Friday 18 August 2017

बिहार का सृजन घोटाला एक हज़ार करोड़ के पार

- अंजनी विशु/ १९.८.२०१७


भारत के सबसे गरीब, वंचित और पिछड़े राज्यों में एक, उत्तर भारत का राज्य, बिहार, संभ्रांत सत्ताधारियों की लूट और शोषण का शिकार रहा है।

इस बार समाज-कल्याण के नाम पर बड़े घोटाले का पर्दाफाश हुआ है जो लम्बे समय से जारी था और जिसके तार सत्ता पक्ष के उच्चस्थ अधिकारियों और राजनीतिज्ञों से सीधे जुड़े हैं.

महिला विकास के नाम पर चलाए जा रहे एन.जी.ओ, ‘सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड’ ने अब तक के जांच खुलासे के अनुसार एक हज़ार करोड़ रूपये से अधिक सरकारी खजाने से लूटे हैं। जांच अभी जारी है और इस लूट के विस्तार की सम्भावना है। इस लूट में सत्ता के सफेदपोश नेताओं से लेकर सरकारी पदाधिकारी, स्वास्थ्य विभाग व बैंक के पदाधिकारी तक शामिल हैं।

इंडियन बैंक व सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड ने मिलकर भागलपुर जिला प्रशासन के 10 करोड़ 26 लाख रूपये डकार लिये। इस मामले में जिला नजारत शाखा के लिपिक के बयान पर 7 अगस्त को प्राथमिकी दर्ज की गई। इसमें सृजन के सभी पदधारियों और इंडियन बैंक के तत्कालीन और वर्तमान शाखा प्रबंधकों को आरोपी बनाया गया। प्राथमिकी में कहा गया है कि जिला विकास शाखा ने इंडियन बैंक भागलपुर के नाम चेक निर्गत किया था। चेक 12 करोड़ 20 लाख 15 हजार 75 रूपया का था। इसे इंडियन बैंक में मुख्यमंत्री नगर विकास योजना के खाते में जमा करना था। जांच में पता चला है कि यह राशि मुख्यमंत्री नगर विकास योजना के खाते में जमा न होकर सृजन के खाते में जमा कर दी गयी। बैंक और सृजन ने षड्यंत्र कर राशि का गबन किया है। वर्तमान में उक्त खाते में 10 करोड़ 26 लाख 58 हजार 295 रूपये गायब हैं। डीएम आदेश तितरमारे ने कहा कि उनके फर्जी हस्ताक्षर से चेक निर्गत किया गया है और राशि ट्रांसफर की गयी है।

जिला भू-अर्जन पदाधिकारी जितेन्द्र प्रसाद साह ने ८ अगस्त को कोतवाली थाने में बैंक ऑफ़ बड़ौदा के खाते से 2 अरब 70 करोड़ 3 लाख 32 हजार रूपये अवैध तरीके से सृजन महिला विकास सहयोग समीति के खाते में ट्रांसफर का गबन का आरोप लगाकर रिपोर्ट दर्ज कराई थी।

अभी तक सात आरोपी को जेल भेजा गया जिसमें भू-अर्जन विभाग के नाजिर राकेश झा, डी.एम. के स्टेनो प्रेम कुमार, नाज़िर राकेश यादव, इंडियन बैंक के कर्मचारी अजय पाण्डे, सृजन के ऑडिटर सतीश चंद्र झा, प्रबंधक सरिता झा और प्रेरणा ग्राफिक्स के वंशीधर झा शामिल हैं।

इस पूरे मामले की जांच एस.आई.टी और ई.ओ.यू की टीम को सौंपी गई है जो जिला पुलिस की मदद से घोटाले की जांच कर रही है।

सृजन महिला विकास सहयोग समिति की स्थापना मनोरमा देवी के नेतृत्व में सबौर में हुई थी। इसका निबंधन 1996 में हुआ। मनोरमा देवी की मृत्यु फरबरी माह 2017 में हुई उसके बाद मनोरमा की पुत्रवधू प्रिया कुमार समिति की सचिव बनीं। प्रिया के पति व मनोरमा के बेटे अमित कुमार 'कुमार क्लासेस' के संचालक हैं और ये दोनों शहर छोड़कर फरार हैं।

जांच के बाद भू-अर्जन का 275 करोड़, नजारत का 83 करोड़, डी.आर.डी.ए और जिला परिषद् का 56 करोड़ , को-ऑपरेटिव बैंक का 48 करोड़, कल्याण विभाग का 80 करोड़ और जिला शहरी विकास अभिकरण (डूडा) के 10 करोड़ रूपये का गबन हुआ। जिला परिषद् की विभिन्न योजना मद का 81 करोड़ बैंक ऑफ़ बडौदा और इंडियन बैंक की बजाए सृजन महिला विकास सहयोग समिति के खाते में चला गया। स्वास्थ्य विभाग से 40 लाख 75 हजार 483 रूपये सृजन के खाते में ट्रांसफर हुआ है।

ये कोई एक दिन का खेल नहीं है। इस बीच कितने डीएम बदल गये। डीएम नर्मदेश्वर लाल, विपीन कुमार, संतोष कुमार मल्ल वर्तमान डीएम आदेश तितरमारे इन सबके हस्ताक्षर से ही राशि खाते में गई है। वर्तमान डीएम कह रहे हैं ये हस्ताक्षर फर्जी हैं।

सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड के कार्यक्रम में भाजपा के बड़बोले नेता गिरीराज सिंह, भागलपुर के पूर्व भाजपा सांसद और भाजपा प्रवक्ता, शहनवाज हुसैन बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे हैं। खुद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी इस फर्जी एन.जी.ओ. के कार्य को सराहा है।

भागलपुर शहर के व्यवसायियों से लेकर अफसरों और नेताओं की चमक सृजन के विकास के साथ-साथ बढ़ रही थी।

अभी तक जांच टीम के अफसर, सरकारी पदाधिकारियों से लेकर सफेदपोश नेताओं को बचाने में जुटे हुए हैं, जबकि नागरिक संगठन इस घोटाले की निष्पक्ष जांच सीबीआई से कराने की मांग कर रहे हैं।

किस तरह से गरीब, मेहनतकश जनता की खून-पसीने की कमाई की सत्ता के संरक्षण में बंदरबांट हो रही है, घोटाला इसका खुलासा करता है।

पिछड़े देशों में पूंजीवाद का विशिष्ट चरित्र है की वह कानूनी लूट और शोषण के साथ-साथ गैर-कानूनी लूट और भ्रष्टाचार के बिना जिंदा नहीं रह सकता। इसके चलते, गरीब, मजदूर, किसान और जनता के दूसरे मेहनतकश हिस्सों को लूट का दोहरा बोझ उठाना पड़ता है।

नित नए घोटालों के बीच पूंजीवाद की जनविरोधी सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक व्यवस्था, बुरी तरह सड़ रही है। सत्ता प्रतिष्ठान के तमाम अंगों में भ्रष्टाचार गहरे तक पैठ गया है। तमाम दावों के बावजूद, लूट, शोषण और भ्रष्टाचार का यह तांडव पसरता ही जा रहा है।

संत-पूंजीवाद के दिवास्वप्न काफूर हो रहे हैं। वे मेहनतकश जनता के आक्रोश को ठंडा करने का साधन भर हैं। वे पूंजीवाद की प्रकृति और यांत्रिकी को बदल नहीं सकते।

मुक्ति का रास्ता पूंजीवाद के भीतर नहीं, उसके बाहर है। मुक्ति, पूंजीवाद के सुधार की मरीचिका में नहीं, बल्कि क्रान्ति के जरिए उसके विध्वंस में निहित है।

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