Wednesday, 15 July 2015

१९३७ में, सफलता के मुहाने पर खड़ी स्पेन की क्रांति का, स्तालिनवादियों ने कैसे गला घोंटा?

राजेश त्यागी/ १५.७.२०१५ 

७८ वर्ष पूर्व, स्पेन में, सफलता की दहलीज़ पर खड़ी सर्वहारा क्रांति को स्पेनिश बूर्ज्वाजी ने स्टालिन और उसके तहत सोवियत सत्ता की मदद से कुचलकर फासिस्ट प्रतिक्रांति के लिए रास्ता साफ़ कर दिया. क्रांति पर स्तालिनवादी दमन के चलते, १९३९ में सैनिक तख्तापलट के जरिये सत्ता में आने के लिए जनरल फ्रेंको को हाथ भी नहीं हिलाना पड़ा.

इससे पहले चीन, ब्रिटेन, और जर्मनी में हुई शर्मनाक असफलताओं के लिए स्तालिनवादी मुख्य रूप से उत्तरदायी थे, मगर यह स्पेनिश क्रांति थी जिसमें स्तालिनवादी, पहली बार क्रांति के खिलाफ खुलकर सामने आए. स्पेनिश क्रांति ने स्टालिनवाद के क्रांति-विरोधी चरित्र को नंगा कर दिया.

इसके अलावा स्टालिन द्वारा प्रतिपादित ‘जनमोर्चे’ (पॉपुलर फ्रंटिज्म) की बोगस नीति, जो सर्वहारा को बूर्ज्वाजी की पूंछ से बांधती है, का भी, स्पेन की क्रांति ने, पूरी तरह खुलासा कर दिया.

१९३७ तक स्टालिन फर्जी मास्को मुकदमों में रूस के भीतर प्रतिक्रांतिकारी आतंक की अगुवाई करते बोल्शेविक पार्टी और लाल सेना के शीर्ष नेताओं और लाखों जुझारू कार्यकर्ताओं और लड़ाकों का सफाया कर चुका था. क्रेमलिन में अपनी सत्ता को साम्राज्यवादी चुनौती से बचाने के लिए, वह अब बूर्ज्वा राष्ट्रों और नेताओं की पूंछ थामने की भरसक कोशिश कर रहा था और दूसरे विश्वयुद्ध की पूर्वसंध्या पर संगठित हो रहे साम्राज्यवादियों के दो शत्रु शिविरों के बीच झूल रहा था.

अगस्त १९३९ में हिटलर के साथ संधि से दो वर्ष पूर्व, जुलाई १९३७ में स्पेनिश क्रांति के समय, स्टालिन, साम्राज्यवादी फ्रांस की ‘जनवादी बूर्ज्वाजी’ के साथ गठजोड़ बनाये हुए था. फ्रांस के पड़ोसी स्पेन में, स्टालिन और स्पेनिश कम्युनिस्ट पार्टी की क्रांति-विरोधी नीति, तात्कालिक रूप से, फ्रांस के साथ क्रेमलिन के इस गठजोड़ की यांत्रिकी द्वारा ही निदेशित थी. स्पेन में सफल सर्वहारा क्रांति, फ्रांस की बूर्ज्वा सत्ता के लिए खुली चुनौती थी, चूंकि वह समूचे यूरोप में और सबसे पहले फ्रांस में, समाजवादी क्रांति का बिगुल बजा देती. यूरोप में सर्वहारा क्रांति का आगाज़, सोवियत सर्वहारा को भी आवेशित करता, जो विश्व-बूर्ज्वाजी से चिपकी, स्टालिन के नेतृत्व वाली ब्यूरोक्रेटिक सत्ता के लिए भी बड़ा खतरा था.   

इस तरह स्पैनिश क्रांति फ्रेंच और यूरोपीय बूर्ज्वाजी के साथ-साथ क्रेमलिन की सत्ता के लिए भी खतरा थी और इसलिए स्पेनिश क्रांति के दमन में पेरिस और क्रेमलिन दोनों के हित एक थे. स्टालिन की नीति थी- स्पेन में क्रांति का दमन करके ‘जनवादी बूर्ज्वाजी’ का विश्वास हासिल करना और उसकी सहायता से क्रेमलिन की सत्ता को सुरक्षित रखना.

विश्व-बूर्ज्वाजी के साथ सीधे चिपके होने के कारण, स्टालिन के लिए अब स्पेन में क्रांति का झूठा समर्थन या उसके नाम पर फर्जी लफ्फाजी भी संभव नहीं रह गए थे. इतिहास ने स्टालिन और उसके तहत सोवियत सत्ता को ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया था जहां अब वह अपना क्रांति-विरोधी चरित्र छिपा नहीं सकता था और उसे खुलकर क्रांति के खिलाफ़ आना पड़ा.

स्पेन में, एक दशक से क्रांति आगे बढ़ रही थी. १९३१ में राजशाही का तख्ता उलट दिया गया था और पूंजीवादी गणतंत्र की स्थापना हुई थी. नई सरकार ने राष्ट्रीयताओं की मुक्ति, उपनिवेशों के खात्मे, भूमि सुधारों और धर्मनिरपेक्ष शिक्षा आदि को लेकर जो घोषणाएं कीं वे लागू नहीं की जा सकीं चूंकि वे तुरंत निजी संपत्ति और उस पर आधारित बूर्ज्वा राज्य से टकराने लगीं. इन शक्तियों के विरोध के चलते बूर्ज्वा सुधारों और घोषणाओं का दम निकल गया और इन्हें लागू करने में बूर्ज्वा राज्य की अक्षमता स्पष्ट हो गई.

इस असफलता के चलते, मजदूर-किसानों की ओर से, जिनके संघर्ष पर बूर्ज्वा गणतंत्र अस्तित्व में आया था, जोरदार विरोध आन्दोलन शुरू हुआ. कुछ हफ़्तों के भीतर ही, शासक बूर्ज्वाजी को जनतंत्र का पाखंड छोड़, सीधे दमन का सहारा लेने के लिए बाध्य होना पड़ा. स्पेन में मार्शल लॉ लगा दिया गया और सरकार विरोधी प्रदर्शनों का दमन शुरू हुआ. मगर स्पेन के सर्वहारा ने पीछे हटने से इनकार करते हुए, विरोध जारी रखा. प्रदर्शन संघनित होते गए. दो वर्ष, क्रांति और प्रतिक्रांति के बीच, इस संघर्ष में ही बीते.

मजदूर-किसान आंदोलनों को दबाने में असमर्थ, निर्बल, नाकारा और प्रतिक्रियावादी स्पेनिश बूर्ज्वाजी ने, स्टालिन से गुहार लगाई और स्पेन में फासिज्म के विरोध के नाम पर, कम्युनिस्ट पार्टी के साथ सांझा ‘जनमोर्चा’ कायम करने का प्रस्ताव रखा. हिटलर के सत्ता में आने के बाद, स्टालिन, जर्मनी में बूर्ज्वा पार्टियों के साथ मिलकर ऐसे ही ‘जनमोर्चे’ की वकालत कर रहा था, इसलिए स्पेन में भी वह इसके पक्ष में खड़ा हुआ. स्पेनिश बूर्ज्वाजी की बांछें खिल गईं. दो वर्ष से अदम्य मजदूर-किसान विरोध आन्दोलन से जूझ रही स्पेनिश बूर्ज्वाजी अब कम्युनिस्ट पार्टी, लाल झंडे और स्टालिन की मदद से मजदूर-किसानों को भ्रमित कर सकती थी. सर्वहारा और मेहनतकश जनता को पीछे खींचने और बूर्ज्वा सरकार के विरुद्ध संघर्ष से विरत करने का काम अब स्तालिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी को करना था. जनवरी १९३६ में वाम गणतंत्रवादी मेनुएल अजाना की पहल पर ‘जनमोर्चा’ बना, जिसमें बूर्ज्वा पार्टियों के साथ स्तालिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी भी शामिल हुई.

उधर क्रांति जितना ही मजबूती से आगे बढ़ी, स्पेनिश बूर्ज्वाजी उतना ही फासिज्म की ओर झुकती गई. उदार बूर्ज्वा पार्टियों द्वारा कम्युनिस्ट पार्टी के साथ सांझे मोर्चे में शिरकत ने बूर्ज्वाजी के व्यापक मगर कम सचेत हिस्सों को और ज्यादा फासिज्म की ओर खींचा.

इस तरह सांझे जनमोर्चे पर मुख्यतः स्तालिनवादियों का ही नियंत्रण रह गया और बूर्ज्वा सरकार को फासिज्म के विरुद्ध ही नहीं, उठती हुई क्रांति के विरुद्ध, दरअसल मुख्यतः क्रांति के ही विरुद्ध, बचाने की जिम्मेदारी, स्टालिन और स्पेनिश कम्युनिस्ट पार्टी पर आ गई. पहले से ही साम्राज्यवादी बूर्ज्वाजी के ‘जनवादी’ हिस्से की पूंछ से बंधी सोवियत सत्ता, अब खुलकर स्पेनिश बूर्ज्वा राज्य के पक्ष में और क्रांति के विरुद्ध खड़ी हो गई.

स्तालिनवादियों ने क्रांति को फासिस्ट साज़िश कहकर गाली देना शुरू किया और उस पर दमन की अगुवाई करने लगे. दरअसल, नाज़ी जर्मनी के खिलाफ अपनी सत्ता के बचाव के लिए, पश्चिमी गणतंत्रों- फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका- को एकमात्र गारंटी मानकर उनसे सांठ-गांठ पर आमादा स्टालिन, स्पेन की क्रांति का दमन करके यह साबित करना चाहता था कि वह विश्व-समाजवादी क्रांति के लेनिन-ट्रोट्स्की के कार्यक्रम को सिद्धांत और व्यवहार दोनों में तिलांजलि दे चुका है और उसका उद्देश्य बस क्रेमलिन की सत्ता की सुरक्षा भर है. स्पेनिश बूर्ज्वाजी को, क्रांति का गला घोंटने के लिए, स्टालिन से बेहतर जल्लाद नहीं मिल सकता था जिसके पास इस अपराध की इच्छा और प्रतिबद्धता के साथ-साथ विशाल सोवियत सत्ता और अक्टूबर क्रांति का प्राधिकार भी मौजूद हो. अब लाल झंडा उठाकर न सिर्फ क्रांति को कुचला जा सकता था बल्कि इस झंडे को पोचा बनाकर इस जघन्य अपराध के दाग भी मिटाए जा सकते थे.

१९३४ में, स्टालिन, फ्रांस के भीतर, शासक फ्रेंच बूर्ज्वाजी के साथ ऐसा ही ‘जनमोर्चा’ कायम कर चुका था. बहाना एक ही था- फासिज्म का विरोध. साम्राज्यवादी सरकारों के साथ समझौते करने के बाद, उन्हें ‘जनवादी’ बताते हुए, स्टालिन, इन देशों की कम्युनिस्ट पार्टियों को भी इन सरकारों के साथ मोर्चे बनाने के लिए बाध्य कर रहा था.

इन ‘जनमोर्चों’ के भीतर सर्वत्र कम्युनिस्ट पार्टियों और उनके नेतृत्व में सर्वहारा और युवाओं को बूर्ज्वाजी की पूंछ से बांधा जा रहा था और इन मोर्चों के अनुशासन के तहत लाया जा रहा था. जहां-जहां कम्युनिस्ट पार्टी और बूर्ज्वा पार्टियों के बीच ये जनमोर्चे कायम हो रहे थे, वहां-वहां सर्वहारा संघर्ष को पूरी तरह रोक दिया गया था.

फ्रांस में १९३६ में जनमोर्चे की सरकार में शामिल कम्युनिस्ट पार्टी ने आम हड़ताल का दमन करने में अग्रणी भूमिका निभाई थी. फ्रांस में १९३६ की यह आम हड़ताल, एक सफल सर्वहारा क्रांति की पूर्ववेला साबित हुई होती.

बूर्ज्वाजी के साथ ये सांझे मोर्चे, हर जगह सर्वहारा के लिए जेलखाने साबित हुए और ‘जनमोर्चों’ की इस नीति ने सर्वहारा की स्वतंत्र पहलकदमी को नष्ट करते हुए, फासिज्म के लिए रास्ता साफ़ कर दिया और ढहते-गिरते पूंजीवाद को नई सांस दे दी.

अपने राजनीतिक प्रवास में, ट्रोट्स्की, स्पेन में और सर्वत्र जनमोर्चे की स्तालिनवादी नीति का विरोध कर रहा था और सर्वहारा के स्वतंत्र क्रान्तिकारी संगठन का आह्वान कर रहा था. ट्रोट्स्की ने याद दिलाया कि जनमोर्चे का सर्वोपरि उदाहरण स्टालिन और मेंशेविकों द्वारा फ़रवरी १९१७ में रूस में बूर्ज्वा सरकारों के साथ गठजोड़ था, जिसकी लेनिन ने कड़ी निंदा करते हुए तुरंत उस सहबंध को भंग करने और मजदूर-किसान सरकार के गठन के लिए संघर्ष शुरू करने की मांग की थी.

स्पेन में जनवरी १९३६ में कम्युनिस्ट पार्टी के साथ इस सांझे जनमोर्चे के बिना, अशक्त और नाकारा स्पेनिश बूर्ज्वाजी के लिए सर्वहारा आन्दोलन को रोक पाना और सत्ता को हाथ में रखना असंभव था. फासिज्म को कुचलते हुए, स्पेन में सर्वहारा क्रांति की विजय अवश्यम्भावी थी. मगर इनके बीच स्तालिनवादी आ खड़े हुए और उन्होंने फासिस्टों से भी पहले क्रांति के खिलाफ हमला बोला.

स्तालिनवादियों की अगुवाई वाले इस जनमोर्चे ने जो कार्यक्रम रखा वह पूरी तरह बूर्ज्वा कार्यक्रम था, जिसने सुधारों की बात करते हुए, बूर्ज्वा उपक्रमों- बैंकों, खदानों, कारखानों- के राष्ट्रीयकरण को नकार दिया था.

जनमोर्चा सरकार ने सेना और अफसर उच्चकमान को कायम रखा. इसी सैनिक कमान ने बाद में जनरल फ्रांसिस्को फ्रेंको की अगुवाई में सैनिक षड्यंत्र के जरिये जनमोर्चा सरकार को उलट दिया, क्रांति को कुचल दिया और फासिस्ट सैनिक तानाशाही कायम की.

क्रांति का दमन करने में फ्रेंको को अधिक प्रयास नहीं करना पड़ा, चूंकि क्रांति की मुख्य शक्तियों का सफाया करके, यह काम जनमोर्चा सरकार पहले ही पूरा कर चुकी थी.

१७ जुलाई १९३६ को शुरू हुए फासिस्ट सैनिक षड्यंत्र के खिलाफ जनमोर्चा सरकार ने कोई कारगर कार्रवाई नहीं की और इसके विरुद्ध मजदूर-वर्ग को हथियारबंद करने से स्पष्ट इनकार कर दिया. इसके बावजूद, बार्सिलोना और कैटेलोनिया औद्योगिक नगरों में सर्वहारा ने दृढ होकर इस फासिस्ट आक्रमण के विरुद्ध १९ जुलाई को मोर्चा खोल दिया. इन नगरों में कम्युनिस्ट पार्टी का प्रभाव कम था और POUM का प्रभाव अधिक था. 

POUM 1935 में संगठित हुआ था. लोकप्रिय सर्वहारा नेता आंद्रे निन की पार्टी, वाम कम्युनिस्ट तत्वों, और जोक़ुइन मॉरीन के 'मजदूर किसान ब्लोक' से मिलकर बना यह मध्यमार्गी संगठन था. POUM का शीर्ष नेता आंद्रे निन था, जो मास्को सोवियत में प्रतिनिधि के रूप में चुना गया था और जिसने स्टालिन के विरुद्ध संघर्ष में ट्रोट्स्की का समर्थन किया था. वह ईमानदार, जुझारू और अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति-प्राप्त सर्वहारा नेता था. मगर आंद्रे निन ने, ट्रोट्स्की की दिशा और सलाह के विपरीत १९३५ में पहले मौरीन के नेतृत्व वाले बूर्ज्वा ‘मजदूर-किसान ब्लाक’ में और १९३६ में ‘जनमोर्चे’ में POUM को शामिल कर दिया था. ट्रोट्स्की इस विलय का कड़ा विरोधी था. जुझारू क्रान्तिकारी आंद्रे निन, इस गलती की कीमत अंततः अपनी जान देकर और क्रांति के सर्वनाश से चुकाएगा.

POUM की अगुवाई में बार्सिलोना और कैटेलोनिया में मजदूरों ने खुद को मिलिशिया में संगठित कर हथियारों, गोला-बारूद और गाड़ियों से सज्जित करना शुरू कर दिया. उन्होंने सैनिकों का आह्वान किया कि वे अपने अफसरों के आदेशों की अवहेलना करें और क्रांति के पक्ष में उठ खड़े हों. क्रांति की आग फैलने लगी. मेड्रिड और वेलेंशिया नगरों में भी मजदूरों ने विद्रोह कर दिया. अस्टुरिया के खदान मजदूरों ने पाच हज़ार मजदूरों की मिलिशिया तैयार करके उसे डायनामाइट से लैस कर मेड्रिड भेज दिया. मलागा में, जहाँ मजदूरों के पास कोई शस्त्र नहीं थे, सैनिक बैरकों के चारों ओर खड़ी बैरिकेडों को पेट्रोल डालकर आग लगा दी. नाविकों ने अफसरों को खदेड़ दिया और जहाजों पर कब्ज़ा कर लिया. कारखानों पर कब्ज़े के बाद मजदूरों ने क्रान्तिकारी समितियां बना लीं और मिलिशियाओं के जरिये फासिस्टों के खिलाफ शहरों, गाँवों, बस्तियों में व्यापक अभियान छेड़ दिया. सर्वहारा का अनुसरण करते गाँवों में किसानों ने धावा बोला और जमीन जब्ती करते हुए क्रान्तिकारी ‘किसान समुदायों’ की स्थापना शुरू कर दी. ट्रोट्स्की ने लिखा कि स्पेन में पूंजीवादी विकास के अधिक होने से, क्रांति का यह आवेग, फरवरी १९१७ में रूसी क्रांति की अपेक्षा कहीं अधिक था और स्पेनिश सर्वहारा ने सैनिक प्रतिभा का शानदार प्रदर्शन किया.

फ्रेंको ने वास्तव में उस आग को हवा दे दी, जिसे वह बुझाना चाहता था.

जनमोर्चा सरकार के पास, क्रांति को रोकने के लिए, सेना, पुलिस कुछ भी नहीं बचा. एक तरफ फासिस्ट उभार और दूसरी तरफ क्रांति की ज्वालाओं के बीच जनमोर्चा सरकार का दम निकल गया.
केटालोनिया में राष्ट्रपति कोम्पनिस ने POUM के लड़ाकों से कहा कि “आप केटालोनिया के मालिक हैं, सब कुछ आपने जीत लिया है और आपके प्राधिकार में है. यदि आप मुझे राष्ट्रपति नहीं रखना चाहते तो मैं इस्तीफ़ा देने को तैयार हूँ”.

इसके बावजूद POUM ने, जो ‘जनमोर्चे’ का हिस्सा था, मजदूर समितियों को न तो राष्ट्रीय स्तर पर संगठित किया और न ही राष्ट्रीय बैंकों, स्वर्ण रिज़र्व और ट्रेजरी पर कब्ज़ा किया. उन्हें सरकार के हाथ में छोड़ दिया गया. POUM के नेतृत्व में अगले डेढ़ महीने सर्वहारा संगठन जनमोर्चा सरकार के करीब खिसकते गए. ७ सितम्बर को आंद्रे निन ने बूर्ज्वा मंत्रियों को निकाल बाहर करने का आह्वान किया मगर १८ सितम्बर को POUM की आज्ञप्ति में जनमोर्चा सरकार में विश्वास व्यक्त कर दिया गया कि वह समाजवाद की स्थापना करेगी. आंद्रे निन खुद केटालोनिया की नई जनमोर्चा सरकार में शामिल हो गया.

कैटेलोनिया में नई सरकार ने पहला कदम उठाते हुए, १९ जुलाई को सर्वहारा द्वारा संगठित क्रान्तिकारी समितियों को समाप्त कर दिया. प्रतिक्रांति का यह पहला कदम था. दूसरा था- मजदूरों को निशस्त्र करने की आज्ञप्ति. अगले आठ महीने क्रांति को धीरे-धीरे पीछे धकेल दिया गया और बूर्ज्वाजी ने ‘जनमोर्चा’ सरकार के जरिये सता पर नियंत्रण वापस ले लिया.

दिसंबर में स्टालिन की सलाह पर बूर्ज्वा सरकार ने POUM को जनमोर्चे से निष्कासित कर दिया. इसके बावजूद आंद्रे निन और POUM के दूसरे नेता जनमोर्चे का विरोध करने के बजाय उसे सलाह देते रहे और क्रान्तिकारी समितियों की जरूरत को नकारते रहे. जनमोर्चे से बंधा अम्द्रे निन और POUM, जनमोर्चे की अगुवाई में आगे क्रांति के शांतिपूर्ण विकास की बात करते रहे.

मार्च १९३७ में ट्रोट्स्की ने चेतावनी दी कि यदि POUM ने अपनी नीति जारी रखी तो स्पेन में केटालोनिया में सर्वहारा का अंजाम पेरिस कम्यून से भी बदतर होगा.

१ मई १९३७ को स्तालिनवादियों और मोर्चा सरकार ने मिलकर बार्सिलोना के मजदूरों पर हमला कर दिया. जुलाई १९३६ में जिस टेलीफोन एक्सचेंज पर कब्ज़ा करके उसे मजदूर क्रान्तिकारी हेडक्वार्टर बनाए हुए थे, पहला हमला उसी पर किया गया. इस अभियान को बाकायदा तैयार किया गया था और इसमें स्टालिन द्वारा भेजे सोवियत जासूस हिस्सा ले रहे थे. POUM और अराजकतावादी ट्रेड यूनियन सेंटर CNT ने मजदूरों का संघर्ष के लिए आह्वान करने के बजाय, सुलह के लिए अपील जारी करना शुरू कर दिया.

इसी समय ट्रोट्स्की-वादियों के एक दस्ते, कुछ अराजकतावादियों और POUM के कुछ सदस्यों ने एकजुट हो मजदूरों का आह्वान किया कि वे समझौते का विरोध करें और सत्ता हाथ में ले लें. इस आह्वान पर मजदूर उठ खड़े हुए और ४ मई को पूरा बार्सिलोना फिर सर्वहारा के हाथ में था. मोर्चा सरकार और स्तालिनवादियों को शहर से खदेड़ दिया गया था.

मगर POUM और CNT दोनों के ही नेताओं ने अपने को यह कहते हुए इस विद्रोह से अलग कर लिया कि वे ‘आत्मिक और भौतिक रूप से, सत्ता लेने के लिए, पर्याप्त सशक्त अनुभव नहीं करते’. यह क्रांति से खुली गद्दारी थी. यदि बार्सिलोना क्रान्तिकारी सरकार का गठन कर लेता, कारखाने मजदूरों को और जमीनें किसानों को सौंप देता, राष्ट्रीयताओं, उपनिवेशों की स्वतंत्रता की घोषणा करता, तो क्रांति स्पेन के दूसरे तमाम शहरों, गाँवों, बस्तियों में और स्पेन से बाहर भी फ्रांस, ब्रिटेन और समूचे यूरोप में आंधी की तरह फैलती. मगर POUM के पास ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं था.

समझौते का परिणाम हुआ, POUM और उसकी प्रेस पर पाबंदी, समूचे विपक्ष का निष्कासन, और आंद्रे निन सहित तमाम नेताओं की गिरफ़्तारी. गिरफ्तार नेताओं को स्तालिनवादी जासूसों द्वारा संचालित मेड्रिड की जेल में ले जाया गया जहां आंद्रे निन को दूसरे बंदियों से अलग करके उसकी नृशंस हत्या कर दी गई और उसकी लाश को चुपचाप शहर से बाहर दफना दिया गया. जेल पर जर्मन ‘अंतर्राष्ट्रीय ब्रिगेड’, जो स्पेन में स्तालिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी की मदद कर रही थी, ने यह दिखाने के लिए फर्जी हमला किया कि आंद्रे निन को छुडाने के लिए जर्मन गेस्टापो ने हमला किया था, जिसमें निन मारा गया. इसके बाद हफ़्तों तक स्तालिनवादी ख़ुफ़िया पुलिस के दस्तों ने, बार्सिलोना, कैटेलोनिया, मेड्रिड आदि शहरों में दसियों हज़ार क्रांतिकारियों को गिरफ्तार, टार्चर और क़त्ल किया. बीस हज़ार से अधिक को श्रम-शिविरों में भेजा गया जहाँ उन पर अकथनीय जुल्म किए गए.

ट्रोट्स्की-वादियों की धरपकड के नाम पर ‘अंतर्राष्ट्रीय ब्रिगेडों’ के लड़ाकों को, जो विभिन्न देशों से फासिज्म के विरोध और स्पेनिश क्रांति की सुरक्षा के लिए आए थे, पकड़कर बड़े पैमाने पर मार डाला गया.

स्तालिनवादियों ने स्पेनिश क्रांति पर इस दमन की तैयारी लम्बे समय से की थी. स्पेन में सोवियत ख़ुफ़िया पुलिस के अध्यक्ष एलेग्जेंडर ओर्लोव ने POUM में एजेंट भेजकर घुसपैठ की थी और १९४० में ट्रोट्स्की की हत्या करने वाले रेमन मरकेडर ने उन्हें स्पेनिश बोलना सिखाया था. ब्रिटेन से स्तालिनवादी जासूस डेविड क्रूक के खुलासे से इस पूरे क्रांति-विरोधी अभियान का पर्दाफाश होता है.

स्तालिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी (PCE), १९३६ में बहुत छोटी पार्टी थी मगर १९३७ में यह काफी बड़ी पार्टी बन चुकी थी. PCE का यह विस्तार दरअसल उन तमाम क्रांति-विरोधी तत्वों को लेकर हुआ था जो शहरों और गाँवों में POUM द्वारा चलाये गए क्रान्तिकारी आन्दोलन से रुष्ट थे. इन तत्वों में अमीर किसान, नागरिक और सैनिक अफसर, भूतपूर्व फासिस्ट, लम्पट तत्त्व, और तरह तरह के अपराधी शामिल थे.

फासिज्म का विरोध करने के नाम पर, स्पेन की क्रांति में स्तालिनवादी वास्तव में निजी संपत्ति और उसकी प्रतिरक्षा में रत बूर्ज्वा सत्ता का अनुमोदन कर रहे थे. वे पूंजी की सत्ता को चुनौती देने के बजाय उसकी सुरक्षा में जुटे थे. इस क्रांति में वे बूर्ज्वाजी का वाम-पक्ष नहीं बल्कि अति दक्षिण-पक्ष बन चुके थे. प्रतिक्रांति का नेतृत्व स्तालिनवादियों के ही हाथ था.

इस अर्थ में स्पेन की क्रांति एक ऐतिहासिक मोड़ है जिसने स्तालिनवादियों को क्रांति-विरोधी जल्लादों के रूप में और उनके जनमोर्चे की नीति को सर्वहारा के लिए फांसी के फंदे के रूप में उजागर किया.

१९३७ में क्रांति के इस दमन ने, गृहयुद्ध में फ्रेंको के नेतृत्व में फासिस्टों का पलड़ा भारी कर दिया. अगले दो वर्ष चले गृहयुद्ध में वे १९३९ में विजयी हो गए, जनमोर्चा सरकार बर्खास्त कर दी गई और स्तालिनवादियों को खदेड़ दिया गया. फ्रेंको ने फासिस्ट तानाशाही स्थापित करके राजशाही को पुनर्स्थापित कर दिया. १९७५ में अपनी मृत्यु तक फ्रेंको तानाशाह बना रहा और दुनिया भर में क्रांति-विरोधी मुहिमों में उसने बड़ी भूमिका अदा की.

सर्वहारा और क्रांतिमना युवाओं को स्पेन की क्रांति की यांत्रिकी को विस्तार और गहनता से समझना चाहिए और स्पेन, यूरोप तथा दुनिया भर में भावी क्रांतियों की तैयारी के लिए उससे आवश्यक निष्कर्ष निकालने चाहियें.

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