Saturday 29 April 2017

अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस: विश्व-समाजवादी क्रांति का संकल्प दिवस!


मई दिवस. अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस. विश्व-सर्वहारा का ऐतिहासिक पर्व!

जबकि छद्म-वामियों की एक पूरी भीड़, मई दिवस के महत्त्व को, काम के घंटे कम करने जैसे सुधारों तक घटाती आ रही है और आज भी उसी पर आमादा है, पिछली डेढ़ सदी में मई दिवस को युगांतरकारी महत्त्व हासिल हो चुका है. चार सर्वहारा अन्तर्राष्ट्रीयों की स्थापना और उनके लिए संघर्ष तथा अक्टूबर क्रांति की ऐतिहासिक विजय ने मई दिवस को नए क्रान्तिकारी आयाम दिए हैं, उसे नए शस्त्रास्त्रों से सज्जित किया है और नए ऐतिहासिक सोपानों पर प्रतिष्ठित किया है. मई दिवस अब श्रम की दशाओं में सुधारों के लिए संघर्ष का नहीं, बल्कि उजरती श्रम के पूर्ण उन्मूलन और विश्व-पूंजीवाद के ध्वंस के लिए क्रान्तिकारी उदघोष का पर्याय बन चुका है.

४ मई १८८६ को शिकागो के हे मार्किट चौराहे पर जुझारू अमेरिकी मजदूर जिन शोषक-शासकों की दरिंदगी के शिकार हुए थे, वे आज भी कायम हैं और अमेरिका सहित दुनिया के तमाम देशों में सत्ता अब भी उन्ही के हाथ है. पिछली एक और चौथाई सदी में शोषकों की इस पाशविकता में कोई कमी नहीं आई है, बल्कि यह पहले से हज़ार गुना ज्यादा बर्बरता के साथ सामने आई है.

दुनिया भर में मुनाफों की अंधी दौड़ में जुटे, पूंजीवादी निज़ाम, साम्राज्यवाद में संक्रमण के साथ पाशविकता की सभी सीमाएं लांघ चुके हैं. मुनाफों और दुनिया के संसाधनों के बंटवारे को लेकर आपस में जूझ रहे थैलीशाहों के गिरोह, दुनिया को अगणित युद्धों के साथ-साथ दो विश्व-युद्धों की भट्ठी में झोंक चुके हैं और दुनिया पर स्थायी युद्ध को थोपते हुए, अनंत हिंसा, खूनखराबे और नित्यक्रम बन चुके छोटे-बड़े युद्धों के बीच, जिनमें मध्य-पूर्व से लेकर अफ्रीका और यूरोप तक प्रतिदिन अगणित लोग मारे जा रहे हैं, तीसरे विश्वयुद्ध की तैयारी में जुटे हैं. विश्व स्तर पर हो रही इस बर्बरता और अमानवीयता के ही अनुपात में तमाम पूंजीवादी देशों के भीतर मजदूरों, मेहनतकशों पर दमन और लूट भी तेज़ी से बढ़ते हुए नित नए मुकाम हासिल कर रहे हैं.

मई दिवस कोई रस्म नहीं है, बल्कि एक अवसर है जिस पर हमें पिछली सदी में मजदूर वर्ग आन्दोलन की महान उपलब्धियों के साथ-साथ उसकी विफलताओं का भी लेखा-जोखा तैयार करते हुए महत्वपूर्ण रणनीतिक निष्कर्ष निकालने चाहिएं और उस समूचे अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष का पुनरावलोकन करना चाहिए जो चार सर्वहारा अन्तर्राष्ट्रीयों के गिर्द और उसके बाद जारी रहा है और जो विश्व-सर्वहारा के क्रान्तिकारी राजनीतिक संघर्ष की अमूल्य विरासत है.

क्रान्तिकारी इतिहास के इन निष्कर्षों में सबसे महत्वपूर्ण और सर्वोपरि निष्कर्ष हैं- सर्वहारा-अन्तर्रष्ट्रीयता और मजदूर वर्ग की केन्द्रीयता और उन पर आधारित मजदूर वर्ग की स्वतंत्र वर्ग-लामबंदी और आन्दोलन.

इन निष्कर्षों को अनदेखा करते, सामाजिक-जनवादियों, स्तालिनवादियों, माओवादियों और दर्जनों ऐसे ही छद्म-वामियों ने मजदूर वर्ग और अन्तर्राष्ट्रीय समाजवादी आन्दोलन को भीषण घात पहुंचाया है और उसकी पांतों को तितर-बितर करने में शासक पूंजीपतियों की मदद की है. इस भीतरघात के चलते, मजदूर आन्दोलन और वर्ग-चेतना कई दशक पीछे फेंक दी गई हैं जिसका परिणाम समूचे क्रान्तिकारी आन्दोलन के भीतर असीमित अवसरवाद, अर्थवाद, सुधारवाद, संशोधनवाद और राष्ट्रवाद जैसी कुत्सित बुर्जुआ प्रवृत्तियों के तीव्र प्रसार और आधिपत्य के रूप में सामने आया है.

भारत में स्तालिनवादी वाम मोर्चा और उससे जुड़े श्रमिक संघ और छात्र-युवा संगठन इन्ही क्रांतिविरोधी प्रवृत्तियों का अनुसरण करते दशकों-दशक बुर्जुआ सत्ता प्रतिष्ठान, उसकी पार्टियों और नेताओं की पूंछ थामे आ रहे हैं. इन झूठे वामियों ने मिलकर मजदूर आन्दोलन की राजनीतिक स्वतंत्रता का गला घोंट दिया है और उसे पूंजीवाद के खूंटे से बांध दिया है. मारुति, फॉक्सकॉन, ग्रज़िअनो, गोदरेज जैसे अगणित संघर्ष, जहां मजदूरों ने स्वतंत्र पहल करते हुए, पूंजी की सत्ता को खुली और सीधी चुनौती दी और उसके विरुद्ध सीधे आक्रमण खोले, इन पीत-वामियों की झूठी नीतियों का शिकार हो पराजित हुए हैं. इन संघर्षों को कानूनी दायरों में समेटते हुए और विश्व-सर्वहारा के ऐतिहासिक राजनीतिक उद्देश्यों से काटते हुए, इन पाखंडियों ने उन्हें स्वतंत्र और व्यापक वर्ग-संघर्ष में बदलने से रोक दिया और इस तरह पूंजीवाद का संकट हल करने में मदद की. नकली वाम की इन पतित और प्रतिक्रांतिकारी नीतियों का ही परिणाम है कि भारत में फासीवादी सत्ता में आ गए हैं.

२०१७ का मजदूर दिवस, विश्व-स्तर पर साम्राज्यवाद के अनियंत्रित विस्तार और आधिपत्य के अतिरिक्त साम्राज्यवादी शक्तियों के बीच आपसी रंजिश और कलह के तेज़ होते जाने का भी गवाह है. विश्व-पूंजीवाद के आम और पूर्ण विखंडन के बीच पैदा हुए संकट में दूसरे विश्व-युद्ध के बाद हासिल आर्थिक-राजनीतिक संतुलन पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है. सोवियत संघ के बिखराव और चीन के आर्थिक उभार के गिर्द लंबित और ब्रेक्सिट द्वारा सत्यापित यह विखंडन, साम्राज्यवादी शक्तियों के बीच मारामारी को तेज़ करते दुनिया को सीधे तीसरे विश्व-युद्ध की विभीषिका के मुंह में धकेल रहा है. विश्व स्तर पर फैलते इस साम्राज्यवादी संकट की प्रतिध्वनि सभी पूंजीवादी देशों के भीतर फासीवादी शक्तियों के सुदृढीकरण के रूप में सामने आ रही है जो मजदूरों, मेहनतकशों और शांति, समृद्धि की आकांक्षाओं को कुचलते, युद्ध की सम्भावना को और मज़बूत कर रही है.

एक चौथाई सदी पहले अमेरिका और सैन्य संगठन नाटो के नेतृत्व में साम्राज्यवादियों ने दुनिया भर में ‘आतंक विरोधी अभियान’ के नाम पर जो आतंकी मुहिम शुरू की थी उसके तहत युद्ध अधिक से अधिक विस्तृत और स्थायी होता गया है और यह नित नए क्षेत्रों में घुसपैठ कर रहा है. इस असीमित युद्ध का उद्देश्य दुनिया भर में प्राकृतिक स्रोतों और मानव संसाधनों पर पूर्ण नियंत्रण हासिल करना और उसकी बंदरबांट में शक्ति-संतुलन को तय करना है.

पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के रहते, युद्ध अवशम्भावी है. युद्ध का अर्थ है- नाभिकीय युद्ध. यानि मानवजाति और मानव सभ्यता की महानतम उपलब्धियों का सर्वनाश. दो ही विकल्प मानवजाति के सामने शेष हैं- पूंजीवादी बर्बरता और महाविनाश या फिर समाजवाद! इसका सीधा अर्थ है- या तो पूंजीवाद का दावानल समूची मानवता और सभ्यता को लील जायगा या फिर अंतर्राष्ट्रीय मजदूर-वर्ग क्रांति के जरिए पूंजीवाद का तख्ता उलट देगा और दुनिया को नए समाजवादी आधार पर पुनर्गठित करेगा.

अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस, पूंजीवाद-साम्राज्यवाद के ध्वंस और समाजवादी पुनर्निर्माण का संकल्प है, उसकी उदघोषणा है!

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