Sunday 26 June 2016

वर्कर्स सोशलिस्ट पार्टी का आह्वान

११ जुलाई की राष्ट्रव्यापी अनिश्चितकालीन हड़ताल को
आम राजनीतिक हड़ताल में बदलते हुए
मजदूर-किसान सरकार की स्थापना के लिए
संघर्ष को आगे बढ़ाओ!

साथियो,

११ जुलाई से रेल मजदूरों की देशव्यापी, अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू होने वाली है, जिसमें १३ लाख रेल कर्मचारी भाग लेंगे. १९७४ के बाद यह पहली देशव्यापी, अनिश्चितकालीन हड़ताल होगी. हड़ताल की फौरी और प्रमुख मांगें हैं: सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों और नई पेंशन नीति पर पुनर्विचार, न्यूनतम वेतन १८ हज़ार से बढाकर २६ हज़ार, और कर्मियों के रिक्त पदों पर नियुक्तियां. रक्षा और डाक-तार सहित कुछ और क्षेत्रों में भी कर्मियों ने इस हड़ताल में भाग लेने की घोषणा कर दी है, जिससे हड़तालियों की कुल संख्या ३५ लाख के पार जा सकती है.

इस दृष्टि से, ११ जुलाई की यह हड़ताल, बहुत महत्वपूर्ण है. यह हड़ताल, पूंजीवादी सरकार की चूल हिला सकती है, उसे घुटनों पर ला सकती है और पूंजीपतियों के नेतृत्व वाली सत्ता के लिए मजदूर वर्ग की ओर से बड़ी चुनौती बन सकती है.

इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए, हड़ताल को व्यापकतम आधार देना होगा. इसे अलग-थलग पड़ने से बचाने और प्रभावी बनाने के लिए, मजदूरों, कर्मियों के अधिकाधिक हिस्सों को, विशेषतः रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण उद्योगों और सेवाओं में लगे मजदूरों को, इस हड़ताल में खींचा जाना चाहिए. इसके लिए देश भर में मजदूरों, कर्मियों के दूसरे हिस्सों को प्रभावित करने वाली आम आर्थिक, राजनीतिक मांगों को जोड़ते, उठाते हुए, हड़ताल को आम राजनीतिक हड़ताल में बदलते हुए, पूंजीवादी सरकार के विरुद्ध क्रान्तिकारी संघर्ष की ओर मोड़ा जाना चाहिए.

२००८ के अंत से शुरू हुआ संकट का नया दौर, जिसने विश्व-पूंजीवाद को फिर से असंतुलित कर दिया है, पूरी दुनिया में मजदूर वर्ग को आंदोलित कर रहा है. अमेरिका से यूरोप और लैटिन अमेरिका से मध्य-पूर्व तक, मजदूर-वर्ग संघर्ष की ओर मुड़ रहा है. भारत के बैंगलोर में गारमेंट मजदूरों का हालिया संघर्ष, सर्वहारा संघर्षों के इसी नए युग का द्योतक है.

आज जबकि दुनिया के पूंजीपति आर्थिक संकट के बीच घिरे हैं, तो हमेशा की तरह इन सरकारों की भरपूर कोशिश है कि इस संकट का सारा बोझ मेहनतकश जनता के कन्धों पर लाद दिया जाय. जिसके चलते, तमाम पूंजीवादी देशों में मेहनतकश जनता और उसके जीवन स्तर पर हमले अधिकाधिक तीखे होते जा रहे हैं.

भारत में सत्तासीन, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली दक्षिणपंथी भगवा सरकार, मजदूरों-मेहनतकशों पर हमलों में विशेष रूप से आगे रही है. मोदी सरकार ने कांग्रेस सहित तमाम दूसरी दक्षिणपंथी सरकारों को इस मामले में पीछे छोड़ दिया है. मोदी सरकार के तहत, साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण और मजदूर विरोधी पूंजीपरस्त नीतियों को चरम पर पहुंचाया जा रहा है.

पहले कांग्रेस और फिर भाजपा नीत केंद्र सरकारों ने, भारत को अमेरिका के नेतृत्व वाले सैनिक गिरोह नाटो के पीछे बांधकर वैश्विक पूंजी के हिंसक अभियानों और अनवरत युद्धों का सहभागी बना दिया है, जिसका उद्देश्य भारत के पूंजीपतियों के क्षेत्रीय साम्राज्यवादी मंसूबों की पूर्ति के अतिरिक्त और कुछ नहीं है.

देशों और दुनिया पर राज कर रहे पूंजीपति और उनकी ये कठपुतली सरकारें, जो मेहनतकश जनता के असीमित शोषण और उत्पीड़न का औज़ार भर हैं, संकट के इस दौर में अधिकाधिक युद्ध, हिंसा, दमन और खूनखराबे का सहारा ले रही हैं. अमेरिका के नेतृत्व में दुनिया के पूंजीवादी गिरोहों ने, मध्य-पूर्व से प्रशांत महासागर तक ‘आतंक-विरोधी युद्ध’ के नाम पर विनाश और हिंसा का तांडव छेड़ा हुआ है. विश्व-पूंजीवाद और उसके इन राष्ट्रीय गुर्गों ने दुनिया को असीमित युद्ध की भट्ठी में झोंक रखा है जो किसी भी क्षण नाभिकीय विश्वयुद्ध की विभीषिका में बदलेगा. पर्यावरण को पूंजीवादी लूट और मुनाफों की अंधी होड़ ने पहले ही अपूरणीय क्षति पहुंचा दी है.

दक्षिण एशिया में मेहनतकश जनता की जीवन स्थितियां विशेष रूप से नारकीय हैं. भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल जैसे देश दुनिया में सबसे अधिक अशिक्षित, रुग्ण, भूखे, गरीब और कुपोषित लोगों से लबालब भरे पड़े हैं. इस सबसे आंख मूंदे, इन देशों की पूंजीवादी सरकारें साम्राज्यवादी ध्रुवों से चिपकी हुई, राष्ट्रीय संसाधनों का बड़ा हिस्सा शस्त्रास्त्रों की अनियंत्रित और अंधी दौड़ में फूंक रही हैं. ये सरकारें अपने देशों के प्राकृतिक और मानवीय संसाधनों को विश्व-पूंजीवाद के सुपुर्द करके, अनियंत्रित अन्तर्राष्ट्रीय लूट और शोषण के लिए दरवाजे खुले छोड़ रही हैं.

इन असह्य और पाशविक जीवन स्थितियों को, जिनमें भारत, दक्षिण-एशिया और दुनिया की करोड़ों-करोड़ मेहनतकश जनता घिरी है, पूंजीवाद ने उत्पन्न किया है. मजदूर वर्ग का राजनीतिक मिशन, इन स्थितियों को बदलने और इनके स्रोत, पूंजीवाद को नष्ट करने पर लक्षित है. मजदूर वर्ग का ऐतिहासिक उद्देश्य है- पूंजीपति वर्ग और उसकी दलाल सरकारों को उलटना और उनकी जगह मजदूर वर्ग के नेतृत्व वाली मजदूर-किसान सरकारों की स्थापना. पूंजीवाद का ध्वंस और समाजवाद की स्थापना. मजदूर वर्ग का हर संघर्ष, हर हड़ताल, सचेत रूप से इसी दिशा में निदेशित होना चाहिए.

मजदूर वर्ग ने इन स्थितियों को बदलने, उलटने के लिए निरन्तर संघर्ष किया है. मगर झूठे और अवसरवादी नेताओं ने उसे हर बार चकमा दिया है और इन संघर्षों को पराजित करने में अहम् भूमिका निभाई है. इनके नेतृत्व वाली ट्रेड-यूनियनें, पूंजी-परस्त सत्ता की ओर से लगातार बढ़ते हमलों के विरुद्ध, साधारण मजदूरों, कर्मचारियों के हितों की रक्षा करने में न सिर्फ असमर्थ रही हैं, बल्कि उन्होंने मजदूरों के लिए संघर्ष करने के बजाय उन्हें संघर्ष से विरत किया है और उन्हें पूंजीवादी सत्ता के विरुद्ध मोर्चा खोलने से रोका है. उनके अवसरवादी नेता सत्ता प्रतिष्ठान के साथ बंधे रहे हैं और उन्होंने मजदूरों को उसके पीछे बांधे रखा है. नई पीढ़ियों को संघर्षों से पूरी तरह काट दिया गया है और हडतालों को अपशब्द बना दिया गया है.

दुनिया भर में ट्रेड-यूनियनों और इनके नेताओं की भूमिका अधिकाधिक मजदूर विरोधी होती गई है और उनकी अगुवाई में मजदूर वर्ग हताश, निराश और पराजित होता गया है. इन ट्रेड-यूनियनों के अधिकतर नेता मजदूर वर्ग से हैं ही नहीं, बल्कि वे पेशेवर लोग हैं जिन्होंने सत्ता से सांठ-गांठ और साधारण मजदूरों के हितों से गद्दारी करते हुए, अपने लिए कार-कोठी-पदों वाला सुविधाभोगी जीवन बना लिया है और साधारण मजदूरों को मरते-पिटते रहने के लिए छोड़ दिया है. साधारण मजदूरों के साथ इनका रिश्ता सिर्फ चंदे बटोरने तक सीमित रह गया है.

झूठा, अवसरवादी वाम, जिसमें रंग-बिरंगी स्तालिनवादी कम्युनिस्ट पार्टियां और उनके नेतृत्व वाली ट्रेड-यूनियनें शामिल हैं, किसी न किसी बहाने दुनिया भर में पूंजीपरस्त पार्टियों और नेताओं से चिपका रहा है और पूंजीवाद को चुनौती देने के बजाय उसने इसकी सत्ता को मजबूती दी है और उसे कितने ही संकटों से उबरने में मदद दी है.

पिछले वर्ष, २ सितम्बर को १२ केन्द्रीय ट्रेड-यूनियनों द्वारा एक दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल के सालाना रस्मी आह्वान को मजदूरों, कर्मचारियों की ओर से भारी समर्थन मिला था. मगर ट्रेड-यूनियन नेताओं ने इस समर्थन को पूंजीपतियों की सत्ता और पूंजीवाद की व्यवस्था के विरुद्ध मोड़ने से इनकार करते हुए इसे व्यर्थ कर दिया था.

साधारण मजदूरों के बीच बढ़ते रोष और नीचे से बढ़ते दबाव के चलते, ट्रेड-यूनियनों को यह हड़ताल घोषित करनी तो पड़ी है मगर वे सरकार के साथ समझौते के लिए लालायित हैं. इन नेताओं ने हड़ताल के लिए संजीदगी से कोई तैयारी नहीं की है, उसके लिए मजदूरों, कर्मचारियों के बीच कोई कारगर और व्यापक अभियान नहीं चलाया है, कोई लामबंदी नहीं की है. हड़ताल को न्यूनतम आर्थिक मांगों तक ही सीमित रखा गया है. पूंजीपतियों की सत्ता को कोई सीधी चुनौती नहीं दी गई है, कोई राजनीतिक मांगे नहीं रखी गई हैं. यह स्पष्ट है कि इनका फोकस, बेदम और बेमन से घोषित की गई इस हड़ताल को जल्द से जल्द कोई समझौता करके ख़त्म कराने पर रहेगा.   

फिर भी न तो सरकार और न ट्रेड-यूनियन नेता इस हड़ताल को इन मांगों को लांघने और क्रान्तिकारी राह पर बढ़ने से रोक सकते हैं. चौतरफा बढ़ती महंगाई और फलतः गिरते जीवन-स्तर से जूझते मजदूरों, कर्मचारियों, मेहनतकशों के पास इन विषम जीवन-स्थितियों के विरुद्ध संघर्ष के सिवा दूसरा कोई विकल्प है ही नहीं. यह हड़ताल, मेहनतकश जनता के बीच मौजूद इसी व्यापक रोष की अभिव्यक्ति और संघर्ष का एक पड़ाव है.

संघर्षों में विजय हासिल करने के लिए मजदूर वर्ग को इस दलाल ट्रेड-यूनियन ब्यूरोक्रेसी से पल्ला छुड़ाना होगा और नीचे से साधारण मजदूरों की स्वतंत्र और जुझारू पहलकदमी पर आन्दोलन को आधारित करना होगा. उन मांगों से शुरू करके जिन्हें इस हड़ताल ने फौरी तौर पर सामने रखा है, इस हड़ताल को पूंजीपति वर्ग और उसकी सत्ता के विरुद्ध क्रान्तिकारी मंच में बदलना होगा. इन मांगों से आगे बढ़कर, मजदूर-किसान सरकार की स्थापना के लिए लड़ना होगा.

इस उद्देश्य से, हम सर्वहारा के अगुआ तत्त्वों का आह्वान करते हैं कि वे तुरंत तमाम शहरों में मजदूरों के बीच से सबसे जुझारू मजदूरों को लेकर, हड़ताल समितियों का संगठन करें, मजदूरों को उनके गिर्द संगठित करें, साधारण मजदूरों की सहमति से मांग-पत्रक तैयार करें, वर्कर्स सोशलिस्ट पार्टी का समर्थन करें, उससे जुड़ें, और उसमें शामिल होकर हड़ताल को इस केन्द्रीय नारे की ओर उन्मुख करने में सहयोग दें- “पूंजीवाद का नाश हो! मजदूर-किसान सरकार की स्थापना के लिए संघर्ष जिंदाबाद!!”

वर्कर्स सोशलिस्ट पार्टी 
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website: workersocialist.blogspot.com; email: workers.socialist.party@gmail.com 

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