह मज़दूरों, युवाओं को घृणित बुर्जुआ दक्षिणपंथी मोर्चों के पीछे बांधने को उत्सुक हैं।
लेफ्ट ब्लॉक् के लिए हमारी अपील, वास्तव में इन्हीं लाखों युवा कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं को है जो क्रान्ति और समाजवाद के लिए ईमानदारी से संघर्ष चाहते हैं, मगर जिन्हें इन झूठे नेताओं ने भ्रमित कर किसी न किसी बहाने दक्षिणपंथी बुर्जुआ पार्टियों, नेताओं के पीछे बांधे रखा है।

प्रश्न- जब आप स्तालिनवादियों को ‘झूठे वामी’ कहते हैं तो उनके साथ लेफ्ट ब्लॉक् बनाने के लिए क्यों अपील कर रहे हैं?
उत्तर- हम स्तालिनवादियों को ठीक ही झूठे वामी कहते हैं क्योंकि वे दक्षिणपंथ के साथ चिपके हुए हैं। अपनी अपील में भी हम यही कह रहे हैं कि वे दक्षिणपंथ से नाता तोड़ें और लेफ्ट ब्लॉक् के निर्माण की ओर मुड़ें। दरअसल लेफ्ट ब्लॉक् किसी भी अर्थ में नेताओं और पार्टियों के बीच मोर्चा नहीं है बल्कि यह विभिन्न विचारों, दलों, में बिखरे साधारण युवा कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं और सर्वहाराओं के बीच मोर्चा है जो उनकी सांझी कार्रवाइयों को एक दिशा में संचालित करता है।

प्रश्न- इस स्थिति में, कम्युनिस्ट काडरों के सामने क्या विकल्प होंगे और इतिहास आपके और स्तालिनवादियों के बीच इस संघर्ष का मूल्यांकन कैसे करेगा?
उत्तर- WSP और स्टालिनवादियों के बीच संघर्ष का फैसला, इतिहास ने कर दिया है। चुनाव की आहट मिलते ही, हर बार की तरह, इस बार भी, स्तालिनवादी नेताओं ने बूर्जुआ दक्षिणपंथ के आगे समर्पण कर दिया है। वे स्पष्ट कह रहे हैं कि वे वाम की ओर से सत्ता पर दावा करने में असमर्थ हैं। उनके हिसाब से भाजपा का विकल्प वे नहीं, बल्कि कांग्रेस, राजद, सपा, बसपा जैसी बूर्जुआ दक्षिणपंथी पार्टियों का संघात है, जिसकी वे पूंछ पकड़ने के लिए तैयार हैं।
पूंजीवाद के इन दलालों ने, एक बार फिर युवा काडरों को धोखा दिया है। उन्होंने कार्यकर्ताओं को फिर से मझधार में छोड़ दिया है और दूर खड़े होकर ताली पीटते हुए वे उन्हें बूर्जुआ दक्षिणपंथ की नाव में सवार होने की सलाह दे रहे हैं।
काडरों के पास दो विकल्प हैं- या तो अपने नेताओं की बात मानें और बूर्जुआ दक्षिणपंथ की गोद में बैठ जाएं या फिर इन कायर नेताओं की तरफ पीठ फेरकर, स्वतंत्र लेफ्ट ब्लॉक कायम करने की WSP की अपील को स्वीकार करें.
हमने युवा काडरों को कहा है कि सभी शहरों में लेफ्ट-यूनिटी कांफ्रेंस करके, यह सांझा संकल्प प्रस्ताव स्वीकृत किया जाय-
"वामधारा से जुड़े हम सभी साथी, जो अलग-अलग पार्टियों, ग्रुपों, संगठनों से जुड़े हैं, खुद को लेफ्ट यूनिटी के लिए समर्पित करते हैं। हम, सर्वसम्मति से, बूर्जुआ दक्षिणपंथ की तमाम पार्टियों के विरुद्ध, लेफ्ट ब्लॉक बनाने की नीति का पूर्ण समर्थन करते हैं। हम सभी लेफ्ट नेताओं, कार्यकर्ताओं से यह मांग करते हैं कि वे दक्षिणपंथी पार्टियों, नेताओं से अविलंब संबंध विच्छेद करें। हम उन सभी प्रस्तावों, संकल्पों को तुरंत प्रभाव से खंडित करते हैं जो दक्षिणपंथी बूर्जुआ पार्टियों के साथ गठजोड़ बनाने का रास्ता खोलते हैं। इसके साथ ही हम तुरन्त ऐसे स्वतंत्र लेफ्ट ब्लॉक में संगठित होने की घोषणा करते हैं जो दक्षिणपंथी पार्टियों, नेताओं के विरुद्ध निदेशित होगा। 2019 के आम चुनाव में सभी दक्षिणपंथी बूर्जुआ पार्टियों को किनारे लगाने के क्रान्तिकारी संकल्प के साथ"।

प्रश्न- स्तालिनवादी नेता, लेफ्ट ब्लॉक् के प्रस्ताव का विरोध क्यों कर रहे हैं?
उत्तर- मज़दूरों-मेहनतकशों-युवाओं को लेफ्ट ब्लॉक में संगठित करने की हमारी मुहिम ने, पूंजीवाद के दलालों के बीच, भगदड़ मचा दी है। उन्हें इस प्रस्ताव को धराशायी करने की बेचैनी तो है मगर समझ नहीं आ रहा कि कहें तो क्या कहें और करें तो क्या करें।
बूर्जुआ पार्टियों से नाता तोड़ने और स्वतंत्र लेफ्ट ब्लॉक का निर्माण करने के हमारे प्रस्ताव पर कीचड़ उछालते, स्टालिनवादियों ने, एकजुट होकर, WSP के खिलाफ कुत्सा प्रचार शुरू कर दिया है। सौ बहानों से, झूठे वाम नेता लेफ्ट ब्लॉक् बनाने के WSP के प्रस्ताव को ख़ारिज कर रहे हैं।
'लेफ्ट ब्लॉक' बनाने के WSP के प्रस्ताव का विरोध करते हुए वे कांग्रेस, राजद, सपा, बसपा जैसी घोर प्रतिक्रियावादी, क्षेत्रवादी, जातिवादी, दक्षिणपंथी पार्टियों को 'सेक्युलर-डेमोक्रेटिक' बता रहे हैं और उनके साथ मोर्चे बनाने की फिराक में हैं। दरअसल ये नेता पहले ही अपनी पार्टी और अपने अनुयायी मज़दूरों, युवाओं को कांग्रेस, राजद जैसी दक्षिणपंथी बुर्जुआ पार्टियों के पीछे बांधने के लिए सुपारी ले चुके हैं। संसद में अपने लिए कुछ सीटें सुरक्षित करने के लिए ये झूठे वाम नेता, बुर्जुआ नेताओं के पीछे जीभ लपलपाते घूम रहे हैं। साधारण कार्यकर्ताओं की पीठ के पीछे, उन्हें धोखे में रखते हुए ये नेता, ऐन मौके पर, ठीक चुनाव से पहले, बुर्जुआ पार्टियों के साथ गठजोड़ की औपचारिक घोषणा करेंगे, ताकि कार्यकर्ताओं को विरोध का अवसर तक न मिले।
ये मक्कार नेता, दशकों से युवा कार्यकर्ताओं को इसी तरह बुर्जुआ पार्टियों, नेताओं के हाथों, गिरवी रखते आ रहे हैं। इन नीतियों के चलते ही फासीवाद विजयी हुआ है। दक्षिणपंथी बूर्जुआ पार्टियों की दुम पकड़ने की इस मेनशेविक-स्तालिनवादी नीति ने ही पिछली एक सदी में सर्वहारा क्रान्तियों का सर्वनाश किया है और आज भी कर रही है। यदि अब भी इनसे, इनकी इस दोयम मेन्शेविक नीति से किनारा न किया गया तो आन्दोलन का सर्वनाश तय है।
मज़दूर वर्ग का ऐतिहासिक ध्येय, भाजपा और कांग्रेस के बीच सत्ता की अदला-बदली से सिद्ध नहीं होता। हमें कांग्रेस, भाजपा सहित, बूर्जुआ दक्षिणपंथ की तमाम पार्टियों को किनारे लगाते हुए, लेफ्ट ब्लॉक संगठित कर, क्रान्ति की ओर बढ़ना है। मगर झूठे वाम नेता इस स्वतंत्र पहलकदमी का विरोध कर रहे हैं। इन जोकरों को अनदेखा करते, हम स्वतंत्र लेफ्ट ब्लॉक के निर्माण में जुटे हैं। समय कम है और कार्यभार विशाल।

प्रश्न- लेफ्ट ब्लॉक् के विरोध के लिए स्तालिनवादी नेताओं की दलील और तर्क क्या हैं?
उत्तर- दरअसल, स्तालिनवादी नेताओं के लिए सिद्धांत सिर्फ खोखली चर्चा का विषय है। व्यवहारिक राजनीति में एक ही दक्षिणपंथी शिविर को वे दो विपरीत ध्रुवों में बांटकर प्रस्तुत करते हैं- एक भाजपा के नेतृत्व वाला ध्रुव जिसे वे दक्षिणपंथी कहते हैं और दूसरा कांग्रेस के नेतृत्व वाला ध्रुव, जिसे वे वाम कहते हैं। यह उनके लिए कुल राजनीतिक स्पेक्ट्रम है, जिस पर, हमें तो छोडिए, वे खुद अपने लिए भी सिर्फ एक कुली की भूमिका तय करते हैं जिसका काम कांग्रेस के नेतृत्व वाले कथित वाम धड़े की पालकी ढोना है, उसे सत्ता पर नियंत्रण करने में मदद देना है।
हम इस समझ को ख़ारिज करते हैं और भाजपा से कांग्रेस तक, बुर्जुआ दक्षिणपंथ की तमाम पार्टियों को एक ही दक्षिणपंथी ध्रुव पर रखते हैं। दूसरे ध्रुव पर हम सर्वहारा और कम्युनिस्ट युवाओं को रखते हैं जिन्हें लेकर हम लेफ्ट ब्लॉक् के निर्माण का प्रस्ताव कर रहे हैं। स्तालिनवादियों के लिए, सर्वहारा और क्रान्तिकारी युवा, कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रखते और वे उन्हें किसी स्वतंत्र भूमिका में नहीं देखते, राजनीतिक ध्रुव की कल्पना तो बहुत दूर की बात है।

प्रश्न- फासीवादी भाजपा के शासन के इन चार सालों ने वाम राजनीतिक कैनवास को कैसे प्रभावित किया है?
उत्तर- फ़ासीवादी शासन के चार सालों ने, पूंजीवाद में युवाओं और मेहनतकश जनता के भ्रमों को और चकनाचूर किया है। दसियों लाख साधारण कम्युनिस्ट कार्यकर्ता, जो लेफ्ट यूनिटी के हिमायती हैं, पूंजीवाद-फ़ासीवाद के विरुद्ध स्वतंत्र संघर्ष के लिए तत्पर हैं। वे चाहते हैं कि पूंजीवादी पार्टियों, नेताओं से, दक्षिणपंथ से, दूर हटा जाय और मज़दूरों, मेहनतकशों, युवाओं को, उन सबसे स्वतंत्र लेफ्ट ब्लॉक में संगठित किया जाय।WSP की नीति और सर्वसम्मति से पास किया गया उसका राजनीतिक प्रस्ताव, आम साधारण युवा कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं की इसी गहन और क्रान्तिकारी आकांक्षा को समवेत स्वर देता है। 
दूसरी ओर, तमाम दक्षिणपंथी शक्तियों के घालमेल से तैयार, फासीवाद-विरोधी गठजोड़ों का उभार, फासीवाद के सबसे विषैले प्रभावों में से एक है. इन गठजोड़ों का उद्देश्य, फासीवाद को नष्ट करना नहीं, बल्कि उसके शासन में अस्थिर और असंतुलित हो रहे पूंजीवाद को संतुलित करना और बुर्जुआ जनवाद को वापस लौटा लाना है। झूठे वाम नेता, मज़दूरों, युवाओं को इन दक्षिणपथी गठजोड़ों के पीछे बांधने में एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहे हैं।


प्रश्न- आपकी अपील को युवा युवा कम्युनिस्ट कार्यकर्ता कैसे ले रहे हैं?
उत्तर- युवा कार्यकर्ता, WSP के राजनीतिक प्रस्ताव का, बड़े पैमाने पर, दिल खोलकर समर्थन कर रहे हैं, जबकि झूठे वाम नेता एड़ी-चोटी का जोर लगाकर, इस प्रस्ताव का विरोध कर रहे हैं, उसे कलंकित कर रहे हैं। जबकि दसियों लाख साधारण कार्यकर्ता क्रान्ति के उद्देश्य से अनुप्रेरित हैं, इन बोगस स्तालिनवादी नेताओं का उद्देश्य महज़ अपने लिए संसद में कुछ सीटें सुरक्षित करना है।
गद्दार स्तालिनवादी नेता, युवा कार्यकर्ताओं और अपने अनुयायी मज़दूरों, मेहनतकशों को, इस या उस बूर्जुआ दक्षिणपंथी ब्लॉक के पीछे बांधने की जुगत भिड़ा रहे हैं। पहले की ही तरह वे कांग्रेस, राजद, सपा, बसपा जैसी प्रतिगामी, बूर्जुआ दक्षिणपंथ की पार्टियों से गोटी बिठाने की फिराक में हैं। वे फ़ासीवाद के भूत से युवा कार्यकर्ताओं को डरा रहे हैं। पूंजीवाद के दलाल, स्तालिनवादी नेता हमें समझा रहे हैं कि फ़ासीवादी बुरे थे, उदारवादी भले हैं, इस बार सत्ता उन्हें सौंप दो। फ़ासीवाद को यह बढ़त इन नेताओं की इन्ही बूर्जुआ परस्त, घृणित नीतियों से मिली है।
स्तालिनवादी नेता, युवाओं, मज़दूरों की किसी भी स्वतंत्र कार्रवाई के सख्त खिलाफ हैं। वे किसी भी कीमत पर युवाओं, मज़दूरों को किसी दक्षिणपंथी बूर्जुआ राजनीतिक ब्लॉक के मातहत रखना चाहते हैं।
यह उत्साहित करने वाली बात है कि WSP के प्रस्ताव को लेकर, स्तालिनवादी वाम के भीतर, बगावत के बादल उमड़ने-घुमड़ने लगे हैं। युवा कार्यकर्ताओं ने अपने नेताओं से कहना शुरू किया है, "कामरेड, बात तो WSP सही कह रही है। दक्षिणपंथी बूर्जुआ पार्टियों से नाता तोड़ क्यों न लेफ्ट ब्लॉक बनाया जाय?"
चतुर नेता, कार्यकर्ताओं को खट्टी-मीठी गोली दे रहे हैं जिसे कार्यकर्ताओं को न उगलते बन रहा न निगलते।
यह स्पष्ट हो रहा है कि आने वाले दिनों में विस्फोट तय है। युवा कम्युनिस्ट कार्यकर्ता, उस पुरानी, बदरंग, मेंशेविक नीति को चुनौती देंगे ही जो उन्हें राहुल-लालू जैसे क्रांतिविरोधियों के पीछे बांधती है।
दसियों लाख कम्युनिस्ट काडर, वाम आन्दोलन का सांझा काडर है। यह जुझारू और ईमानदार है और क्रान्ति के लिए उत्सुक है। यह लेफ्ट यूनिटी और बुर्जुआ पार्टियों से विच्छेद चाहता है। WSP इन सजग, विद्रोही, युवा साथियो को ही कम्युनिस्ट उम्मीदवारों के रूप में भारत भर में चुनाव मैदान में उतारेगी।
सिर्फ मुट्ठी भर स्तालिनवादी नेता, लेफ्ट यूनिटी को पलीता लगाते हैं। ये झूठे नेता, इस जुझारू काडर को बुर्जुआ दक्षिणपंथी पार्टियों के पीछे बांधते हैं और फलतः आन्दोलन में जानबूझकर बिखराव पैदा करते हैं। ये नेता अच्छी तरह जानते हैं कि एकजुट वाम काडर, पलक झपकते पूंजीवाद-फासीवाद को धूल चटा सकता है। इनका उद्देश्य और इनकी राजनीतिक भूमिका, जिसके लिए बुर्जुआ इन्हें संसद में सीटें, बंगले, गाड़ियां देता है, इसमें निहित है कि वाम आन्दोलन को विखंडित रखा जाय, उसे एकजुट होने से रोका जाय और इस उद्देश्य के लिए उसे रंग-बिरंगे बुर्जुआ दक्षिणपंथी वर्चस्व वाले मोर्चों के पीछे बांध रखा जाय।
लेफ्ट ब्लॉक् का प्रस्ताव, स्तालिनवादियों की इस झूठी मेन्शेविक नीति का खंडन करता है और सर्वहारा को धुरी बनाकर, व्यापक मेहनतकश जनता को बुर्जुआ दक्षिणपंथ के विरुद्ध संगठित करने का आधार तैयार करता है। 

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