Saturday 26 April 2014

समाजवाद या विनाश

अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस पर ‘वर्कर्स सोशलिस्ट पार्टी’ की ओर से जारी पत्रक
 
दुनिया में पूंजीवाद के अनवरत प्रसार ने, विज्ञान और तकनीक के सहारे, एक सदी से भी पहले, इस दुनिया को, अभावों और विपन्नता की दलदल से निकालकर, इतिहास में पहली बार, संसाधनों और उत्पादन की प्रचुरता के दौर में पहुंचा दिया था.

मगर पूंजी के मालिकों ने मानवजाति की इन तमाम शानदार उपलब्धियों पर पानी फेरते हुए, तमाम संसाधनों और दौलत को जबरन हथिया लिया और आबादी की बहुसंख्या को, करोड़ों-करोड़ मजदूरों-मेहनतकशों को, इनसे वंचित करते हुए, उन्हें और भी बदतर, नारकीय जीवन में धकेल दिया. इस तरह, मुनाफाखोर थैलीशाहों ने, अथाह दौलत और सम्पन्नता के बीच, दुनिया में कृत्रिम अभावों और विपन्नता की सृष्टि कर दी और एक ऐसी दुनिया को जन्म दिया जिसमें एक छोर पर असीमित प्रचुरता तो दूसरे पर घोर दरिद्रता मौजूद है.

मुनाफाखोरी और लूट पर टिकी, विश्व पूंजीवाद की आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था, पिछली सदी के आरम्भ से ही निरंतर संकटों में घिरी हैं. एक तरफ सामाजिक स्वरूप ले चुके उत्पादन और निजी उपभोग के बीच, तो दूसरी ओर विश्व स्तर पर एकीकृत होती हुई अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय राज्यों में विभक्त साम्राज्यवाद के बीच, असमाधेय टकराव जारी है. बारम्बार प्रकट होने वाले आर्थिक संकट और दोनों विश्व युद्धों सहित, राष्ट्रों के बीच युद्धों का अटूट सिलसिला, पूंजीवाद के इसी स्थायी संकट का परिणाम है.

विश्व पूंजीवाद के लगातार गहराते संकट के बीच, २०१४ का अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस, एक विशेष महत्त्व रखता है.  

बीती सदी के अंतिम दशक के शुरू में ही, सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप में क्रान्ति-विरोधी स्तालिनवादी शिविर के ध्वस्त होने से, अमेरिका के नेतृत्व में जिस एकध्रुवीय पूंजीवादी दुनिया का उदय हुआ था, उसे वैश्विक पूंजीवाद के असमान विकास ने समाप्त कर दिया है. चीन के नेतृत्व में, एक दूसरे साम्राज्यवादी शिविर के उभार के साथ ही, विश्व पूंजीवाद का संतुलन फिर अस्थिर हो गया है. नयी दो-ध्रुवीय दुनिया में साम्राज्यवादी महाशक्तियों के बीच छिड़ी नयी जंग के चलते, दुनिया में पूंजीवाद का शांतिपूर्ण विकास, झूठी मरीचिका बन गया है.

साम्राज्यवादी महाशक्तियों के बीच मुनाफों और उत्पादन के सस्ते स्रोतों- कच्चे मालों, मानव संसाधनों- तथा उपभोक्ता बाजारों पर कब्ज़ा करने की होड़, दुनिया को इतिहास की भयंकरतम त्रासदी, नाभिकीय युद्ध का खतरा उत्पन्न करने वाले, तीसरे विश्व-युद्ध की ओर धकेल रही है. १९१४ में, पहले विश्व युद्ध के समय से ही, कालातीत पूंजीवाद, हर क्षण युद्ध, मृत्यु और विनाश के सहारे सांस ले रहा है. कल तक, समाजवाद के अंत का दंभ भरने वाले बूर्ज्वा बुद्धिजीवी, विश्व समाजवादी क्रांति की नयी संभावनाओं से कांपते, पूंजीवाद के बचाव में जुट गए हैं. इस सबके बावजूद, एक सामाजिक व्यवस्था के तौर पर, पूंजीवाद का अन्तर्ध्वंस लगातार तीव्र हो रहा है.

पूंजीपतियों के राष्ट्रीय और कॉर्पोरेट गिरोहों के बीच जारी, मुनाफों की अंधी होड़ में धंसा, बूढ़ा, जर्जर और कालातीत पूंजीवाद, न सिर्फ समूची सभ्यता, संस्कृति और पर्यावरण, बल्कि मानवजाति के अस्तित्व के लिए ही गंभीर चुनौती बन गया है. मानवजाति उस ऐतिहासिक दोराहे पर आ खड़ी हुई है, जिसमें एक रास्ता विनाश तो दूसरा समाजवाद की ओर ले जाता है. तीसरा कोई विकल्प नहीं है.

२००८ में, अमेरिका से शुरू हुए आर्थिक संकट से विश्व पूंजीवाद अभी उभरा भी नहीं है कि नए संकट के स्पष्ट लक्षण और भी गहन चुनौती दे रहे हैं. संकट के पूरे बोझ को एक तरफ तो राष्ट्रीय पूंजीवादी सरकारें, सर्वहारा और मेहनतकशों, किसानो के कन्धों पर डालने की कोशिश कर रही हैं, कटौतियों के नाम पर सामाजिक योजनाओं में व्यय से पीछे हट रही हैं, सर्वहारा के जीवन-स्तर को और भी नीचे गिरा रही हैं, जिससे तमाम देशों में प्रतिरोध की नयी ज़मीन तैयार हो रही है, तो दूसरी तरफ, विकसित देश इस संकट को पिछड़े देशों पर लादने की कोशिश कर रहे हैं, जिसके फलस्वरूप युद्धों का प्रसार हो रहा है.
 
बीती सदी के दूसरे दशक के अंत में आये आर्थिक भूकम्प के बाद, जिसने विश्व पूंजीवाद की नीव को हिला दिया था, यह सबसे बड़ा संकट है. सामाजिक-जनवाद के साथ-साथ स्टालिनवाद और माओवाद जैसे राष्ट्रवादी-प्रतिक्रान्तिकारी शिविर, जिन्होंने अतीत में पूंजीवाद को प्राणवायु देकर संकट से उबरने में निर्णायक सहयोग दिया था, इतिहास के कूड़ेदान में पड़े हैं. विश्व-पूंजीवाद के समक्ष अभूतपूर्व संकट और चुनौती है, और इसलिए सर्वहारा क्रांतियों के एक नए दौर के लिए वस्तुगत परिस्थितियां तैयार हैं.

मगर, पिछली सदी में अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर आन्दोलन पर, प्रतिक्रान्तिकारी स्टालिनवाद और माओवाद के दुष्प्रभाव के चलते, विश्व-सर्वहारा की राजनीतिक शक्तियां विभाजित, विखंडित, क्षीण, दिशाहीन और नेतृत्व-विहीन हो चुकी हैं और इसलिए नए संकटों को, सफल क्रान्तिकारी विजयों में परिणत कर सकने में असमर्थ हैं. लेनिन और ट्रोट्स्की के नेतृत्व में संगठित, विश्व सर्वहारा की क्रान्तिकारी पार्टी- तीसरे इंटरनेशनल- और उसके साथ ही सोवियत संघ सहित अक्टूबर क्रान्ति के तमाम प्रतिफलों को स्टालिनवाद और माओवाद के विषाक्त प्रभाव ने नष्ट कर दिया है. इसी तरह, चौथे इंटरनेशनल को मिशेल पाब्लो और अर्नेस्ट मंडेल के प्रतिगामी, मध्यमार्गी और अवसरवादी नेतृत्व ने अकथनीय हानि पहुंचाई है.

तरह-तरह की वाम पार्टियां, दुनिया भर में, जनमोर्चों की वकालत कर रही हैं. इसके पीछे, उनका उद्देश्य है: जिस किसी तरह सर्वहारा को वापस पूंजी प्रतिष्ठान और उसकी सत्ता के साथ बांधना और वर्ग-संघर्ष को कुंद करना. कभी फासीवाद से लड़ने के नाम पर तो कभी जनवाद की सुरक्षा के नाम पर, ये वाम पार्टियां, सर्वहारा को पूंजीवाद से जोड़े रखना चाहती हैं. वास्तव में लाल झंडे उठाये हुए और झूठमूठ ही मार्क्स, लेनिन का नाम लेते हुए ये पार्टियां और इनके नेता, पूंजीपति वर्ग के वाम-पक्ष के सिवा और कुछ नहीं हैं.

क्रान्तिकारी अवस्थिति लेने के लिए, सर्वहारा को, न सिर्फ पूंजीपति वर्ग और उसकी पार्टियों से तुरंत और निर्णायक रूप से सम्बन्ध विच्छेद करना होगा, बल्कि पूंजी के इन प्रछन्न दलालों को, रंगे लाल सियारों को भी पराजित करना होगा. हम, वाम एकता के ऐसे तमाम छद्म आह्वानो का विरोध करते हैं, जो सीधे-सीधे पूंजीपति वर्ग और उसकी सत्ता के विरुद्ध संघर्ष के लिए सर्वहारा और मेहनतकशों को एकजुट करने के बजाय, क्रान्तिकारी सर्वहारा की राजनीतिक स्वतंत्रता को पूंजीपति वर्ग या उसकी दलाल पार्टियों के मातहत करते हैं.

पूंजीवाद के विरुद्ध संघर्ष में विजयी होने के लिए, इस संघर्ष में सर्वहारा की एकजुटता, क्रान्तिकारी संघर्ष की अनिवार्य शर्त है. अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस इसी जुझारू एकता का प्रतीक है. पार्टियों, ट्रेड-यूनियनों और दूसरे मजदूर संगठनो के नेताओं पर, मजदूरों को दबाव बनाना चाहिए कि वे पूंजीपति वर्ग,  उसकी पार्टियों और सत्ता से सारे सम्बन्ध तोड़ें और उसके खिलाफ सतत संघर्ष के लिए एकजुट हों.
 
आज, जबकि विश्व पूंजीवाद अभूतपूर्व संकट के बीच घिर चुका है, क्रान्तिकारी सर्वहारा का सबसे पहला कर्तव्य है- क्रान्ति के खुले और छिपे शत्रुओं के खिलाफ अडिग संघर्ष में सर्वहारा की अन्तर्राष्ट्रीय लड़ाकू पार्टी का निर्माण. यह निर्माण एक ऐसे कार्यक्रम के गिर्द ही किया जा सकता है जो सर्वहारा की विजयों-पराजयों का ऐतिहासिक अनुभवों के आधार पर सामान्यीकरण करते हुए, भविष्य का पथ प्रशस्त करे. केवल ऐसी पार्टी ही अंतरर्राष्ट्रीय सर्वहारा को विजयी विश्व समाजवादी क्रांति की ओर पुनर्निर्देशित कर सकती है.

क्रान्तिकारी मार्क्सवाद के कार्यक्रम से लैस, सर्वहारा की ऐसी क्रान्तिकारी पार्टी मौजूद है- वर्कर्स सोशलिस्ट पार्टी. पार्टी, आप सभी से सक्रिय सहयोग और समर्थन के लिए अपील करती है.  

वर्कर्स सोशलिस्ट पार्टी 

No comments:

Post a Comment